यह सवाल उठना लाजिमी है कि आतंकी संगठन अपना नेटवर्क आखिर कैसे फैला पा रहे हैं! जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी उन इलाकों में अपना नेटवर्क फैला रहे हैं जो लंबे वक्त से शांत रहे हैं। जम्मू के कठुआ में जहां आतंकियों ने भारतीय सेना के गश्ती दल पर घात लगाकर हमला किया वह इलाका भी एक दशक से भी ज्यादा वक्त से शांत रहा है। आतंकी पिछले 2-3 सालों से जम्मू में अपनी हरकतों को अंजाम दे रहे हैं। लगातार हो रहे घात लगाकर हमले से इंटेलिजेंस पर तो सवाल उठे ही हैं, यह सवाल भी उठ रहा है कि आतंकियों को इन इलाकों में लोकल सपोर्ट क्यों मिल पा रहा है। बिना लोकल सपोर्ट के घात लगाकर हमला करना और फिर भाग जाना आतंकियों के लिए संभव नहीं है। सोमवार को कठुआ में आतंकियों ने सेना के गश्ती दल में घात लगाकर हमला किया और फिर जंगलों में भाग गए। आतंकियों को पकड़ने के लिए संयुक्त तलाशी अभियान चलाया जा रहा है। खोजी कुत्तों, मेटल डिटेक्टर, हेलिकॉप्टर और यूएवी से भी निगरानी की जा रही है। माना जा रहा है कि इस हमले में तीन से चार तक आतंकी शामिल थे और उनमें ज्यादा विदेशी थे। लेकिन सूत्रों का कहना है कि आतंकियों को स्थानीय लोगों ने मदद पहुंचाई है। लोकल गाइड के जरिए आतंकियों को सेना के मूवमेंट की जानकारी मिली और फिर उन्होंने रेकी कर अपना मिशन प्लान किया। हमला करके वे आसानी से निकल भी गए, जो बिना लोकल सपोर्ट के नहीं हो सकता। पहले आतंकियों ने पुंछ-रजौरी के इलाके में कई वारदातों को अंजाम दिया। ये इलाके भी करीब दो दशकों तक शांत रहे हैं। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने सोशल मीडिया पर लिखा कि जम्मू-कश्मीर के कठुआ जिले में सेना के जवानों के काफिले पर आतंकवादियों द्वारा किया गया हमला एक कायरतापूर्ण कृत्य है जिसकी निंदा की जानी चाहिए और इसके लिए कठोर जवाबी कार्रवाई की जानी चाहिए।फिर रियासी और अब कठुआ में आतंकी वारदात को अंजाम दिया है।
सुरक्षा एजेंसी के एक अधिकारी के मुताबिक कश्मीर में सेना की मजबूत एंटी इन्फिल्ट्रेशन ग्रिड है जिससे आतंकियों के लिए वहां वारदात करना और भाग निकलना मुश्किल है। लेकिन जम्मू के रजौरी-पुंछ इलाके में सैनिकों की संख्या कम की गई थी जिसका आतंकियों ने फायदा उठाया। कठुआ में भी सैनिक उस तरह तैनात नहीं हैं जिसे कश्मीर के इलाकों में हैं। एक अधिकारी ने कहा कि जब सेना की लगातार मौजूदगी होती है तो स्थानीय लोगों से कनेक्ट होता है और ह्यूमन इंटेलिजेंस मजबूत होता है।
सैनिक दो-तीन साल में बदलते जरूर हैं लेकिन पुराने सैनिक नए सैनिकों को स्थानीय लोगों से मिलवाते हैं तो भरोसा जारी रहता है। लेकिन जब बड़ी संख्या में सैनिकों को हटा दिया गया और करीब तीन-चार साल का पूरा गैप हो गया तो फिर स्थानीय लोगों से कनेक्ट बनाना इतना आसान नहीं होता। जम्मू-कश्मीर पुलिस पर भी सवाल उठ रहे हैं कि क्या उन्हें भी इंटेलिजेंस नहीं मिल पा रहा है। सवाल इसलिए क्योंकि पुलिस के लोग हमेशा वहां होते हैं और पुलिस में स्थानीय लोग ही होते हैं। इसके बावजूद अगर आतंकी बड़ी वारदातों को अंजाम देकर भाग निकलते हैं तो सवाल उठने लाजिमी हैं।
आतंकी हमले में अपने पांच बहादुर सैनिकों को खोने से देशभर में दुख के साथ गुस्सा है। सरकार ने जहां आतंकवादी विरोधी अभियान जारी रखने का संकल्प दोहराया है वहीं रक्षा सचिव ने कहा है कि सैनिकों की मौत का बदला लिया जाएगा। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने सोशल मीडिया पर लिखा कि जम्मू-कश्मीर के कठुआ जिले में सेना के जवानों के काफिले पर आतंकवादियों द्वारा किया गया हमला एक कायरतापूर्ण कृत्य है जिसकी निंदा की जानी चाहिए और इसके लिए कठोर जवाबी कार्रवाई की जानी चाहिए।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा कि कठुआ में आतंकवादी हमले में हमारे पांच बहादुर सैनिकों की मौत से मुझे गहरा दुख हुआ है। शोक संतप्त परिवारों के प्रति मेरी गहरी संवेदनाएं। इस कठिन समय में राष्ट्र उनके साथ मजबूती से खड़ा है। आतंकियों को पकड़ने के लिए संयुक्त तलाशी अभियान चलाया जा रहा है। खोजी कुत्तों, मेटल डिटेक्टर, हेलिकॉप्टर और यूएवी से भी निगरानी की जा रही है। माना जा रहा है कि इस हमले में तीन से चार तक आतंकी शामिल थे और उनमें ज्यादा विदेशी थे।आतंकवाद विरोधी अभियान जारी है। हमारे सैनिक क्षेत्र में शांति और व्यवस्था कायम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। रक्षा सचिव गिरिधर अरमाने ने कहा कि कठुआ हमले में पांच जवानों की मौत का बदला लिया जाएगा और भारत इसके पीछे की बुरी ताकतों को हराएगा।