Friday, September 20, 2024
HomeIndian Newsक्या जाट और किसान की नाराजगी बीजेपी पर भारी पड़ सकती है?

क्या जाट और किसान की नाराजगी बीजेपी पर भारी पड़ सकती है?

यह सवाल उठाने आदमी है कि क्या बीजेपी पर जाट और किसान की नाराजगी भारी पड़ सकती है या नहीं! हरियाणा में 5 अक्टूबर को विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। यह चुनाव मई में हुए लोकसभा चुनावों के बाद हो रहे हैं, जिससे सत्ताधारी बीजेपी सरकार को कोई राहत नहीं मिल रही है। आम चुनावों में बीजेपी और कांग्रेस ने राज्य की 10 लोकसभा सीटों में से 5-5 सीटें जीती थीं। 2019 में बीजेपी ने सभी 10 सीटें जीती थीं, जबकि इस बार उसके प्रदर्शन में गिरावट आई है और सीटें घटकर आधी रह गई हैं। 2014 में बीजेपी ने 7 सीटें जीती थीं। पार्टी का वोट शेयर 2019 के 58% से गिरकर 2024 में 46% हो गया है। हालांकि, बीजेपी को शहरी क्षेत्रों में ज्यादा वोट मिले, लेकिन ग्रामीण हरियाणा में उसे कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। पिछले लोकसभा चुनाव और इस बार के विधानसभा चुनाव के बीच एक बड़ा अंतर यह है कि पहले जहां मुकाबला पूरी तरह से बीजेपी और कांग्रेस के बीच था, वहीं अब विपक्षी दल गठबंधन की संभावनाएं तलाश रहे हैं। हालांकि, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (AAP) के बीच बातचीत किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाई है। लेकिन, राज्य की पार्टी जननायक जनता पार्टी (JJP) ने चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया है। यह चुनावी नतीजों को कैसे प्रभावित करेगा, यह देखना होगा।

2014 से पहले तक हरियाणा की राजनीति में बीजेपी एक छोटी पार्टी थी, जिसकी कोई खास हैसियत नहीं थी। लेकिन 2014 में मोदी लहर ने पार्टी को राज्य की 90 में से 47 सीटें दिलाईं। 2019 में, पार्टी बहुमत के आंकड़े से नीचे खिसक गई और उसे केवल 40 सीटें मिलीं। इसके बाद, दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी (JJP) के साथ बीजेपी ने जल्दबाजी में गठबंधन सरकार बनाई। JJP, देवी लाल द्वारा बनाए गए इंडियन नेशनल लोकदल (INLD) से अलग होकर बनी पार्टी है।

2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले दुष्यंत चौटाला ने बीजेपी से अपना गठबंधन तोड़ लिया। तब से, JJP के 4 नेता बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। अप्रैल-मई में हुए लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान, कई गांवों ने बीजेपी की रैलियों और सभाओं का बहिष्कार किया था। पंजाब के किसानों के साथ-साथ हरियाणा के किसान भी कृषि कानूनों पर बीजेपी के रुख के खिलाफ थे। 2021 में पीएम मोदी के तीनों विवादास्पद कृषि कानूनों को वापस लेने के बावजूद, किसान अपनी मांगों पर पूरी तरह से प्रतिक्रिया न मिलने और विरोध प्रदर्शन के दौरान किसानों की मौत पर बीजेपी की चुप्पी को लेकर नाराज हैं। किसानों में यह भावना अब भी बनी रहती है या नहीं, यह बीजेपी के भाग्य का फैसला कर सकता है।

जाति और धार्मिक समीकरणों के हिसाब से बीजेपी हरियाणा में अपनी सफलता गैर-जाट मतदाताओं (दलित, मुस्लिम सहित) पर आधारित मानती है और उसने हरियाणा चुनाव को जाट बनाम गैर-जाट बनाने की कोशिश की है। जाट, जो हरियाणा की आबादी का 20-30% हिस्सा हैं, आमतौर पर बीजेपी का समर्थन नहीं करते हैं। वे बीजेपी को ब्राह्मणों और पंजाबी हिंदुओं की पार्टी मानते हैं। जाट नाखुश हैं। बेरोजगारी, खुद को ओबीसी दर्जा न मिलने, पार्टी द्वारा शुरुआत में किए गए बुरे बर्ताव और बाद में पार्टी नेता बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ पहलवानों द्वारा लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों पर कार्रवाई करने में विफलता को वे बीजेपी से नाराज हैं। लोकसभा चुनाव से पहले अग्निपथ योजना, जिसने सशस्त्र बलों में भर्ती को एक तरह से कॉन्ट्रैक्ट वाला बना दिया, और किसानों का विरोध प्रदर्शन बीजेपी के लिए अभी भी अनसुलझे और कष्टदायक मुद्दे बने हुए हैं।

बीजेपी अब दलित वोट बैंक पर भरोसा नहीं कर सकती है। हरियाणा के अनुसूचित जाति के मतदाताओं (लगभग 20%) ने लोकसभा चुनाव में बीजेपी का साथ छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया था। एक और गठबंधन दलित वोट पर नजर गड़ाए हुए है। JJP ने चंद्रशेखर आजाद के साथ गठबंधन किया है, जिन्होंने लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की नगीना सीट से जीत हासिल की थी। यह गठबंधन बीजेपी के खिलाफ दलित मतदाताओं को और मजबूत कर सकता है। दुष्यंत चौटाला ने कांग्रेस से हाथ मिलाने की संभावना से भी इनकार नहीं किया है।

जाट और किसान-आधारित पार्टियां जैसे इंडियन नेशनल लोकदल (INLD) और जननायक जनता पार्टी (JJP) ने लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन नहीं किया था, लेकिन अब कमजोर बीजेपी को देखते हुए वे अपने अभियान को मजबूत करने की कोशिश कर रही हैं। कांग्रेस ने ओलंपियन पहलवान विनेश फोगाट और बजरंग पुनिया को अपने साथ जोड़ा है। उन्होंने आंदोलनकारी किसानों का भी समर्थन किया है। अब जब फोगाट जुलाना से चुनाव लड़ रही हैं, तो कांग्रेस महिलाओं, युवाओं और किसानों पर ध्यान केंद्रित करते हुए सधे कदम उठा रही है। लोकसभा चुनाव में 5 सीटें जीतने के बाद से कांग्रेस उत्साहित है। सीएसडीएस-लोकनीति के सर्वेक्षणों ने खुलासा किया है कि 2024 के लोकसभा चुनावों में इन समूहों के बीच कांग्रेस के वोट शेयर में काफी वृद्धि हुई है।

हरियाणा में हिंदू राष्ट्रवादी भावनाएं काफी हद तक जीवित हैं। हाल ही में हुई गो हत्या और सांप्रदायिक झड़पें इसका सबूत हैं। जनवरी 2024 में अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन के दौरान हुए जश्न, हरियाणा सरकार के ‘लव जिहाद’ कानूनों को समर्थन और 2023 में नूंह जिले में मुसलमानों पर हुई कार्रवाई को काफी समर्थन मिला था। हिंदुत्व के प्रति समर्थन बीजेपी को सत्ता विरोधी लहर से उबरने में मदद कर सकता है।

हालांकि, हरियाणा बीजेपी भी अपने राज्य नेताओं के विद्रोह का सामना कर रही है। टिकट न मिलने से नाराज होकर कई नेताओं ने पार्टी छोड़ दी है। मतदाता बेरोजगारी, ढहते बुनियादी ढांचे और अधूरे वादों को लेकर मुखर हैं। ऐसे में बीजेपी के सामने एक कठिन चुनौती है। लोकसभा चुनाव से पहले हरियाणा के सोनीपत जिले के एक मतदाता ने कहा कि उन्होंने 15 साल तक बीजेपी को वोट दिया था और वह अयोध्या में राम मंदिर बनने से खुश थे, लेकिन अब वह बीजेपी को वोट देना बंद कर देंगे। उन्होंने कहा कि एक दशक तक बीजेपी के शासन में रहने के बावजूद लोगों के जीवन में कोई सुधार नहीं हुआ है। क्या सत्ता विरोधी लहर निर्णायक कारक होगी? किस हद तक जातिगत समीकरण यह तय करेंगे कि सत्ता किसके हाथ आएगी? क्या वोट बंटेंगे? इन सब सवालों का जवाब 8 अक्टूबर को मिलेगा।

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments