Friday, September 20, 2024
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अमेरिका में जाकर आरएसएस के बारे में क्या बोले राहुल गांधी?

हाल ही में राहुल गांधी ने अमेरिका में जाकर आरएसएस के लिए एक बयान दे दिया है! राहुल गांधी अमेरिका में हैं और आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) पर हमला कर रहे हैं। उन्होंने आरएसएस की विचाराधारा को संकुचित और एकपक्षीय बताया है। उन्होंने इस बात की आलोचना की कि आरएसएस भारत को ‘एक’ विचार मानता है। राहुल कहते हैं कि भारत एक विचार नहीं बल्कि कई विचारों का सम्मिलन है। उन्होंने कहा, ‘आरएसएस का मानना है कि भारत एक विचार है। हमारा मानना है कि भारत बहुत सारे विचारों से मिलकर बना है। हमारा मानना है कि हर किसी को सपने देखने की इजाजत मिले, बिना किसी की परवाह के। बिना उसका धर्म-रंग देखे मौके मिलें।’ लोकसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी पर भी हमला बोला। उन्होंने कहा कि दोनों संविधान को नुकसान पहुंचाने की चाहत रखते हैं जिसे इस बार के लोकसभा चुनावों के वक्त लोगों ने भांप लिया। राहुल ने कहा, ‘चुनाव में भारत के लाखों लोगों को साफ तौर से पता चला कि प्रधानमंत्री संविधान पर हमला कर रहे थे। मैं जो बाते कर रहा हूं वह संविधान में है। राज्यों का संघ, भाषा का सम्मान, धर्म का सम्मान।’ सवाल है कि क्या आरएसएस, बीजेपी या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ये नहीं मानते हैं कि भारत में कई राज्य हैं? क्या वो राज्यों को संविधान में मिले अधिकारों से वंचित कर रहे हैं? क्या आरएसएस-बीजेपी और मोदी भाषा का सम्मान, धर्म का सम्मान नहीं करते? अगर राहुल गांधी का जवाब हां में है तो वो किन पैमानों पर परखकर इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं? फिर सवाल यह भी कि क्या राहुल अपने तय पैमानों पर ही खुद को, कांग्रेस पार्टी को, उनके सहयोगी दलों को परखेंगे?

आरएसएस स्वयं को सामाजिक संस्था बताता है। आरएसएस के स्वयंसेवक भयंकर आपदा के वक्त प्रभावित इलाकों में जाते हैं और राहत कार्य में हिस्सा लेते हैं। आरएसएस के विभिन्न प्रभाग शिक्षा, समाज सेवा जैसे मानवतावादी कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। इतना ही नहीं, युद्ध के वक्त भी आरएसएस भारत और भारतीयों की सेवा में अपनी भूमिका ढूंढता है और उसे निभाता है। कई महापुरुषों ने आरएसएस की भारत भक्ति की प्रशंसा की है। इंदिरा गांधी ने तो स्वतंत्रता दिवस के परेड में आरएसएस को अपनी झांकी शामिल करने की अनुमति दी थी।

आरएसएस की राजनीतिक शाखा बीजेपी की देश में लगातार तीसरी बार सरकार बनी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास’ का नारा दिया है। आरएसएस भी सांप्रदायिक, भाषाई, जातीय, इलाकाई समेत तमाम पैमानों पर एकता सुनिश्चित करने का हरसंभव प्रयास करता रहता है। उसका एक प्रभाग ‘मुस्लिम मंच’ हिंदू-मुस्लिम एकता की दिशा में लंबे समय से कार्यरत है। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत वक्त-वक्त पर गैर-हिंदू धर्मगुरुओं से मिलते रहते हैं।

राहुल गांधी कहते हैं कि आरएसएस महिलाओं से उम्मीद करता है कि वो कम बोलें और घर में रहें। कहते हैं ना प्रत्यक्षम् किम् प्रमाणम् (प्रत्यक्ष को प्रमाण की जरूरत क्या)? भारत ही नहीं, दुनिया भर में वो कौन सा समुदाय है जो महिलाओं से कम बोलने और घरों में रखना चाहता है? राहुल अगर अपने चापलूसों के बजाय किसी भी सामान्य बुद्धि के व्यक्ति से पूछ लेते तो संभवतः एक ही जवाब मिलता। देश के कौन से इलाके में आरएसएस ने महिलाओं को बंधनों में जकड़ने की कोशिश की है? आरएसएस ने कब महिलाओं के लिए ‘जीवन की शर्तें’ तय की हैं या कोई ‘ये करो, ये नहीं करो’ का ‘फतवा’ जारी किया है? आरएसए कार्यकर्ताओं को कब महिलाओं पर अत्याचार करते देश ने देखा है? लेकिन जहां ये सब होता है, क्या राहुल कभी बोलने की हिम्मत जुटा पाएंगे? जवाब है- कभी नहीं। जहां महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले आधे दिमाग का लिखित ऐलान है, राहुल गांधी कभी उधर उंगली उठा पाएंगे? जवाब है नहीं- संभव, कल्पना से परे।

आरएसएस सांप्रदायिक है? हो सकता है। होगा भी। क्या राहुल गांधी को सांप्रदायिकता से दिक्कत है? हो सकता है। होगा भी। लेकिन क्या राहुल गांधी को मुस्लिम सांप्रदायिकता से भी दिक्कत है? बिल्कुल नहीं। अगर ऐसा होता तो वो सबसे पहले अपनी मां सोनिया गांधी से पूछते कि आखिर बटला हाउस एनकाउंटर में मारे गए आतंकियों के लिए उनके आंसू क्यों निकले थे? कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री रह चुके सलमान खुर्शीद ने ये दावा किया है, आरएसएस-बीजेपी ने आरोप नहीं लगाए। इसलिए उन आतंकियों के लिए सोनिया के रोने से ‘धर्मनिरपेक्ष’ राहुल को पीड़ा तो होनी चाहिए जिन्होंने दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा की जान ले ली। क्या राहुल ने कभी सीमी, पीएफआई समेत तमाम मुस्लिम आतंकी संगठनों पर एक शब्द भी बोला है?

अगर ये महिलाओं को घरों की चहारदिवारियों में बंद रखना चाहते हैं तो मोदी सरकार ने कामकाजी महिलाओं के लिए वर्कप्लेस पर ज्यादा सुविधाओं की चिंता क्यों की और उनके लिए मातृत्व अवकाश बढ़ाकर छह हफ्ते क्यों कर दिया? सोचिए, जो महिलाओं को घरों में समेटकर रखना चाहता है, वो घर से निकलने वाली महिलाओं के लिए सुविधाएं बढ़ा रहा है! तमिलनाडु में हिंदी भाषियों, उत्तर भारतीयों के विरोध की राजनीति से ही जो दल सरकार में आता है, उस डीएमके से गठबंधन किसका है?

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