यह सवाल उठना लाजिमी है कि लड़कियों के प्रति दरिंदगी का यह दौर आखिर कब खत्म होगा! यह सवाल दुनियाभर के पुरुषों से है। क्या आपके अंदर एक बलात्कारी छिपा है? स्कूल जाती बच्ची, काम पर जाती युवती या मॉल-मार्केट में शॉपिंग को निकली इस आधी दुनिया को देखकर आपके मन में अश्लील विचार आने लगते हैं? उनके गहरे गले, ब्रा स्ट्रिप, नाभि-दर्शना लिबास, जाघें दिखाती जीन्स और शॉर्ट्स आपको क्यों परेशान करते हैं? आपकी आंखें उनकी शर्ट के दो बटनों के बीच के गैप से कुछ झांकने की कोशिश में क्यों रहती हैं? छोड़ें इन बातों को…सिर से पैर तक ढकी युवती के लिए भी आपका दिमाग कुंठित नजरिया उभार लेता है? सोच ऐसी है कि मौका मिला तो जोर-जबर्दस्ती से बाज नहीं आएंगे? तो संभल जाइए! आपके अंदर रेपिस्ट छिपा है। यह बात भले आप नकार दें। ऊपर पूछे हर सवाल का ‘नहीं’ कहकर जवाब दे दें।वर्कप्लेस पर यौन उत्पीड़न रोकने की नीति के डर से अगर हमारी ऐसी हिम्मत न भी पड़े तो ऐसा सोच भर लेना,क्या हमें डरावना नहीं बनाता। ऐसा नहीं है कि इन घटनाओं से निपटने के लिए कानून नहीं हैं। निर्भया कांड के बाद हुए कानून में बदलावों और बच्चों के उत्पीड़न से जुड़े POCSO ने दोषियों को सख्त सजा दिलाई है। जेंडर इक्वेलिटी, कुछ भी पहनने की आजादी और इस आधी दुनिया की बराबरी की लाख बातें आप करें, लेकिन देश में ‘हर 16 मिनट में एक बलात्कार’ जैसे NCRB के सरकारी हालिया आंकड़े यही कहते हैं कि पुरुष सरासर ‘झूठ’ बोल रहे हैं। महाराष्ट्र के बदलापुर में 4-4 साल की बच्चियों से दरिंदगी और एमपी के शहडोल में 90 साल की बुजुर्ग महिला से हैवानियत बताती है कि बलात्कार उम्र का मोहताज नहीं है। इलीट क्लास से लेकर झुग्गी-झोपड़ी तक,शायद ही ऐसी कोई जगह हो, जहां ऐसे मामले नहीं आते हैं। भारत ही नहीं, विकसित अमेरिका और यूरोपीय देशों की हालत भी खतरनाक है।
मैं और आप नहीं, तो कौन हैं ये दरिंदे? राष्ट्रीय अपराध रेकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़े कहते हैं कि देश में 95% मामलों में कोई घर का, रिश्तेदार या पहचान वाला ही गुनहगार होता है। अब क्या कहना है इस बारे में। अखबार ऐसी खबरों से भरे होते हैं। पिता ने बेटी को तो भाई ने बहन को नहीं छोड़ा है। कुछ मामलों में मां ने बेटे पर ही ऐसे आरोप लगाए हैं। वह दिन दूर नहीं जब घर में ही बेटियां पिता पर तो बहनें अपने भाई पर भरोसा करना छोड़ देंगी या कहें कि छोड़ रही हैं। भले ही ऐसे मामले समुद्र में सूई ढूंढने के बराबर हों, पर हालात डरावने हैं। क्या हम पुरुष अपने से अलग इस आधी दुनिया को सिर्फ और सिर्फ अपनी कुंठित नजरिए से देखने लगे हैं। बस और मेट्रो में साथ खड़ी/बैठी लड़की से चिपकने की कोशिश, राह चलती लड़की पर ताने कसना। स्कूल/कॉलेज में छेड़छाड़, ऑफिस या वर्क प्लेस में महिला सहकर्मियों का अश्लील मजाक उड़ाना। समाज या POSH वर्कप्लेस पर यौन उत्पीड़न रोकने की नीति के डर से अगर हमारी ऐसी हिम्मत न भी पड़े तो ऐसा सोच भर लेना,क्या हमें डरावना नहीं बनाता। ऐसा नहीं है कि इन घटनाओं से निपटने के लिए कानून नहीं हैं। निर्भया कांड के बाद हुए कानून में बदलावों और बच्चों के उत्पीड़न से जुड़े POCSO ने दोषियों को सख्त सजा दिलाई है!
बॉम्बे हाई कोर्ट ने तो यहां तक कह दिया है कि नाबालिग का पीछा करना भी यौन उत्पीड़न माना जाएगा। फिर भी ऐसे मामले रुक नहीं रहे हैं। आम सुलभ इंटरनेट के जरिए पॉर्न वेबसाइट्स तक आसान पहुंच, अश्लील कहानियां, बाल मन से सोच को अश्लील बनाने वाली कई वजहें हो सकती हैं। बता दें कि सिर से पैर तक ढकी युवती के लिए भी आपका दिमाग कुंठित नजरिया उभार लेता है? सोच ऐसी है कि मौका मिला तो जोर-जबर्दस्ती से बाज नहीं आएंगे? तो संभल जाइए! आपके अंदर रेपिस्ट छिपा है। यह बात भले आप नकार दें। कई बहाने हो सकते हैं कि महिलाएं शरीर दिखाकर लुभाती हैं।राष्ट्रीय अपराध रेकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े कहते हैं कि देश में 95% मामलों में कोई घर का, रिश्तेदार या पहचान वाला ही गुनहगार होता है। अब क्या कहना है इस बारे में। अखबार ऐसी खबरों से भरे होते हैं। हम उनके पहनावे और रात में काम करने की आदतों पर सवाल उठाएं, लेकिन इससे पहले जरा अपने अंदर झांककर देख लें। संत कबीर दास सैकड़ों वर्षों पहले सही कह गए हैं- ‘…जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।’