Thursday, November 21, 2024
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क्या हम हो रहे हैं बच्चियों के प्रति दरिंदगी के आरोपी?

वर्तमान में हम ही बच्चियों के प्रति दरिंदगी के आरोपी बनते जा रहे हैं! कोलकाता में ट्रेनी डॉक्टर की बर्बरता के साथ बलात्कार के बाद नृशंस हत्या ने 12 साल पहले राजधानी दिल्ली के निर्भया कांड की याद ताजा कर दी है। निर्भया के साथ हुई दरिंदगी ने मानवता में यकीन रखने वाले हर शख्स की संवेदना झकझोर दी थी। बीते 8-9 अगस्त की रात को कोलकाता के आरजी कर अस्पताल में जूनियर डॉक्टर के साथ हुई जघन्य वारदात ने फिर से देश को आंदोलित कर दिया। हर कोई यही पूछ रहा है कि देश कई क्षेत्रों में तेज गति से प्रगति कर रहा है, लेकिन महिला सुरक्षा के मामले में सफलता क्यों नहीं मिल पा रही है? आंकड़े बताते हैं कि जब निर्भया कांड की दुखद वारदात हुई थी, उस वर्ष 2012 में देशभर में महिलाओं के बलात्कार के 24,915 मामले हुए थे। तब से एक दशक बीत जाने के बाद भी रेप की घटनाएं घटने के बजाय बढ़ती ही रहीं। इन 10 वर्षों में कोई एक साल ऐसा नहीं गया जब रेप के आंकड़े 2012 के मुकाबले कम रहे। फिर सवाल उठता है कि निर्भया कांड के बाद महिला सुरक्षा के कानून में आई कड़ाई के बाद भी हैवानियत की घटनाएं कम क्यों नहीं हो रही है?वर्ष 2012 से 2022 के बीच देश में रेप की घटनाओं पर नजर डालें तो कुल 39,068 मामलों के साथ वर्ष 2016 में रेकॉर्ड बन गया। तब कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से रेप के मामलों में फटाफट फैसले के लिए फास्ट ट्रैक हियरिंग की व्यवस्था करने की गुहार लगाई थी। राहुल ने 2018 में ट्वीट किया था, ‘2016 में नाबालिगों से रेप के 19,675 केस आए थे। यह शर्मनाक है। पीएम को चाहिए कि वो इन मामलों को फास्ट ट्रैक करें और दोषियों को सजा दिलवाएं, अगर वो हमारी बेटियों को न्याय दिलवाने को लेकर गंभीर हैं तो।’

 निर्भया कांड के बाद पूरे देश में उपजे आक्रोश के बाद तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने कानून में बड़ा परिवर्तन किया था। सरकार ने 3 फरवरी, 2013 को आपराधिक कानून संशोधन अध्यादेश लाया था। इसके तहत भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराओं 181 और 182 में बदलाव किए गए। इनमें बलात्कार से जुड़े नियमों को काफी कठोर करते हुए दोषी को फांसी की सजा दिलाने तक का प्रावधान किया गया। नए कानून के तहत किसी महिला को गलत तरीके से छूने, छेड़छाड़ और यौन शोषण के अन्य तरीकों को भी रेप की श्रेणी में डाल दिया गया। इतना ही नहीं, नाबालिगों के रेप के लिए पॉक्सो के नाम से नया कानून लाया गया। पॉक्सो एक्ट के तहत आरोपी की तुरंत गिरफ्तारी का प्रवाधान किया गया है। उसे जमानत भी नहीं मिलती है जबकि पीड़ित को संरक्षण दिया जाता है।

2014 में जब देश में सत्ता परिवर्तन हुआ और मनमोहन सिंह की जगह नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने तो अगले वर्ष 2015 में किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम आया। नए कानून के तहत 16 से 18 वर्ष की आयु के यौन हिंसा के आरोपी पर भी व्यस्क की तरह मुकदमा चलाने का प्रावधान कर दिया गया। फिर वर्ष 2018 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने नैशनल डेटाबेस ऑन सेक्सुअल ऑफेंडर्स (एनडीएसओ) लॉन्च किया। इस डेटाबेस से कानून प्रवर्तन एजेंसियों को अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई में आसानी होती है। इस डेटाबेस में रेप, गैंग रेप, छेड़खानी, पीछा करना, बच्चों का यौन शोषण आदि जैसे मामलों की जानकारियां संग्रहित होती हैं। वर्ष 2019-20 में केंद्र सरकार ने 1,023 फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट बनाए जिनमें 389 स्पेशल पॉक्सो कोर्ट हैं। इसका मकसद पीड़ित को त्वरति न्याय और दोषियों को उसके किए की जल्द से जल्द सजा दिलाना है। राज्यसभा सांसद जवाहर सरकार के सवाल पर तत्कालीन गृह राज्य मंत्री ने बताया था कि 31 दिसंबर, 2021 तक देश के 27 राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों में 700 फास्ट ट्रैक कोर्ट ऑपरेशन थे जिनमें 383 पूर्णतः पॉक्सो कोर्ट थे।

कितनी दुखद स्थिति है कि एक तरफ कानून तो कड़े होते गए, दूसरी तरफ रेप के मामले भी बढ़ते रहे। 2012 के बाद देश के कोने-कोने से महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा की जघन्य वारदातें सामने आती रहीं, छेड़खानी और पीछा करने जैसे मामलों के तो कहने ही क्या। कई हाई प्रोफाइल केस सामने आए जिनमें महिलाओं की आबरू से खिलवाड़ के आरोप लगे। कई मामलों में पीड़िता की मौत हो गई और आज तक पता ही नहीं चल पाया कि क्या उसकी मौत हुई थी या हत्या और क्या हत्या से पहले रेप भी हुआ था। ऐसे में यह गंभीर मंथन का विषय है कि हमारे कानून क्यों पूरी तरह निष्प्रभावी रहे? अगर निर्भया के आरोपियों को फांसी से भी कोई सबक नहीं सीख रहा तो इसमें कोई दो राय नहीं कि समस्या की जड़ें बहुत गहरी हैं। अगर इसकी तह में जाएं तो गंभीर समस्याओं में एक जो बंद आंखों से भी दिख जाती है, वो है राजनीति। कहीं सरकार, दल और नेता की छवि की चिंता तो कहीं वोटबैंक का टेंशन।

कोलकाता कांड के बाद देश में उबाल है। चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े लोगों के साथ-साथ अन्य क्षेत्रों और आम जीवन को लोगों को बस एक बात की आशंका ही सता रही है कि अगर ऐसी नृशंसता पर लगाम नहीं लगी तो उनकी बच्चियों का क्या होगा? एक देशप्रेमी नागरिक के तौर पर यह इसलिए भी चिंता की बात है कि आज जब भारत चौतरफा तरक्की कर रहा है तो रेप जैसी अमानवीय घटनाएं लगातार कलंकित कर रही हैं। ऐसे में महिला सुरक्षा के लिए चौतरफा पहल करनी होगी। पुलिस और न्यायियक सुधार के जरिए कानूनी-कार्रवाई की व्यस्था को बिल्कुल चुस्त-दुरुस्त करना होगा तो राजनीति और समाज जीवन में नैतिकता को ज्यादा से ज्यादा तवज्जो देने की आदत डालनी होगी। स्वार्थ में समाज को गंदा करना सबसे बड़ा गुनाह है। हमें नेताओं को बताना होगा कि अगर वो अपराधियों में जाति, धर्म और वोट ढूंढेंगे तो उनके बुरे दिन आने तय हैं। हम ऐसा संदेश तभी दे पाएंगे जब एक समाज के रूप में हम निकृष्ट सोच से ऊपर उठ सकें। जब हम खुद यह मानने लगें कि अपराधी, अपराधी ही होता है, वह किसी जाति, धर्म या समुदाय का हो।

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