आज हम आपको बांग्लादेश के अंतरिम पीएम मोहम्मद यूनुस के बारे में जानकारी देने वाले हैं! पड़ोसी देश बांग्लादेश में राजनीतिक संकट पैदा हो गया है। विपक्ष के उकसावे से छात्र आंदोलन हिंसक हो गया जिसके दबाव में शेख हसीना को प्रधानमंत्री पद छोड़ना पड़ा। शेख हसीना को अपना वतन बांग्लादेश दोबारा छोड़ना पड़ा। 49 वर्ष पहले शेख हसीना के पिता शेख मुजीब उर रहमान की सैन्य तख्तापलट में हत्या कर दी गई थी। तब शेख हसीना और उनकी बहन के सिवा परिवार में कोई नहीं बच पाया था। दोनों बहनें जर्मनी में थीं, इस कारण किसी तरह शेख मुजीब उर रहमान का वंश बच पाया। लेकिन आज करीब आधी सदी होते ही शेख हसीना फिर बेघर हो गई हैं। उन्हें तब भी भारत ने शरण दी थी और आज भी वह भारत में ही हैं। इस बात से हसीना विरोधी बांग्लादेशी बुरी तरह चिढ़ गए हैं। इनमें एक हैं मुहम्मद यूनुस जो कट्टरपंथ की आग में धधकते बांग्लादेश में भारत के खिलाफ आग उगल रहे हैं।मोहम्मद यूनुस के इसी ग्रामीण बैंक और माइक्रो क्रेडिट के मॉडल को कई देशों ने अपनाया है। ये कॉन्सेप्ट दुनियाभर में फला-फूला और साल 2006 में मोहम्मद यूनुस और उनके बैंक को नोबेल शांति पुरस्कार से नवाज़ा गया था। मुहम्मद यूनुस बांग्लादेश ग्रामीण बैंक के संस्थापक हैं। उन्हें शांति का नोबेल पुरस्कार प्राप्त है। यूनुस का शेख हसीना से छत्तीस का आंकड़ा रहा है। शेख हसीना उन्हें सुदखोर मानती हैं, वहीं मुहम्मद यूनुस शेख हसीना को बांग्लादेश में लोकतंत्र का कातिल बताते हैं। लेकिन हैरत की बात है कि मो. यूनुस बांग्लादेश में लोकतंत्र की हत्या के लिए भारत को भी सहायक बताते हैं। वो कहते हैं कि शेख हसीना भारत की सह पाकर ही चुनावों के बजाय तानाशाही के जरिए बांग्लादेश की सत्ता पर काबिज रही हैं।
मो. यूनुस बांग्लादेश की नई अंतरिम सरकार के प्रमुख सलाहकार नियुक्त हो सकते हैं। उनका कहना है कि भारत ने अपने यहां लोकतंत्र के फलने-फूलने के लिए पूरी शिद्दत से काम किया, लेकिन पड़ोसी बांग्लादेश में इसके उलट तानाशाही का समर्थन किया। उन्हें इस बात की भी तकलीफ है कि भारत ने बांग्लादेश के ताजा बवाल को आंतरिक मामला बताया। यूनुस का कहना है कि बांग्लादेश भारत का पड़ोसी देश है तो यह कैसे हो सकता है कि यहां बिगड़े माहौल से भारत आंखें मूंद ले? उन्होंने कहा कि बांग्लादेश भी दक्षेस का सदस्य है। इस लिहाज से भारत की जिम्मेदारी बनती है कि वह बांग्लादेश में लोकतंत्र की बहाली का रास्ता तैयार करने में मदद करे।
नोबेल विजेता मो. यूनुस का कहना है कि बांग्लादेश में आग लगेगी तो लपटें पड़ोसी देशों तक भी पहुंचेगी। उन्हें इस बात का भी रोष है कि भारत हमेशा शेख हसीना के साथ खड़ा क्यों रहता है। भारत के लिए मो. यूनुस के ऐसे विचार काफी घातक साबित हो सकते हैं। बांग्लादेश में न अभी अंतरिम सरकार बनी है और ना मो. यूनुस को नई सरकार में कोई पद मिला है। उससे पहले ही मो. यूनुस का भारत विरोधी नजरिया चिंताजनक है। मालदीव में मुहम्मद मुइज्जू भी राष्ट्रपति चुनाव के पहले से ही भारत के खिलाफ जहर उगलने लगे थे और राष्ट्रपति बनने के बाद भी भारत का विरोध जारी रखा। इस कारण मालदीव के साथ भारत के रिश्तों में बहुत खटास आ गई। अब मुहम्मद यूनुस जैसों की वजह से बांग्लादेश भी भारत विरोधी रास्ते पर ही आगे बढ़ सकता है।
बता दें कि रिपोर्ट के मुताबिक, साल 1974 में बांग्लादेश में अकाल ने उन्हें परेशान कर दिया था। इसके बाद उन्होंने गरीबी के आर्थिक पहलुओं का अध्ययन शुरू किया। उन्होंने अपने स्टूडेंट्स से खेतों में जाकर किसानों की मदद के लिए कहा। हालांकि उन्हें जल्द ही समझ में आ गया कि इससे भूमिहीन लोगों को कोई लाभ नहीं होगा। मोहम्मद यूनुस को समझ में आया कि गरीबों को रुपयों की जरूरत है, जिससे वह छोटा-मोटा कारोबार शुरू कर सकें। मोहम्मद यूनुस ने साल 1976 में माइक्रो लोन की शुरुआत की थी। यह एक ऐसा सिस्टम था जिससे बांग्लादेश के गरीबों की जरूरतें पूरी हो सकती थीं। कर्जदार छोटे-छोटे समूह बनाकर कुछ हजार का भी लोन ले सकते थे। ग्रामीण बैंक प्रोजेक्ट को साल 1983 में बांग्लादेश सरकार ने एक अलग स्वतंत्र बैंक बना दिया, जिससे इसमें एक हिस्सा सरकार का भी हो गया। आज मोहम्मद यूनुस के इसी ग्रामीण बैंक और माइक्रो क्रेडिट के मॉडल को कई देशों ने अपनाया है। ये कॉन्सेप्ट दुनियाभर में फला-फूला और साल 2006 में मोहम्मद यूनुस और उनके बैंक को नोबेल शांति पुरस्कार से नवाज़ा गया था।