क्या नई रणनीति अपनाने जा रहे हैं राहुल गांधी?

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आने वाले समय में राहुल गांधी नई रणनीति अपनाने जा रहे हैं! नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी आम जनों की आवाजों को बखूबी संसद तक पहुंचा रहे हैं। हालांकि बतौर जनप्रतिनिधि यह कोई नई बात नहीं है कि आप आम लोगों की आवाज संसद तक पहुंचाए। लेकिन नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद राहुल गांधी न सिर्फ आम लोगों की आवाज संसद तक पहुंचाने की मुहिम में जुटे हुए हैं, बल्कि वह समाज के ऐसे तबकों तक को संसद तक पहुंचा रहे हैं, जिनके लिए न सिर्फ दिल्ली, बल्कि संसद भी बहुत दूर की चीज थी। इनमें किसानों से लेकर मछुआरे तक शामिल हैं। हालांकि राहुल का आम लोगों से संवाद भी कोई नई बात नहीं है। सांसद बनने के बाद से ही वह लगातार समाज के अलग-अलग तबकों से संपर्क करते रहे हैं, लेकिन इसमें एक बदलाव तब आया, जब वह भारत जोड़ो यात्रा जैसा एक बड़ा जन संपर्क अभियान का हिस्सा बने तो वहीं दूसरा बदलाव नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद आया है। 18वीं लोकसभा के अब तक आयोजित दो सत्रों में राहुल गांधी ने संसद में उन लोगों से मुलाकात की, जो आमतौर पर संसद नहीं आ पाते थे। उन्होंने न सिर्फ उन्हें संसद भवन बुलाया, बल्कि उनके लिए संसद के दरवाजे भी खुलवाए। इन दो सत्रों में राहुल गांधी ने किसानों, मछुआरों, स्टूडेंट्स, वकीलों, सफाई कर्मचारियों, लोको पायलट, सर्व सेवा संघ, फूड सिक्योरिटी कानून के लिए काम करने वाले प्रतिनिधि तक शामिल हैं। इनके अलावा, ओलिंपिक मेडल विजेता से मुलाकात हो या मीडिया पर लगी रोक को उठाने का मुद्दा, राहुल लगातार समाज के अलग-अलग तबकके तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं। गौरतलब है कि संसद सत्र के दौरान राहुल गांधी ने रणनीति बनाई है कि वह अलग-अलग तबकों से अपने संसद परिसर में बने ऑफिस में मिलेंगे।

गौरतलब है कि जब किसानों का एक जत्था उनसे मिलने आया, तो संसद भवन में उनके प्रवेश को रोका गया। राहुल ने तुरंत इस मुद्दे को मीडिया में उठाया कि किसानों को उनसे मिलने नहीं दिया जा रहा है। उन्होंने यहां तक कहा कि अगर उन्हें भीतर नहीं आने दिया जाएगा तो वह खुद उनसे मिलने वहां जाएंगे। इतना ही नहीं, वह उनसे मिलने आनन-फानन में संसद के बाहर दरवाजे तक जाने को तैयार हो गए। हालांकि बाद में किसानों को संसद के भीतर आने की अनुमति दे दी गई। दरअसल, किसान मुद्दों को लेकर विपक्ष लगातार मोदी सरकार को घेर रहा है। एमएसपी का कानूनी गांरटी की अपनी मांग को लेकर किसान आज तक शंभु बॉर्डर पर धरने पर बैठे हुए हैं। राहुल संसद से लेकर सड़क तक लगातार कह रहे हैं कि किसानों को एमएसपी की कानूनी गांरटी दी जाए। वहीं उन्होंने यहां तक कहा कि सत्ता में आने के बाद वह एमएसपी काे कानूनी जामा पहनाएंगे। कुछ ऐसा ही मामला मछुआरों को लेकर भी हुआ। जब मुछआरों की एंट्री रोकी गई तो राहुल उनके मिलने रिसेप्शन तक जा पहुंचे और उन्होंने संसद के रिसेप्शन हॉल में ही अपनी जनसंसद लगा ली। जिस दिन मछुआरों का जत्था संसद पहुंचा, उस दौरान संसद के दोनों सदनों में विपक्षी सांसदों ने प्रमुखता से इस मुद्दे को उठाया था।

रोचक है कि जब लोकोपायलट का डेलिगेशन मिलने पहुंचा तो राहुल न सिर्फ उनसे मिले और उनके मुद्दे जाने, बल्कि उस डेलिगेशन के साथ बाकायदा रेलवे मंत्री से मिलने गए। गौरतलब है कि राहुल की लोकोपायलट से हुई पहली मुलाकात को लेकर कई तरह के आरोप व विवाद सामने आए थे। जिसके बाद राहुल गांधी ने बाकायदा लोकोपायलट के एक दल से मुलाकात की। सरकार द्वारा मीडिया को संसद के मकर द्वार तक जाने पर लगी रोक को लेकर अपने सरोकार राहुल गांधी ने बाकायदा सदन के भीतर उठाए, जहां उन्होंने कहा कि आपने मीडिया को पिंजरे में बंद कर दिया है। मीडिया को एक सीमित जगह पर रखने के दौरान राहुल गांधी सहित तमाम विपक्ष के नेता मीडिया से मिलने उनके कांच के बने कंटेनर नुमा मीडिया एनक्लोजर तक गए थे।

राहुल गांधी की इस कवायद के पीछे रणनीति है कि समाज के अलग-अलग तबकों को संसद के भीतर आने का मौका मिले। उल्लेखनीय है कि इनमें से कई ऐसे वर्ग हैं, जो अपने मुद्दों को लेकर सरकार की नीतियों को से असंतुष्ट हैं। जाहिर है, ऐसे तबके जब संसद में आते हैं तो सरकार के लिए कई बार काफी असहज स्थिति हो जाती है। लेकिन राहुल गांधी के नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद उनका संवैधानिक दर्जा होने के बाद सत्तारूढ़ दल चाहकर इनके प्रवेश को लेकर एक हद के बाद विरोध नहीं कर सकता। सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस की रणनीति है कि आने वाले समय में राहुल गांधी संसद सत्र के दौरान लगातार आगे भी अपने दफ्तर में विभिन्न तबकों के प्रतिनिधियों से मुलाकात जारी रखेंगे। इसके पीछे एक रणनीति है कि आप जिन मुद्दों को सदन में उठा रहे है, उस दौरान अगर उससे जुड़े लोगों को संसद भवन में बुलाते हैं तो उसका असर मीडिया से लेकर समाज तक में व्यापक होता है।