एक देश और एक चुनाव के लिए सरकार ने क्या बनाया है प्लान?

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आज हम आपको बताएंगे कि एक देश और एक चुनाव के लिए सरकार ने प्लान क्या बनाया है! केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पर रामनाथ कोविंद पैनल की सिफारिशों को मंजूरी दे दी। इसका मकसद लोकसभा के साथ सभी राज्यों के विधानसभा और स्थानीय निकायों का चुनाव कराना है। लेकिन ये इतना भी आसान नहीं है। इसे लागू करने के लिए सरकार को एक नहीं, बल्कि दो-दो संविधान संशोधन विधेयकों को पास कराना होगा जिसके तहत संविधान में कई बदलाव करने पड़ेंगे। खैर, कोविंद कमिटी की रिपोर्ट को कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद अब आगे क्या? ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ को लागू करने के लिए सरकार का आखिर प्लान क्या है? कैसे लागू होगा? आइए एक-एक बात समझते हैं। कोविंद पैनल की सिफारिशों को आगे बढ़ाने के लिए एक क्रियान्वयन समूह का गठन किया जाएगा। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बुधवार को कैबिनेट मीटिंग के बाद बताया कि यह समूह रिपोर्ट में दी गई सिफारिशों को लागू करेगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि एक साथ चुनाव दो चरणों में लागू किए जाएंगे: पहला लोकसभा और विधानसभा चुनाव के लिए और दूसरा आम चुनावों के 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनावों के लिए।

सबसे पहले लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होंगे। इसके बाद दूसरे चरण में पंचायतों और नगर पालिकाओं के स्थानीय निकाय चुनाव आम चुनाव के 100 दिनों के भीतर कराए जाएंगे। सभी चुनावों के लिए एक ही मतदाता सूची होगी। भारत निर्वाचन आयोग (ECI) राज्य चुनाव अधिकारियों की सलाह से मतदाता पहचान पत्र तैयार करेगा। केंद्र पूरे देश में इस बारे में विस्तृत चर्चा शुरू करेगा। पैनल की सिफारिशों को लागू करने के लिए एक क्रियान्वयन समूह का गठन किया जाएगा। वैष्णव ने कहा कि बड़ी संख्या में पार्टियों ने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का समर्थन किया है और केंद्र अगले कुछ महीनों में इस पर आम सहमति बनाने की कोशिश करेगा। उन्होंने यह भी कहा कि कोविंद पैनल की सिफारिशों पर पूरे भारत में तमाम मंचों पर चर्चा की जाएगी।

कोविंद पैनल के मुताबिक जब संसद का सत्र होगा, तो इस कदम को अधिसूचित करने के लिए एक तारीख तय की जानी चाहिए। ⁠उस नियत तिथि के बाद होने वाले राज्य चुनावों से बनने वाली सभी विधानसभाएं केवल 2029 में होने वाले लोकसभा चुनाव तक की अवधि के लिए ही होंगी। इसका मतलब है कि बदलाव के लिए लोकसभा चुनाव के बाद एक तारीख तय की जाएगी। उस तारीख के बाद जिन राज्यों में चुनाव होंगे, उनका कार्यकाल आम चुनावों के साथ तालमेल बिठाने के लिए कम कर दिया जाएगा। इसका मतलब है कि 2024 और 2028 के बीच बनने वाली राज्य सरकारों का कार्यकाल 2029 के लोकसभा चुनावों तक ही होगा। उसके बाद लोकसभा और विधानसभा के चुनाव अपने आप एक साथ होंगे।

⁠मिसाल के तौर पर, एक राज्य जहां 2025 में चुनाव होना है, उसके पास चार साल के कार्यकाल वाली सरकार होगी जबकि 2027 में चुनाव कराने वाले राज्य में 2029 तक केवल दो साल के लिए सरकार होगी। जैसे बिहार में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं तो ‘ONOE’ लागू करने के लिए उसकी विधानसभा का कार्यकाल 2029 तक रहेगा यानी सिर्फ 4 साल का। इसी तरह 2027 में यूपी विधानसभा के चुनाव होने हैं तो उसके बाद बनने वाली सरकार सिर्फ 2 साल रहेगी। ऐसे ही अन्य राज्यों के मामले में भी होगा। फिर 2029 में लोकसभा के साथ-साथ सभी राज्यों के विधानसभा का चुनाव भी मुमकिन हो सकेगा।

इस तरह बनी नई सरकार का कार्यकाल भी लोकसभा के पिछले पूर्ण कार्यकाल की शेष अवधि के लिए ही होगा और इस अवधि की समाप्ति सदन के विघटन के रूप में काम करेगी। इसे अभी जो उपचुनाव की प्रक्रिया होती है, उससे और बेहतर ढंग से समझा जा सकता है। किसी लोकसभा, विधानसभा या राज्यसभा की सीट के रिक्त हो जाने की स्थिति में उपचुनाव कराए जाते हैं। लेकिन उपचुनाव में जीतकर आए जनप्रतिनिधि का कार्यकाल लोकसभा या विधानसभा के बाकी बचे कार्यकाल जितना ही होता है। राज्यसभा की स्थिति में भी 6 साल का कार्यकाल पूरा होने में जितना समय बचा होता है, उतने समय के लिए ही उपचुनाव से जीते सांसद का कार्यकाल रहता है। बिल्कुल इसी तरह त्रिशंकु संसद या त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में चुनाव तो होंगे लेकिन जो सरकार बनेगी वह अगले आम चुनाव तक ही रहेगी। यानी अगर 2 साल बाद ही मध्यावधि चुनाव की नौबत आ जाए तो अगली सरकार का अधिकतम कार्यकाल सिर्फ 3 साल होगा, न कि 5 साल।

दो संविधान संशोधन विधेयकों को पारित करने के बाद, संसद अनुच्छेद 368 के तहत संशोधन प्रक्रियाओं का पालन करेगी। चूंकि केवल संसद को ही लोकसभा और विधानसभा से संबंधित चुनाव कानूनों को बनाने का अधिकार है, इसलिए पहले संशोधन विधेयक को राज्यों से समर्थन की जरूरत नहीं होगी। लेकिन, स्थानीय निकायों में चुनाव से जुड़े मामले राज्य के अधीन हैं और इसके लिए दूसरे संशोधन विधेयक को देश के कम से कम आधे राज्यों द्वारा अनुमोदित किया जाना जरूरी होगा।

दूसरे संविधान संशोधन विधेयक को राज्यों से मंजूरी के बाद, और दोनों सदनों में निर्धारित बहुमत से पारित होने के बाद, विधेयक राष्ट्रपति की सहमति के लिए जाएंगे। एक बार जब वह विधेयकों पर हस्ताक्षर कर देती हैं, तो वे कानून बन जाएंगे। इसके बाद, कार्यान्वयन समूह इन अधिनियमों के प्रावधानों के आधार पर इन बदलावों को अंजाम देगा। एकल मतदाता सूची और मतदाता पहचान पत्र के संबंध में प्रस्तावित कुछ बदलावों के लिए कम से कम आधे राज्यों से मंजूरी की जरूरत होगी। संविधान के अनुच्छेद 325 में एक नया उप-खंड सुझाएगा कि एक निर्वाचन क्षेत्र में सभी मतदान के लिए एक ही मतदाता सूची होनी चाहिए।