हाल ही में जम्मू के कठुआ में आतंकियों के पास से अमेरिकी राइफल मिली है! हाल ही में जम्मू-कश्मीर के कठुआ में आतंकी हमले में अमेरिकी राइफलों के इस्तेमाल की बात सामने आई है। पिछले कुछ वर्षों से जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी अमेरिका निर्मित एम-4 कार्बाइन असॉल्ट राइफलों का इस्तेमाल करते पाए गए हैं। वहीं, कठुआ सहित हाल के हमलों के दौरान इस राइफल के और अधिक इस्तेमाल के बाद यह चिंता जताई जा रही है कि अगर ऐसे हालात बने रहे तो आतंकियों से पार पाना बेहद मुश्किल होगा। खास बात यह है कि अमेरिका में बनीं इन घातक राइफलों का इस्तेमाल भारत के खिलाफ किया जा रहा है। वहीं, कई आतंकी हमलों में चीन में बनी बुलेट्स का भी इस्तेमाल हो रहा है। एक्सपर्ट से समझते हैं कि आखिर कश्मीर में आतंकवाद से पार पाने में इन चुनौतियों से कैसे निपटा जा सकता है। हाल ही में कठुआ में आतंकियों ने घात लगाकर सुरक्षाबलों पर हमला किया था, जिसमें 5 जवान शहीद हो गए, जबकि 5 जवान घायल हुए हैं। पिछले 1 महीने में यह जम्मू संभाग में हुआ छठवां बड़ा हमला है। वहीं, कठुआ जिले में एक महीने में ये दूसरा बड़ा आतंकी हमला है। यहां सुरक्षाबलों के 10 जवान सेना के वाहन से बदनोता गांव के पास माचेडी-किंडली-मल्हार मार्ग पर नियमित गश्त पर जा रहे थे। आतंकियों ने मल्हार सड़क से सटी एक पहाड़ी पर पोजीशन ले रखी थी। जैसे ही सैन्य वाहन गुजरा आतंकियों ने घात लगाकर पहले ग्रेनेड फेंका और उसके बाद आधुनिक हथियारों से फायरिंग शुरू कर दी।
डिफेंस एंड स्ट्रैटेजिक एनालिस्ट लेफ्टिनेंट कर्नल (रि.) जेएस सोढ़ी के अनुसार, जम्मू-कश्मीर के सोपोर, बारामुला और पट्टन तीन ऐसी जगहें हैं, जहां सबसे ज्यादा आतंकी पाकिस्तान से घुसपैठ करते हैं। सुरक्षा एजेंसियों को अंदेशा है कि कठुआ हमले में करीब 3 आतंकी शामिल थे। हमले के दौरान आतंकियों के साथ स्थानीय गाइड के भी साथ होने की आशंका जताई जा रही है। इस हमले की जिम्मेदारी आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद से जुड़े कश्मीर टाइगर्स ने ली है। आतंकी संगठन ने इस हमले में एम-4 असॉल्ट राइफल, स्नाइपर, ग्रेनेड और दूसरे हथियारों का इस्तेमाल किया है। इससे पहले इस संगठन ने जम्मू क्षेत्र में कठुआ,रियासी और डोडा में भी हमले को अंजाम दिया था।
अमेरिकी सेनाओं के 2021 में अफगानिस्तान से जाने के बाद उनके हथियार पाकिस्तानी आतंकियों तक पहुंच गए। इनमें एम-4 कार्बाइन असॉल्ट राइफल और कंधे पर रखकर दागे जाने वाले हथियार भी शामिल हैं। एम-4 कार्बाइन राइफलों को 1980 के दशक में बनाया गया था। इससे करीब 60 सेकेंड में 700 से 900 राउंड फायर किया जा सकता है। यह करीब आधे किलोमीटर तक मार कर सकती है। इनका नाटो सेनाओं ने बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया था। इन राइफलों से स्टील की घातक गोलियां ताबड़तोड़ निकलती हैं। डिफेंस एक्सपर्ट जेएस सोढ़ी कहते हैं कि इन राइफलों का इस्तेमाल सीरियाई गृहयुद्ध, इराकी गृहयुद्ध, यमनी गृहयुद्ध, कोलंबियाई संघर्ष, कोसोवो युद्ध, 9/11 के बाद इराक और अफगानिस्तान युद्ध सहित कई युद्धों में किया गया है। पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस यानी आईएसआई ने जम्मू-कश्मीर में एम-4 कार्बाइन राइफलें देकर आतंकियों की मदद कर रही है।
एक्सपर्ट के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में एम-4 कार्बाइन राइफल की बरामदगी पहली बार तब हुई, जब 7 नवंबर 2017 को जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख मसूद अजहर के भतीजे तल्हा रशीद मसूद को सेना ने पुलवामा जिले में हुई एक मुठभेड़ में मार गिराया गया था। उसके पास से ये राइफलें मिली थीं। 2018 में पुलवामा में सुरक्षा बलों ने दूसरी बार हथियार बरामद किया था, जब अजहर का एक और भतीजा उस्मान इब्राहिम मारा गया था। 11 जुलाई, 2022 को जम्मू-अवंतीपोरा इलाके में एम-4 कार्बाइन राइफल बरामद की गई। पुंछ में आतंकियों ने हमले के लिए जिस गोली का इस्तेमाल किया था वो स्टील की थीं। आमतौर पर गोलियां पीतल की होती है, लेकिन अब आतंकी हमलों के लिए स्टील की गोलियां इस्तेमाल कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि इस तरह की गोलिया चीन बनाता है। स्टील की ये गोलियां चीन के जरिए पाकिस्तान पहुंचती हैं और फिर वहां से पाकिस्तानी फौज के जरिए आतंकियों को इसकी सप्लाई की जाती है। पीतल की गोली की तुलना में स्टील की गोलियां सस्ती भी होती हैं और घातक भी।
इससे पहले जम्मू-कश्मीर में आतंकियोंवादियों के साथ मुठभेड़ों में ज्यादा एडवांस चीनी टेलीकम्यूनिकेशन इक्विपमेंट ‘अल्ट्रा सेट’ जब्त किया गया है। दरअसल, पाकिस्तानी सेना द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला उपकरण आतंकवादी समूहों के हाथों में पहुंच गया है। उन्होंने कहा कि इससे नियंत्रण रेखा के पार से होने वाली घुसपैठ और शहरों तथा गांवों के बाहरी इलाकों में आतंकवादियों के संभावित रूप से रहने की चिंता भी पैदा हो गई है। इन संदेशों को हैंडसेट से पाकिस्तान स्थित मास्टर सर्वर तक पहुंचाने के लिए चीनी सैटेलाइट का इस्तेमाल किया जाता है, संदेशों को बाइट्स में छोटा करके भेजा जाता है।
डिफेंस एक्सपर्ट जेएस सोढ़ी के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में आतंकियों को स्थानीय समर्थन ज्यादा मिल रहा है। हालांकि, ये समस्या भी हल हो सकती है। अगर राजनीतिक बातचीत शुरू हो तो इस समस्या से भी पार पाया जा सकता है। इसमें सभी राजनीतिक दलों को इस मसले को हल करना होगा। अमेरिका के एक थिंक टैंक रैंड कॉरपोरेशन की 30 जून, 2008 को जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, सैन्य कार्रवाई से महज 7 फीसदी ही आतंकवाद का खात्मा किया जा सकता है। रिपोर्ट के अनुसार, अगर सभी राजनीतिक दल मिल बैठकर रेगुलर बातचीत करें तो इस समस्या का समाधान निकाला जा सकता है।
डिफेंस एक्सपर्ट जेएस सोढ़ी बताते हैं कि पाकिस्तान ने पंजाब में आतंकवाद का समर्थन किया था। जम्मू-कश्मीर में पिछले 35 साल से वह आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है। बीते 5 साल में एक बार ही यानी 24 जून, 2021 को सभी राजनीतिक दलों ने जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को लेकर व्यापक चर्चा की थी। वहीं, सीमा विवाद को लेकर चीन के साथ इसी दौरान 21 बार बातचीत हुई। ऐसे में कश्मीर में आतंकवाद से निपटने का सबसे बड़ा मूल मंत्र है भारत की सभी राजनीतिक पार्टियों को साथ में बैठकर इस पर बातचीत करना।