Wednesday, January 15, 2025
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जानिए कहानी क्रांतिकारी वीर राव तुलाराम की!

आज हम आपको क्रांतिकारी वीर राव तुलाराम की कहानी सुनाने जा रहे हैं! इंदिरा गांधी इंटरनैशनल एयरपोर्ट से नई दिल्ली की तरफ आने पर पड़ता है राव तुला राम मार्ग। इस नाम पर बस सड़क ही नहीं, फ्लाईओवर, अस्पताल, कॉलेज और इमारतें भी हैं। राव तुला राम वह क्रांतिकारी हीरो हैं, जिन्होंने देश की आजादी के पहले संग्राम में अहम रोल अदा किया। उनका जन्म रेवाड़ी के रामपुरा में हुआ था, 9 दिसंबर 1825 को। तब रेवाड़ी को अहिरवाल का लंदन भी कहा जाता था, जहां राव तुला राम के पिता राव पूर्ण सिंह का राज था। उनकी रियासत आज के दक्षिण हरियाणा में फैली थी, जिसमें करीब 87 गांव थे। राव तुला राम महज 14 साल के थे जब उनके पिता की मौत हो गई और उन्हें सिंहासन संभालना पड़ा। लेकिन अंग्रेजों की नजर भी गद्दी पर थी और उन्होंने धीरे-धीरे आधी रियासत पर कब्जा जमा लिया। अपनी जमीन वापस पाने के लिए राव तुला राम ने सेना तैयार करनी शुरू कर दी।

इस बीच 1857 की क्रांति भड़क गई। राव तुला राम और उनके चचेरे भाई गोपाल देव ने अहिरवाल का नेतृत्व संभाल लिया। राव तुला राम को दिल्ली के बादशाह बहादुर शाह जफर का भी साथ मिला। उन्होंने हरियाणा में अंग्रेजों के लिए मुसीबत खड़ी कर दी। 17 मई 1857 को राव तुला राम 400 से 500 लोगों के साथ रेवाड़ी की तहसील पहुंचे और सरकारी इमारतों पर कब्जा कर लिया। काबुल में उनका शाही सम्मान के साथ अंतिम संस्कार कर दिया गया। रामपुरा गांव में आज भी उनके वंशज रहते हैं।अपना हेडक्वॉर्टर बनाने के लिए उन्होंने रामपुरा गांव को चुना। उन्होंने रेवाड़ी के लोगों से दान और कर्ज लेकर पांच हजार लोगों की सेना तैयार कर ली। 2 अक्टूबर 1857 को ब्रिगेडियर जनरल शोवर्स को राव तुला राम को हराने के लिए भेजा गया।

राव तुला राम को अंदाजा हो गया था कि रामपुरा के मिट्टी के किले में ब्रिटिश सेना को रोक पाना मुमकिन नहीं। कमांडर जेरार्ड समेत कई अफसर मारे गए। हालात बिगड़ते देख कार्यवाहक ब्रिटिश कमांडेंट मेजर कॉलफील्ड ने तोपखाने से बमबारी करने का हुक्म दे दिया। राव तुला राम के सैनिक बहादुरी से डटे रहे, मगर उनकी हार हुई। लेकिन वह वहां से निकलने में कामयाब रहे।इसलिए उन्होंने किला छोड़ दिया। शोवर्स ने राव तुला राम के पास पैगाम भेजा कि अगर वह सरेंडर कर दें तो उनके साथ बेहतर सलूक किया जाएगा। राव तुला राम ने यह ऑफर ठुकरा दिया और आजादी की शर्त सामने रखी। इस बात से गुस्साए अंग्रेजों ने 10 नवंबर 1857 को एक और बड़ी सेना भेज दी। इस बार जबरदस्त तोपखाने के साथ कर्नल जेरार्ड को कमान सौंपी गई।

कर्नल जेरार्ड की सेना नारनौल की तरफ बढ़ रही थी। रास्ता रेतीला था। अंग्रेजी सेना नसीबपुर के मैदान के पास पहुंची थी, तभी राव तुला राम की सेना ने हमला बोल दिया। अंग्रेजी सेना के छक्के छूट गए। कमांडर जेरार्ड समेत कई अफसर मारे गए। हालात बिगड़ते देख कार्यवाहक ब्रिटिश कमांडेंट मेजर कॉलफील्ड ने तोपखाने से बमबारी करने का हुक्म दे दिया। राव तुला राम के सैनिक बहादुरी से डटे रहे, मगर उनकी हार हुई। लेकिन वह वहां से निकलने में कामयाब रहे।

जख्मी राव तुला राम पहले राजस्थान पहुंचे, जहां इलाज कराने के बाद वह तात्या टोपे की सेना में शामिल हो गए। तात्या टोपे की सेना की भी जब हार हुई, तो वह पहले ईरान गए और फिर अफगानिस्तान। बता दें कि जिसमें करीब 87 गांव थे। राव तुला राम महज 14 साल के थे जब उनके पिता की मौत हो गई और उन्हें सिंहासन संभालना पड़ा। लेकिन अंग्रेजों की नजर भी गद्दी पर थी और उन्होंने धीरे-धीरे आधी रियासत पर कब्जा जमा लिया। अपनी जमीन वापस पाने के लिए राव तुला राम ने सेना तैयार करनी शुरू कर दी। वहां उन्होंने भारत की आजादी के लिए मदद मांगी। अफगानिस्तान के शासक को उन्होंने मदद के लिए तैयार भी कर लिया था, लेकिन डिसेंट्री (पेचिश) की वजह से इतनी तबीयत बिगड़ी कि 23 सितंबर 1863 को काबुल में ही राव तुला राम का निधन हो गया। राव तुला राम को अंदाजा हो गया था कि रामपुरा के मिट्टी के किले में ब्रिटिश सेना को रोक पाना मुमकिन नहीं। कमांडर जेरार्ड समेत कई अफसर मारे गए। हालात बिगड़ते देख कार्यवाहक ब्रिटिश कमांडेंट मेजर कॉलफील्ड ने तोपखाने से बमबारी करने का हुक्म दे दिया।काबुल में उनका शाही सम्मान के साथ अंतिम संस्कार कर दिया गया। रामपुरा गांव में आज भी उनके वंशज रहते हैं।

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