जानिए भारत की नई न्यूक्लियर मिसाइल सबमरीन INS अरिघात के बारे में सब कुछ!

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आज हम आपको भारत की नई न्यूक्लियर मिसाइल सबमरीन INS अरिघात के बारे में जानकारी देने वाले हैं! न्यूक्लियर मिसाइल सबमरीन INS अरिघात गुरुवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की मौजूदगी में स्ट्रैटजिक फोर्सेस कमांड में शामिल हो गई है। जितने भी न्यूक्लियर वेपन हैं वे सब स्ट्रैटजिक फोर्सेस कमांड के तहत आते हैं, जो सीधे पीएमओ को रिपोर्ट करती है। INS अरिघात भारत की दूसरी न्यूक्लियर मिसाइल सबमरीन (SSBN) है। भारत के पास पहले से INS अरिहंत है। INS मतलब इंडियन नेवल शिप, इसलिए न्यूक्लिर मिसाइल सबमरीन को कमिशन तो नेवी में किया गया है लेकिन यह स्ट्रैटजिक फोर्सेस कमांड के अंडर ही ऑपरेट होगी। भारत ने अडवांस्ड टेक्नॉलजी प्रोजेक्ट (ATV) 1980 में शुरु किया था और इसका पहला प्रोजेक्ट था अरिहंत। अरिहंत को 2009 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पानी में लॉन्च किया था। जिसके बाद सी ट्रायल के बाद अरिहंत को बिना शोरगुल के अगस्त 2016 में कमिशन कर दिया था। यह 6000 टन की है। INS अरिघात भी 6000 टन की है। ये 50 दिन से भी ज्यादा वक्त तक पानी के अंदर रह सकती है। इसकी स्पीड पानी के अंदर 24 नॉटिकल मील प्रतिघंटा है। अरिघात न्यूक्लियर मिसाइल सबमरीन अरिहंत से ज्यादा घातक है। इसकी बेलेस्टिक मिसाइल की रेंज 3500 किलोमीटर तक है।

रक्षा मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा कि अरिहंत क्लास की दूसरी सबमरीन आईएनएस अरिघात को विशाखापट्टनम में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की मौजूदगी में नेवी में कमिशन किया गया। इनमें इतनी ताकत होती है कि पानी की प्रेशर के बावजूद ये अंदर ही अंदर 60 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड को पकड़ सकती हैं। अभी इंडियन नेवी के पास एक भी न्यूक्लियर अटैक सबमरीन नहीं है।रक्षा मंत्री ने कहा कि यह भारत को और मजबूत करेगा और परमाणु प्रतिरोध को बढ़ाएगा साथ ही क्षेत्र में सामरिक संतुलन और शांति स्थापित करने में अहम भूमिका निभाएगा। रक्षा मंत्री ने इसे देश के लिए एक बड़ी उपलब्धि बताया और कहा कि यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार की ‘आत्मनिर्भरता’ प्राप्त करने की प्रतिबद्धता दिखाता है।

रक्षा मंत्री ने नेवी, DRDO और इंडियन इंडस्ट्री के सामूहिक प्रयासों की सराहना की। उन्होंने कहा कि इस आत्मनिर्भरता को आत्मबल की नींव कहा जा सकता है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की राजनीतिक इच्छाशक्ति को याद करते हुए रक्षा मंत्री ने कहा कि आज भारत एक विकसित राष्ट्र बनने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। हमारे लिए हर क्षेत्र में, विशेषकर रक्षा के क्षेत्र में, तेजी से विकास करना जरूरी है। आर्थिक समृद्धि के साथ-साथ हमें एक मजबूत फोर्स की भी आवश्यकता है। हमारी सरकार मिशन मोड पर काम कर रही है। रक्षा मंत्रालय के बयान में कहा गया कि INS अरिघात के निर्माण में उन्नत डिजाइन और तकनीक, रिसर्च का और स्पेशल सामग्रियों का उपयोग किया गया है और यह जटिल इंजीनियरिंग और उच्च कुशल कार्यशैली का नमूना है। इसमें स्वदेशी सिस्टम और उपकरणों को शामिल किया गया है, जिन्हें भारतीय वैज्ञानिकों, स्वदेशी इंडस्ट्री और नेवी के कर्मचारियों ने डिजाइन किया है, बनाया है और इंटीग्रेट किया है। बयान में कहा गया है कि अरिघात, अरिहंत से ज्य़ादा अडवांस्ड है। इससे भारत की क्षमता में वृद्धि होगी और देश के हितों की रक्षा की जा सकेगी।

न्यूक्लियर सबरमीन दो तरह की होती है। न्यूक्लियर अटैक सबमरीन (SSN) और न्यूक्लियर मिसाइल सबमरीन (SSBN)। न्यूक्लियर मिसाइल सबमरीन न्यूक्लियर वेपन कैरी करती हैं। यह न्यूक्लियर डिटरेंस के लिए होती है और इनका रोजमर्रा का ऑपरेशनल रोल नहीं है। न्यूक्लियर अटैक सबमरीन में न्यूक्लियर वेपन नहीं होता है। यह किसी भी कंवेंशनल सबमरीन की तरह होती है लेकिन इस ऊर्जा न्यूक्लियर ईंधन से मिलती है। न्यूक्लियर सबमरीन में एक छोटा न्यूक्लियर रिएक्टर होता है। जिसमें ईंधन के रूप में यूरेनियम का इस्तेमाल करते हुए बिजली पैदा की जाती है। इससे पूरी सबमरीन को पावर की सप्लाई की जाती है।- न्यूक्लियर सबमरीन कंवेंशनल (परंपरागत) सबमरीन की तुलना में कहीं अधिक ताकतवर होती हैं। बता दें कि INS अरिघात भी 6000 टन की है। ये 50 दिन से भी ज्यादा वक्त तक पानी के अंदर रह सकती है। इसकी स्पीड पानी के अंदर 24 नॉटिकल मील प्रतिघंटा है। अरिघात न्यूक्लियर मिसाइल सबमरीन अरिहंत से ज्यादा घातक है। इसकी बेलेस्टिक मिसाइल की रेंज 3500 किलोमीटर तक है। ये लंबे समय तक गहरे पानी के नीचे छिपी रह सकती हैं। इनमें इतनी ताकत होती है कि पानी की प्रेशर के बावजूद ये अंदर ही अंदर 60 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड को पकड़ सकती हैं। अभी इंडियन नेवी के पास एक भी न्यूक्लियर अटैक सबमरीन (SSN) नहीं है।