आखिर महान गायक मोहम्मद रफी के सात बच्चे क्यों नहीं बन पाए सिंगर?

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आज हम आपको बताएंगे की महान गायक मोहम्मद रफी के सात बच्चे आखिर सिंगर क्यों नहीं बन पाए! खोया खोया चांद, खुला आसमान, आंखों में सारी रात जाएगी… सुरों के सरताज मोहम्‍मद रफी ने अपनी मदहोश करने वाली आवाज में जब यह गाया, तब ना जाने कितनी आंखों से नींद गायब हो गई। उन्‍होंने हमें महबूब की राहों में बहारों से गुजारिश कर फूल बरसाना सिखाया। भारतीय सिनेमाई गायिकी में रफी साहब जैसा ना कोई था और ना ही कोई है। पंजाब में पैदा हुए रफी की आवाज आज भी दिलों में गूंजती है। उनके गाए 28000 से अध‍िक गानों की रवानी ऐसी है कि हर बैचेन मन को सुकून मिलता है। वह इश्‍क की तड़प को बढ़ाना भी जानते थे और गम में मरहम लगाना भी। बुधवार, 31 जुलाई को रफी साहब की पुण्‍यतिथ‍ि है। इस महान गायक ने अपने पीछे गीत-संगीत की एक अमूल्‍य व‍िरासत छोड़ी है। लेकिन क्‍या आपने कभी सोचा है कि उनकी सात संतानों में से कभी कोई सिंगर क्‍यों नहीं बना? सिंगर बनना तो दूर, उनकी 3 बेटियों और 4 बेटों में में किसी ने कभी इस विधा में कोई कोश‍िश भी नहीं की। मोहम्मद रफी का जन्‍म 24 दिसम्बर 1924 को ब्रिटिश पंजाब के कोटला सुल्‍तान सिंह (अब अमृतसर का हिस्‍सा) में हुआ था। उनके माता-पिता अल्‍ला राखी और हाजी अली मोहम्‍मद जट मुस्‍लिम परिवार से थे। रफी साहब को घरवाले प्‍यार से फीको बुलाते थे। साल 1945 में ‘गांव की गोरी’ फिल्‍म से रफी साहब ने हिंदी सिनेमा में करियर शुरू किया। धीरे-धीरे उनका करियर परवान चढ़ा। उनकी सबसे बड़ी खासियत यह रही कि उन्‍होंने हर तरह के गाने गाए। उनमें गजब की वर्सेटैलिटी थी। वह देशभक्ति के गीत गाते थे, दुख भरे नगमों की तान छेड़ते थे। रोमांटिक गानों में उनका कोई सानी नहीं था। कव्वाली से लेकर गजल और भजन से लेकर शास्त्रीय गानों तक उन्‍होंने हर तरह के गीत में अपना जलवा दिखाया। जितनी मधुर आवाज, उतनी ही सौम्‍य शख्‍य‍ियत के मालिक मोहम्‍मद रफी ने छह फिल्मफेयर पुरस्कार जीते। उन्‍हें एक राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला। साल 2001 में भारत सरकार ने उन्‍हें पद्मश्री का सम्‍मान दिया।

रफी साहब ने दो शादियां की थीं। पहली पत्‍नी बशीरा बीबी उनकी कजिन थीं। 1938 में दोनों का निकाह हुआ, लेकिन 1942 में यह रिश्‍ता टूट गया, क्‍योंकि बशीरा बीवी लाहौर से दूर नहीं जाना चाहती थीं। फिर 1945 में मोहम्‍मद रफी ने बिलकिस बानो से निकाह किया। उन्‍हें पहली शादी से एक बेटा सईद हुआ। जबकि दूसरी बेगम से तीन बेटियां और तीन बेटे हुए। लेकिन इनमें से किसी ने भी पिता की तरह संगीत में करियर नहीं बनाया। असल में इसकी वजह खुद मोहम्‍मद रफी थे। रफी साहब पर लिखी अपनी किताब ‘मोहम्‍मद रफी- माय अब्‍बा’ में उनकी बहू और बहुत बड़ी फैन यास्‍म‍ीन खालिद रफी ने इसका खुलासा किया है।

यास्‍म‍ीन बताती हैं, ‘रफी साबह खुद कभी नहीं चाहते थे कि उनके बच्‍चे भी उनकी तरह गायिकी करें। इसलिए उन्‍होंने अपने बच्‍चों को शुरू से ही बोर्डिंग स्‍कूल में पढ़ाया। वह बड़े आध्‍यात्‍मिक इंसान थे। वह कहते थे कि मुझ पर ऊपर वाले का करम है। लेकिन मुझे नहीं लगता कि मेरे बच्‍चे वो कर पाएंगे, जो मैंने किया है। वह नहीं चाहते थे कि उनके बच्‍चे समाज के उस दबाव को महसूस करें कि एक महान सिंगर के बच्‍चे भी उनकी तरह ही महान गायक बनें।’

यास्‍म‍ीन आगे बताती हैं कि रफी साहब निजी जिंदगी में एक बेहद शांत व्यक्ति थे। वह हर रोज सुबह 5 बजे उठते थे और दो घंटे रियाज करते थे। शाम को उन्हें अपना खाना गर्म और समय पर चाहिए होता था। उन्‍हें घर का खाना पसंद था, फिर चाहे वह साधारण दाल-चावल ही क्यों न हो। वह रात 10 बजे तक सो जाते थे। उन्हें मीडिया इंटरव्‍यूज से डर लगता था। वह अक्‍सर इंटरव्‍यू की बात सुन तनाव में आ जाते थे और कहते थे, ‘मैं एक साधारण आदमी हूं। मेरे पास उन्हें बताने के लिए कुछ भी मसालेदार नहीं है।’

मोहम्‍मद रफी का लंदन में अपना घर था। यास्‍मीन बताती हैं, ‘वहां पहुंचकर मैंने दाल-चावल और चटनी बनाई। डैडी ने प्‍याज और टमाटर का सलाद भी तैयार करने को कहा। घर का खाना खाते ही उनके चेहरे पर मुस्‍कान बिखर गई। उन्‍होंने मुझे दुआएं दीं। वह वाकई खुशी से किसी बच्‍चे की तरह चहक रहे थे। फिर वहां से हम तीनों वापस कोविंट्री के लिए रवाना हो गए।’

सादगी पसंद मोहम्मद रफी बड़ी जल्‍दी इस दुनिया से रुखसत हो गए। उनका निधन 31 जुलाई, 1980 को रात 10:25 बजे दिल का दौरा पड़ने से हुआ। वह 55 साल के थे। बताया जाता है कि उन्‍होंने अपना आख‍िरी गीत लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के लिए फिल्‍म ‘आस पास’ में गाया था। हालांकि, कुछ रिपोर्ट्स में कहा गया है कि रफी साहब ने ‘शाम फिर क्यों उदास है दोस्त… तू कहीं आस पास है दोस्त’ गाने को अपनी मौत से कुछ ही घंटे पहले रिकॉर्ड किया था।