आज हम आपको बताएंगे कि द कंधार हाइजैक में कितना सच बताया गया है और कितना झूठ बताया गया है! नेटफ्लिक्स की नई वेब सीरीज ‘आईसी-814: द कंधार हाइजैक’ किसी साजिश के तहत बनाई गई है? वेब सीरीज वर्ष 1999 की घटना को कथित ‘कलात्मक स्वतंत्रता’ के सिवा हूबहू पेश करने की कवायद है। लेकिन इसमें विमान हाइजैक की पूरी प्लानिंग करने वाली पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) की भूमिका पर चुप्पी ठान ली गई है तो भारतीय खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) को ‘दुष्ट’ साबित किया गया है। यही वजह है कि मंगलवार को केंद्र सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (आईएंडबी) और नेटफ्लिक्स के बीच बातचीत हुई तो वेब सीरीज के कॉन्टेंट पर सवाल उठे। मंत्रालय के सचिव संजय जाजू ने नेटफ्लिक्स इंडिया की कंटेंट वाइस प्रेसीडेंट मोनिका शेरगिल से कहा कि आखिर वेब सीरीज में विमान हाइजैक के असली मास्टरमाइंड आईएसआई की भूमिका क्यों नहीं दिखाई गई? सूत्रों के हवाले यह खबर दी। इसके अनुसार, जाजू ने शेरगिल से कहा कि वेब सीरीज में असली मीडिया फुटेज का उपयोग करके कुछ पहलुओं को सही ढंग से दर्शाया गया है, लेकिन अन्य महत्वपूर्ण तथ्यों का जिक्र तक नहीं है। सूत्रों के अनुसार, एक एपिसोड में आतंकवादियों की रिहाई और उसके बाद की कहानी बताई गई जिसमें आईएसआई को अपहरण में उसकी भूमिका से मुक्त कर दिया गया है। वरिष्ठ पत्रकार वीर सांघवी ने तो न्यूज वेबसाइट द प्रिंट के लिए लिखे एक लेख में नेटफ्लिक्स की इस वेब सीरीज को आईएसआई का महंगा प्रॉपगैंडा तक बता दिया है। उन्होंने सीरीज में रॉ को अत्याचारी साबित किए जाने पर भी नाराजगी का इजहार किया।
सांघवी ने अपने लेख में साफ-साफ कहा है कि वेब सीरीज पर हिंदू-मुसलमान वाला विवाद हो गया, लेकिन असलियत में मामला तथ्यहीन बातें परोसने का है। उन्होंने कहा कि वेब सीरीज में कई ऐसी चीजें दिखाई गई हैं जिसका दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है। वहीं, कई हकीकतों को छिपा लिया गया है। उन्होंने कहा कि अपहृत विमान के अंदर क्या हुआ, इसका तो ठीक चित्रण किया गया है, लेकिन प्लेन के बाहर जमीन पर क्या हुआ, इसे दिखाने में बहुत जगह फर्जीवाड़ा किया गया। वरिष्ठ पत्रकार वीर सांघवी ने स्पष्ट लिखा, ‘यह एक झूठ है। जिस तरह किसी के बचाव में जानबूझकर तथ्यहीन चीजें दिखाई गईं, उससे यह सीरीज आईएसआई की छवि निखारने की कवायद लगती है।’ वो आगे कहते हैं, ‘यदि आप भारत के हालिया इतिहास की एक अत्यंत महत्वपूर्ण घटना के बारे में झूठ बोलते हैं तो नई पीढ़ी इसी झूठ को सही मान लेगी और सच्चाई दब जाएगी।’
जहां तक बात आतंवादियों के हिंदू कोड नेम रखने की है तो सीरीज बनाने वालों ने यहां भी चालाकी की है। सांघवी कहते हैं, ‘यह सही है कि अपहरणकर्ताओं ने हिंदू उपनामों का इस्तेमाल किया लेकिन वेब सीरीज हमें नहीं बताता कि उनके असली नाम क्या थे।’ चालाकी देखिए, जब ‘भोला’ और ‘शंकर’ पर विवाद हुआ तो नेटफ्लिक्स ने सफाई दे दी कि सरकार ने ही आतंकियों के कोड नेम बताए थे। सवाल है कि सरकार ने उनके असली नाम भी तो बताए थे, वो क्यों छिपा लिए गए? भारत सरकार ने बताया था कि अपहरणकर्ताओं में सुनी अहमद काजी, शाहिद, मिस्त्री जहरा इब्राहीम, शाहिद अख्तर सईद और इब्राहीम अतहर थे। वेब सीरीज ये छिपाता है कि सारे अपहरणकर्ता पाकिस्तानी थे और अपहरण के कुछ दिन बाद भारतीय खुफिया एजेंसियों ने सबकी पहचान कर ली थी।
कहानी में एक भारतीय एजेंट एक पाकिस्तानी डिप्लोमेट की निगरानी करता है और पता चलता है कि यह तो एक महोरा भर है, असली साजिशरर्ता तो अफगानी है। सांघवी कहते हैं कि आज तक ऐसी कोई तथ्य सामने नहीं आया है। कहानी में जिस तरह बताया गया है कि रॉ को तो विमान अपहरण की साजिशों की पहले ही जानकारी मिल गई थी और एक रॉ एजेंट ने इसे रोकने की कोशिश भी की, सफेद झूठ है और कुछ भी नहीं। इसके बाद रॉ को जिस तरह साजिश के बारे में जानकारियां जुटाने के क्रम में नेपाली नागरिकों को प्रताड़ित करते हुए दिखाया गया है, इससे वेब सीरीज निर्माताओं का इरादा स्पष्ट हो जाता है।
वेब सीरीज में भारत के विदेश मंत्रालय और विदेश मंत्री की ऐसी तौहीन की गई है कि एजेंडा साफ हो जाता है। विदेश मंत्री (जसवंत सिंह) को अपने ही ऑफिस में बड़े साइनबोर्ड के नीचे बैठा दिखाया गया है, मानो वो विदेश मंत्री नहीं, पासपोर्ट ऑफिस में रिसेप्शनिस्ट हों। अपहरण की खबर मिलने पर जसवंत सिंह का पात्र इसी ऑफिस से बड़ी-बड़ी प्लानिंग करता है। सांघवी कहते हैं, ‘यह एक और फर्जीवाड़ा है क्योंकि जसवंत सिंह ने इस साजिश में अंतिम समय तक केवल यह कोशिश की थी कि दुनिया हमारी मदद करे जो नहीं हुआ। वह आतंकियों से कैसे निपटें, इसकी रणनीति का प्रमुख हिस्सा नहीं रहे थे।’
ध्यान रहे कि नेटफ्लिक्स की यह प्रॉपगैंडा वेब सीरीज के डायरेक्टर अनुभव सिन्हा हैं। यह सीरीज इंडियन एयरलाइंस की काठमांडू-दिल्ली फ्लाइट के अपहरण पर आधारित है। इसे विमान के पायलट कैप्टन देवी शरण के बयानों और घटना पर श्रीनजॉय चौधरी की लिखी पुस्तक ‘फ्लाइट इंटू फियर’ से प्रेरित बताया गया है। भारतीय एयरलाइंस की उड़ान का अपहरण 24, दिसंबर 1999 को हरकत-उल-मुजाहिदीन के आतंकियों ने किया था। इसे पहले अमृतसर में उतारा गया और फिर अफगानिस्तान के कंधार ले जाया गया। विमान में 179 यात्री थे जिनमें एक ही मौत हो गई। एक हफ्ते तक चली बातचीत के बाद भारत सरकार ने तीन आतंकियों को रिहा किया, तब जाकर यात्रियों की जान बच पाई।