सुप्रीम कोर्ट ने आखिर ED को क्यों लगाई फटकार?

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हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने ED को फटकार लगा दी है! सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय से सवाल किया कि क्या मनी लॉन्ड्रिंग मामलों में आरोपियों को दस्तावेज देने से इनकार करना उनके मौलिक अधिकारों का हनन नहीं है? कोर्ट ने केंद्रीय एजेंसी से यह भी पूछा कि क्या ईडी केवल तकनीकी आधार पर ही आरोपियों को दस्तावेज देने से मना कर सकती है? यह मामला दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, आप नेता मनीष सिसोदिया और BRS नेता के. कविता समेत कई बड़े नेताओं से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस से जुड़ा है।सुप्रीम कोर्ट ने यह सवाल 2022 के सरला गुप्ता बनाम ED केस की सुनवाई के दौरान उठाया। यह मामला इस बात से जुड़ा है कि क्या जांच एजेंसी आरोपी को उन अहम दस्तावेजों से वंचित कर सकती है, जिन पर वो मनी लॉन्ड्रिंग मामले में केस चलने से पहले के फेज में भरोसा कर रही है। जस्टिस ए.एस. ओका, जस्टिस ए. अमानुल्लाह और जस्टिस ए.जी. मसीह की पीठ ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में दस्तावेजों की आपूर्ति से जुड़ी अपील पर सुनवाई की। पीठ ने ED से पूछा कि क्या एजेंसी की ओर से मनी लॉन्ड्रिंग जांच के दौरान जब्त किए गए दस्तावेजों को आरोपी को देने से इनकार करना उनके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं है?

सर्वोच्च अदालत ने कहा कि समय बदल रहा है। हमारा मकसद न्याय देना है। क्या हम इतने कठोर हो जाएंगे कि जब कोई व्यक्ति केस का सामना कर रहा हो, तो हम कहें कि दस्तावेज सुरक्षित हैं? क्या यह जस्टिस होगा? कोर्ट ने आगे कहा कि ऐसे कई मामले हैं जिनमें जमानत दी जाती है, लेकिन आजकल मजिस्ट्रेट के मामलों में लोगों को जमानत नहीं मिल रही है। समय बदल रहा है। क्या हम इतने कठोर हो सकते हैं?बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने पूछा कि क्या आरोपी को सिर्फ तकनीकी आधार पर दस्तावेज देने से मना किया जा सकता है? जस्टिस अमानुल्लाह ने पूछा कि सब कुछ पारदर्शी क्यों नहीं हो सकता? ED की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस.वी. राजू ने जवाब दिया कि अगर आरोपी को पता है कि दस्तावेज हैं, तो वह पूछ सकता है। लेकिन अगर उसे नहीं पता और सिर्फ अनुमान है, तो वह इस पर जांच नहीं करवा सकता। इस पर कोर्ट ने पूछा कि कैसे होगा दस्तावेजों पर भरोसा? क्या यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन नहीं होगा? जो जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है।

कोर्ट ने आगे कहा कि PMLA मामले में, आप हजारों दस्तावेज प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन आप उनमें से केवल 50 पर ही भरोसा करते हैं। आरोपी को हर दस्तावेज याद नहीं हो सकता। फिर वह पूछ सकता है कि मेरे घर से जो भी दस्तावेज बरामद हुआ है, वह दिया जाए। इस पर सरकारी वकील ने कहा कि आरोपी के पास दस्तावेजों की एक सूची है और जब तक यह जरूरी और उचित न हो, तब तक वह उन्हें नहीं मांग सकता। उन्होंने कहा कि मान लीजिए कि वह हजारों पन्नों के दस्तावेजों के लिए आवेदन करता है, तो क्या करें? इस पर पीठ ने कहा कि यह मिनटों का मामला है, इसे आसानी से स्कैन किया जा सकता है।

अदालत ने कहा कि अगर कोई आरोपी जमानत या मामले को खारिज करने के लिए दस्तावेजों पर निर्भर है, तो उसे ये मांगने का अधिकार है। हालांकि, सॉलिसिटर जनरल एस.वी. राजू ने इसका विरोध किया। उन्होंने कहा कि नहीं, ऐसा कोई अधिकार नहीं है। वह अदालत से इस पर गौर करने का अनुरोध कर सकते हैं। मान लीजिए कि ऐसा कोई दस्तावेज नहीं है और यह स्पष्ट रूप से दोषसिद्धि का मामला है और वह केवल मुकदमे में देरी करना चाहता है, तो यह अधिकार नहीं हो सकता। इसके बाद अदालत ने मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया है। बता दें कि जांच एजेंसी आरोपी को उन अहम दस्तावेजों से वंचित कर सकती है, जिन पर वो मनी लॉन्ड्रिंग मामले में केस चलने से पहले के फेज में भरोसा कर रही है। जस्टिस ए.एस. ओका, जस्टिस ए. अमानुल्लाह और जस्टिस ए.जी. मसीह की पीठ ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में दस्तावेजों की आपूर्ति से जुड़ी अपील पर सुनवाई की। कई हाई-प्रोफाइल विपक्षी नेताओं को भ्रष्टाचार विरोधी कानून के तहत केंद्रीय एजेंसियों के गिरफ्तार किए जाने के बाद PMLA बार-बार जांच के दायरे में आया है।