वर्तमान में राम सेतु का रहस्य खुल गया है इसरो ने पहले नक्शा बना लिया है! हाल ही में भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो के द्वारा नासा के तथ्यों की मदद से रामसेतु का रहस्य खोल दिया गया है! इसरो के द्वारा समुद्र के भीतर स्थित रामसेतु का पहला नक्शा तैयार कर लिया गया है! आपको इस बारे में संपूर्ण जानकारी देंगे!
आपको बता दे कि इसरो के वैज्ञानिकों ने अमेरिकी सैटेलाइट से मिले डेटा का इस्तेमाल करके राम सेतु का अब तक का सबसे विस्तृत नक्शा बनाया है। इस नक्शे से भारत और श्रीलंका के बीच बने जमीनी पुल के निर्माण को लेकर चल रहे विवादों को सुलझाने में मदद मिलने की उम्मीद है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिकों ने अमेरिका के एक उपग्रह से प्राप्त डेटा का इस्तेमाल करके राम सेतु, जिसे एडम्स ब्रिज भी कहा जाता है, उसका पहला समुद्र के नीचे का विस्तृत मैप तैयार किया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि राम सेतु के निर्माण को लेकर लंबे समय से चले आ रहे विवादों को सुलझाने में मदद मिल सकती है। बता दें कि भूवैज्ञानिक प्रमाण बताते हैं कि भारत और श्रीलंका की उत्पत्ति का आपस में गहरा संबंध है। दोनों ही गोंडवाना के प्राचीन महाद्वीप का हिस्सा थे, जो टेथिस सागर में उत्तर की ओर बह गया था। यह नक्शा 29 किमी लंबे राम सेतु का पहला पानी के नीचे का नक्शा है, जो समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 8 मीटर दर्शाता है। वैज्ञानिकों ने पुल के नीचे 2-3 मीटर की गहराई वाले 11 संकरे चैनलों का पता लगाया, जो मन्नार की खाड़ी और पाक जलडमरूमध्य के बीच पानी के मुक्त प्रवाह या आदान-प्रदान की सुविधा प्रदान करते हैं।इसरो के नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर के वैज्ञानिकों ने ‘साइंटिफिक रिपोर्ट्स’ जर्नल में प्रकाशित अपने अध्ययन में कहा, ‘यह रिपोर्ट नासा के उपग्रह ICESat-2 के जल पारगम्य फोटॉन का इस्तेमाल करके एडम्स ब्रिज के बारे में जरूरी डिटेल्स प्रदान करने वाली पहली रिपोर्ट है। हमारे निष्कर्ष एडम्स ब्रिज और इसकी उत्पत्ति की समझ को और बेहतर बनाने में सहायक हो सकते हैं।
यह उपग्रह एक लेजर अल्टीमीटर से लैस है जो समुद्र के उथले क्षेत्रों में किसी भी संरचना की ऊंचाई को मापने के लिए फोटॉन या प्रकाश कणों को पानी में प्रवेश करने की अनुमति देता है। एडम्स ब्रिज भारत में रामेश्वरम द्वीप के दक्षिण-पूर्वी प्वाइंट धनुषकोडी से श्रीलंका के मन्नार द्वीप में तलाईमन्नार के उत्तर-पश्चिमी छोर तक फैला है। यह चूना पत्थर की छिछली चट्टानों की एक श्रृंखला से बनी पानी के नीचे की चोटी है, जिसके कुछ हिस्से पानी के ऊपर दिखाई देते हैं, लेकिन यहां कोई चट्टान या वनस्पति नहीं है। बता दें कि जोधपुर और हैदराबाद के NRSC शोधकर्ताओं ने एडम्स ब्रिज के बारे में कई जटिल विवरणों का पता लगाने के लिए नासा सैटेलाइट से खींची गई तस्वीरों का विश्लेषण किया। उन्होंने बताया कि पुल का 99.98 फीसदी हिस्सा समुद्र के पानी में डूबा हुआ है, जिसके कारण जहाजों से क्षेत्र का सर्वेक्षण संभव नहीं है। वैज्ञानिकों ने पुल के नीचे 2-3 मीटर की गहराई वाले 11 संकरे चैनलों का पता लगाया, जो मन्नार की खाड़ी और पाक जलडमरूमध्य के बीच पानी के मुक्त प्रवाह या आदान-प्रदान की सुविधा प्रदान करते हैं।
भूवैज्ञानिक प्रमाण बताते हैं कि भारत और श्रीलंका की उत्पत्ति का आपस में गहरा संबंध है। दोनों ही गोंडवाना के प्राचीन महाद्वीप का हिस्सा थे, जो टेथिस सागर में उत्तर की ओर बह गया था। लगभग 35-55 मिलियन वर्ष पहले लौरेशिया नाम के एक अन्य महाद्वीप से टकराकर अपनी वर्तमान स्थिति में आ गया था। वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसी गतिविधियों और हिमनदों के पिघलने से जुड़े समुद्र के स्तर में उतार-चढ़ाव के कारण जमीनी पुल ऊपर आ सकता है। यही नहीं 29 किमी लंबे राम सेतु का पहला पानी के नीचे का नक्शा है, जो समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 8 मीटर दर्शाता है। इसरो के नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर के वैज्ञानिकों ने ‘साइंटिफिक रिपोर्ट्स’ जर्नल में प्रकाशित अपने अध्ययन में कहा, ‘यह रिपोर्ट नासा के उपग्रह ICESat-2 के जल पारगम्य फोटॉन का इस्तेमाल करके एडम्स ब्रिज के बारे में जरूरी डिटेल्स प्रदान करने वाली पहली रिपोर्ट है। रामेश्वरम के मंदिर अभिलेखों से पता चलता है कि यह पुल 1480 तक पानी के ऊपर था और एक चक्रवात के दौरान जलमग्न हो गया था। तो इस तरीके से इसरो के द्वारा सभी तथ्यों को एकत्रित करके भारत के सबसे पहले इतिहास राम सेतु का रहस्य खोल दिया गया है!