यह सवाल उठना लाजिमी है कि प्रधानमंत्री पर चन्नी की शिकायत का क्या प्रभाव पड़ेगा! पंजाब के जालंधर से कांग्रेस सांसद चरणजीत सिंह चन्नी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ लोकसभा में विशेषाधिकार हनन की शिकायत की है। उन्होंने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को चिट्टी लिखकर अपील की है कि वो प्रधानमंत्री के खिलाफ सदन में विशेषाधिकार प्रस्ताव लाने की अनुमति दें। चन्नी का कहना है कि केंद्रीय मंत्री और हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर से बीजेपी सांसद अनुराग ठाकुर के भाषण की कुछ बातें लोकसभा की कार्यवाही से हटा दी गई थी, लेकिन प्रधानमंत्री ने हटाए गए शब्दों को भी अपने सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म पर साझा किया है। कांग्रेस सांसद ने संसदीय कार्यवाही के नियमों का हवाला देकर कहा है कि प्रधानमंत्री ने ऐसा करके विशेषाधिकार का उल्लंघन किया है। तो सवाल है कि अब आगे क्या होगा? दरअसल, लोकसभा की कार्यवाही की नियम पुस्तिका में एक अध्याय विशेषाधिकार प्रस्ताव से संबंधित है। रूलबुक में वर्णित नियम संख्या 222 में कहा गया है, ‘कोई भी सदस्य, लोकसभा अध्यक्ष की सहमति से किसी दूसरे सदस्य या लोकसभा या किसी समिति के खिलाफ विशेषाधिकार उल्लंघन का प्रस्ताव ला सकता है।’ नियम 225(1) में कहा गया है कि अगर लोकसभा अध्यक्ष नियम 222 के तहत विशेषाधिकार प्रस्ताव के नोटिस से सहमत होते हैं तो वो सदन की कार्यवाही के दौरान नोटिस देने वाले सदस्य को प्रस्ताव लाने की अनुमति दे सकते हैं। उनके कहने पर नोटिस देने वाला सदस्य अपनी सीट पर खड़ा होकर प्रस्ताव के बारे में संक्षिप्त बयान दे सकता है। लेकिन अगर लोकसभा अध्यक्ष ने नोटिस को अस्वीकार कर दिया और प्रस्ताव से सहमति नहीं जताई तो वो सदन में अपने आसन से अपना फैसला सुना सकते हैं।समिति अपनी रिपोर्ट में यह भी बता सकती है कि उसकी सिफारिशों को लागू करने के लिए क्या तरीका अपनाया जाए। ऐसा करते वक्त वो सदस्य का दिया नोटिस पढ़ सकते हैं और आखिर में यह बता सकते हैं कि इसे ठुकरा दिया गया है।
मान लीजिए कि अगर लोकसभा स्पीकर चरणजीत सिंह चन्नी का नोटिस स्वीकार कर लेते हैं और उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव लाने की अनुमति देते हैं तो क्या होगा? नियम 225(1) कहता है कि लोकसभा अध्यक्ष नोटिस में कही गई बातों से सहमत होते हैं तो वो किसी भी वक्त प्रस्ताव लाने की अनुमति दे सकते हैं। नियम 225(2) कहता है कि अगर अनमुति दी जाने पर आपत्ति की जाए तो अध्यक्ष अनुमति दिए जान के पक्ष वाले सदस्यों को अपनी सीट पर खड़े होने को कह सकते हैं। अगर ऐसे सदस्यों की संख्या कम से कम 25 हुई तो अध्यक्ष कहेंगे कि प्रस्ताव लाने की अनुमति है। अगर 25 से कम सदस्य खड़े हुए तो अध्यक्ष सदन को बताएंगे कि प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता। अब नियम 226 कहता है कि अगर प्रस्ताव लाने की अनुमति मिल गई तो लोकसभा में प्रस्ताव पर विचार होगा और तय होगा कि आरोपों की जांच के लिए प्रस्ताव को विशेषाधिकार समिति के पास भेजा जाए।
विशेषाधिकार समिति का एक चेयरपर्सन और 14 सदस्य होते हैं। अगर विशेषाधिकार समिति के पास चरणजीत सिंह चन्नी के प्रस्ताव के आधार पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ आरोप की जांच की मांग पहुंचती है तो समिति का दायित्व है कि वह जांच करे और अपनी रिपोर्ट लोकसभा अध्यक्ष को सौंपे। समिति रिपोर्ट में न केवल यह बताएगी कि चरणजीत सिंह चन्नी का आरोप सही है या गलत बल्कि यह भी बताएगी कि अगर आरोप सही है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ क्या कार्रवाई की जाए। समिति अपनी रिपोर्ट में यह भी बता सकती है कि उसकी सिफारिशों को लागू करने के लिए क्या तरीका अपनाया जाए।
दरअसल, प्रधानमंत्री भी लोकसभा के एक सदस्य होते हैं। नरेंद्र मोदी उत्तर प्रदेश के वाराणसी लोकसभा क्षेत्र से चुनकर आए हैं। प्रधानमंत्री लोकसभा में सदन के नेता होते हैं। प्रधानमंत्री भी लोकसभा के प्रक्रिया तथा कार्य संचालन संबंधी नियमों से बंधे हैं। उनके कहने पर नोटिस देने वाला सदस्य अपनी सीट पर खड़ा होकर प्रस्ताव के बारे में संक्षिप्त बयान दे सकता है। लेकिन अगर लोकसभा अध्यक्ष ने नोटिस को अस्वीकार कर दिया और प्रस्ताव से सहमति नहीं जताई तो वो सदन में अपने आसन से अपना फैसला सुना सकते हैं।सदन के नेता की हैसियत से उन्हें बाकी सदस्यों से इतर कुछ अतिरिक्त सुविधाएं मिलती हैं, लेकिन विशेषाधिकार उल्लंघन के मामले में विशेष छूट हासिल नहीं होती है। इसलिए संसद प्रधानमंत्री को भी उनके असंसदीय आचरण के लिए दंडित कर सकती है।