हाल ही में विपक्ष नीतीश कुमार की सरकार से नाराजगी का इंतजार कर रहा था लेकिन हुआ कुछ और ही! नरेंद्र मोदी की तीसरे राउंड की सरकार के पहले आम बजट से सबसे अधिक अगर किसी को निराश हुई है तो वह है विपक्ष। सदन से लेकर सड़क तक विपक्षी पार्टियों के समर्थक बजट प्रावधानों की आलोचना कर रहे हैं। राहुल गांधी तो इसे कांग्रेस की न्याय योजना का कापी-पेस्ट बता रहे हैं तो साथ में यह भी कह रहे कि सहयोगी दलों को खुश करने वाला यह बजट है। यानी कुर्सी बचाने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार ने घुटने टेक दिए हैं। ममता बनर्जी को भी बजट रास नहीं आ रहा। आरजेडी नेताओं और समाजवादी पार्टी के अखिलेश-डिंपल यादव को भी बजट अच्छा नहीं लग रहा है। दरअसल विपक्ष का दर्ज कुछ और है। विपक्ष को यह पक्का भरोसा था कि देर-सबेर एनडीए में शामिल सांसदों की संख्या के हिसाब से दो बड़े दल जेडीयू और टीडीपी देर-सबेर उसके साथ आ जाएंगे। उन्हें साथ लाने की विपक्ष ने कोशिश भी की थी। फर्क यही रहा कि लोकसभा चुनाव में इन दोनों दलों का महत्व विपक्ष के किसी नेता को समझ नहीं आया। चुनाव परिणाम आए और महज 40 सदस्यों के बंदोबस्त से सरकार विपक्ष की सरकार बन जाने की संभावना दिखी तो कांग्रेस और उसके साथ इंडिया ब्लाक के सभी दलों ने हाथ-पांव मारने शुरू कर दिए। आंध्र प्रदेश में टीडीपी के 16 सांसदों को अपने पाले में करने के लिए विपक्ष ने चंद्रबाबू नायडू पर डोरे डालने शुरू किए तो जेडीयू के 12 सांसदों की वजह से नीतीश कुमार भी विपक्ष के लिए आदरणीय हो गए। नायडू और नीतीश के फोन पर विपक्षी नेताओं के काल आने लगे। नीतीश को तो पीएम बनाने का भी आफर दिया गया। नायडू को भी ऐसा ही कोई आकर्षक प्रस्ताव मिला हो तो आश्चर्य की बात नहीं। पर, विपक्ष इस कोशिश में नाकाम रहा। दोनों नेता एनडीए छोड़ने को तैयार नहीं हुए।
अतीत में चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार एनडीए को धोखा दे चुके हैं। इसलिए इन दोनों नेताओं के पिछले आचरण को देखते हुए विपक्ष को उम्मीद थी कि वे कभी भी एनडीए का साथ छोड़ सकते हैं। बिहार में नीतीश कुमार दो बार एनडीए का साथ छोड़ चुके हैं। चंद्रबाबू नायडू के समर्थन वापस लेने से ही अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली केंद्र की एनडीए सरकार गिर गई थी। यही वजह है कि विपक्ष इन दोनों नेताओं की ओर अब तक टकटकी लगाए था। उसे उम्मीद थी कि किसी न किसी कारण से ये नेता बिदकेंगे और इनके सहारे बनी नरेंद्र मोदी की सरकार धराशायी हो जाएगी। पर, मोदी ने ऐसी चाल चली कि विपक्ष ताकते रह गया।
नीतीश कुमार बिहार को विशेष दर्जा की मांग कर रहे थे। विशेष दर्जा न मिल पाने की स्थिति में उन्होंने विशेष पैकेज की मांग रखी थी। विपक्ष को पता था कि बिहार ही नहीं, किसी भी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा मिलना मुश्किल है। नीति आयोग ने इसके जो मानक तय किए हैं, उसमें बिहार एक भी शर्त पूरी नहीं करता। ऐसी स्थिति में नीतीश के बिदकने की बाट विपक्ष जोह रहा था। मोदी सरकार ने बिहार को करीब 59 हजार करोड़ रुपए देकर नीतीश को बिदकने का मौका ही नहीं दिया। विशेष राज्य का दर्जा देने से केंद्र के इनकार के बाद तो विपक्ष ने नीतीश को चने की झाड़ पर भी चढ़ाने की कोशिश की। लालू यादव उन्हें इस्तीफा देने की सलाह देने लगे। कांग्रेस उनकी अंतरात्मा जगाने लगी। विपक्ष यह मान कर चल रहा था कि मोदी-3 सरकार बनते ही जिस तरह नीतीश ने विशेष राज्य की मांग उठाई है, पूरी न होने पर वे जरूर बिदकेंगे और एनडीए से अलग हो जाएंगे। पर, विपक्ष की उम्मीदों पर पानी फिर गया। चंद्रबाबू नायडू हमेशा आंध्र प्रदेश के लिए आर्थिक मदद के आग्रही रहे हैं। विपक्ष को उम्मीद थी कि मदद न मिलने या कम मिलने पर वे भी नाराज होंगे। पर, दोनों के लिए केंद्र सरकार ने बजट में इतनी रकम का प्रावधान कर दिया कि दोनों खुश हैं। वे बजट की तारीफों के पुल बांध रहे हैं।
जब विपक्ष की उम्मीदों परल पानी फिर गया तो वह अब दूसरा राग अलापने लगा है। विपक्ष के मुताबिक यह घुटना टेक बजट है। कुर्सी बचाने वाला बजट है। अगर इसे सच भी मान लें तो बुरा क्या है। जब सरकार गठबंधन की हो तो साथी दलों के मन-मिजाज के हिसाब से काम करना गलत कैसे है। केंद्र में इंडिया ब्लाक भी सरकार बनाता तो क्या वह अपने सहयोगी दलों की उपेक्षा कर पाता। सच यही है कि विपक्ष की उम्मीदों पर मोदी ने पानी फेर दिया है। नीतीश और नायडू से इंडिया ब्लाक को भारी निराशा मिली है। इसलिए बौखलाहट में विपक्ष सदन में हंगामा मचा रहा है। बजट को कुर्सी बचाने की कवायद कह रहा है। सहयोगी दलों के आगे घुटने टेकने की मोदी सरकार पर लांछन लगा रहा है।