Friday, September 20, 2024
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आखिर हरियाणा में कौन सी जात है सर्वेसर्वा?

आज हम आपको बताएंगे कि हरियाणा में कौन सी जात सर्वेसर्वा बनी हुई है! हरियाणा में होने वाले विधानसभा चुनाव में बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। पिछले 10 साल से बीजेपी का दबदबा रहा है, लेकिन इस बार पहलवानों, किसानों और अग्निवीर योजना से जुड़े युवाओं में नाराजगी देखने को मिल रही है। इस वजह से बीजेपी को आने वाले चुनाव में नुकसान हो सकता है। पार्टी छोड़कर जाने वाले नेताओं और टिकट न मिलने से नाराज लोगों की वजह से भी बीजेपी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। हरियाणा में कई क्षेत्रीय पार्टियां भी चुनाव मैदान में हैं, लेकिन माना जा रहा है कि 90 विधानसभा सीटों में से ज्यादातर पर मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही होगा। 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को वोट शेयर और सीटों के मामले में नुकसान उठाना पड़ा था। वहीं, कांग्रेस को फायदा हुआ था। यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को वोट देने वाले हरियाणा के मतदाताओं ने कुछ ही समय बाद हुए विधानसभा चुनाव में अलग पार्टी को वोट दिया था। ऐसा तब हुआ था जब 2019 के विधानसभा चुनाव में पहलवान, किसान और जवान जैसे मुद्दे नहीं थे। उस समय सिर्फ मनोहर लाल खट्टर की सरकार के कामकाज को लेकर नाराजगी थी। अगर 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन के बावजूद बीजेपी विधानसभा चुनाव में अच्छी जीत हासिल नहीं कर पाई, तो इस बार उसके लिए 2019 के प्रदर्शन से बेहतर प्रदर्शन करना मुश्किल होगा।

दरअसल, 2019 के विधानसभा चुनाव में कुछ महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव की तुलना में बीजेपी का वोट शेयर तेजी से घटा था। ऐसे में, 2024 के लोकसभा चुनावों की तुलना में बीजेपी का वोट शेयर और घटने की संभावना है, खासकर जब वह 10 साल पुरानी सरकार के साथ चुनाव लड़ रही है और 2019 की तुलना में सत्ता विरोधी लहर काफी ज्यादा दिख रही है। 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की जगह नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाना एक तरह से बीजेपी द्वारा हरियाणा में अपनी सरकार से लोगों की नाराजगी को स्वीकार करना था। कुछ हद तक बीजेपी को 2024 के लोकसभा चुनाव में इसकी सजा मिली थी और तब से लेकर अब तक माहौल में कोई खास बदलाव नहीं आया है।

हरियाणा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वोट जुटाने की क्षमता की भी परीक्षा होगी। लोकनीति-सीएसडीएस के सर्वे बताते हैं कि मोदी की अपने व्यक्तिगत करिश्मे से बीजेपी के लिए वोट जुटाने की क्षमता विधानसभा चुनावों की तुलना में लोकसभा चुनावों में कहीं अधिक मजबूत है। लेकिन राहुल गांधी की लोकप्रियता बढ़ने से बीजेपी के सामने इस मामले में भी चुनौती है। लोकनीति-सीएसडीएस द्वारा किए गए चुनाव बाद सर्वे से संकेत मिलता है कि हरियाणा में, 30% मतदाताओं (2019 के लोकसभा चुनावों में 15%) के बीच राहुल प्रधानमंत्री पद के लिए पसंदीदा पसंद थे, जबकि मोदी 32% हरियाणवियों (2019 के लोकसभा चुनावों में 57%) के बीच प्रधानमंत्री पद के लिए पसंदीदा पसंद थे।

मुख्यमंत्री पद की बात करें तो कांग्रेस ने भले ही अपने मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है, लेकिन अलग-अलग समूहों में बंटे होने के बावजूद उसका राज्य नेतृत्व (भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कुमारी सैलजा) खट्टर और सैनी के नेतृत्व वाले बीजेपी के राज्य नेतृत्व की तुलना में ज्यादा दुर्जेय दिखता है। अपने कुछ लोकप्रिय राज्य नेताओं को दरकिनार करने से उसकी संभावनाओं पर और असर पड़ेगा, खासकर जब राज्य नेतृत्व से नाराजगी के स्पष्ट संकेत मिल रहे हों। इसमें कोई शक नहीं कि कांग्रेस का पलड़ा भारी है, लेकिन कुछ चुनावी क्षेत्रों में उसे वो नाराज नेता नुकसान पहुंचा सकते हैं, जिनको टिकट नहीं मिल पाई। इसके अलावा पार्टी के भीतर विभिन्न गुटों के बीच लड़ाई और बड़ी संख्या में छोटे क्षेत्रीय दल भी कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकते हैं। आम आदमी पार्टी ने दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस के जनाधार को कमजोर कर दिया है और गुजरात और गोवा जैसे कुछ अन्य राज्यों में भी उसे नुकसान पहुंचाया है।

हालांकि 2024 के लोकसभा चुनाव में AAP के प्रदर्शन को देखते हुए हरियाणा में यह मजबूत नहीं दिख रही है। कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट के केवल चार विधानसभा क्षेत्रों में ही यह आगे रही, जहां इसने कांग्रेस के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था। जहां कांग्रेस संख्यात्मक रूप से बड़े जाट समुदाय और दलित समुदायों के मतदाताओं को लामबंद करने की उम्मीद कर रही है, वहीं सवाल यह है कि जननायक जनता पार्टी (हाल ही में हरियाणा में भाजपा सरकार में गठबंधन सहयोगी और अब चंद्रशेखर आजाद की आजाद पार्टी के साथ गठबंधन में) और BSP का गठबंधन भारतीय राष्ट्रीय लोक दल (इनेलो) के साथ इस जनाधार में कितनी सेंध लगा सकता है।

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