आखिर क्या है MQ-9B किलर ड्रोन की खासियत?

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आज हम आपको MQ-9B किलर ड्रोन की खासियत बताने जा रहे हैं! पीएम मोदी इस वक्त अमेरिका के दौरे पर हैं। इस दौरान पीएम मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के साथ द्विपक्षीय वार्ता में ड्रोन डील के रोड मैप की चर्चा की। अमेरिका ने भी भारत के 31 MQ-9B प्रीडेटर ड्रोन की खरीदने के फैसले का स्वागत किया है। ये डील दोनों देशों के रक्षा साझेदारी को बढ़ावा देगा, जिसमें सैन्य इंटरऑपरेबिलिटी, इंटेलिजेंस-शेयरिंग, स्पेस और साइबर सहयोग शामिल हैं। बता दें कि भारत-अमेरिका के बीच ये ड्रोन डील अक्टूबर में होगी। जिसमें भारत अमेरिका से नौसेना, सेना और वायुसेना के लिए ड्रोन खरीदेगा। भारत अमेरिका से 31 MQ-9B ‘हंटर-किलर’ प्रीडेटर ड्रोन खरीदने जा रहा है। यह डील लगभग 3.9 बिलियन डॉलर की है। यह डील दोनों देशों के बीच रक्षा साझेदारी का हिस्सा है। इसके तहत दोनों देश अपनी सेनाओं के बीच तालमेल मजबूत होगा। इसके साथ ही दोनों देशों की सेना खुफिया जानकारी साझा करेगी। भारत और अमेरिकी की इस डील पर चीन की नजर बनी हुई है।

बता दें कि यह डील सरकारी स्तर पर होगी, जिसमें भारत 31 ऊंचाई और लंबी दूरी तक उड़ान भरने वाले रिमोट से चलने वाले विमान (RPA) खरीदेगा। इसमें 15 सी गार्जियन ड्रोन नौसेना के लिए और 8-8 स्काई गार्जियन थल सेना और वायुसेना के लिए होंगे। मोदी-बाइडेन वार्ता के बाद जारी एक संयुक्त बयान में कहा गया कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने 31 जनरल एटॉमिक्स MQ-9Bs और उनसे जुड़े उपकरणों की खरीद के लिए भारत द्वारा की जा रही प्रगति का स्वागत किया, जिससे सभी क्षेत्रों में भारत की सशस्त्र सेनाओं की खुफिया, निगरानी और टोही (ISR) क्षमताओं में वृद्धि होगी। बता दें कि अभी तक ऐसी किसी संयुक्त परियोजना पर मुहर नहीं लग पाई है, लेकिन मोदी और बाइडेन ने रोडमैप तैयार कर लिया गया है।

MQ-9B प्रीडेटर ड्रोन एक अत्याधुनिक मानवरहित हवाई वाहन (UAV) है, जिसे रिमोट से संचालित किया जाता है। इसे प्रीडेटर के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यह हथियारों से लैस होता है। यह ड्रोन हाई एल्टीट्यूड लॉन्ग एंड्योरेंस (HALE) की श्रेणी में आता है और 40 घंटे से अधिक समय तक उड़ान भर सकता है। MQ-9B प्रीडेटर ड्रोन एक अत्यंत उन्नत तकनीक वाला ड्रोन है जो अपनी कई खास विशेषताओं के लिए जाना जाता है। यह 50,000 फीट से अधिक की ऊंचाई तक उड़ सकता है और इसकी अधिकतम गति 442 किलोमीटर प्रति घंटा है। इसकी लंबी रेंज 1850 किलोमीटर है और यह 2177 किलोग्राम तक का भार उठा सकता है। इस ड्रोन को लेजर गाइडेड मिसाइल, एंटी टैंक मिसाइल और एंटी शिप मिसाइल जैसे विभिन्न प्रकार के हथियारों से लैस किया जा सकता है।यह ड्रोन निगरानी, खुफिया जानकारी जुटाने और आक्रामक अभियानों के लिए उपयोग किया जाता है। अमेरिका ने 2022 में अलकायदा के नेता अयमान अल-जवाहिरी को मार गिराने के लिए इसी ड्रोन का उपयोग किया था।

यही नहीं रक्षा मंत्रालय की अनुबंध बातचीत समिति की रिपोर्ट मंजूर कर ली गई है। एक सूत्र ने बताया, ‘अनुबंध पर अक्टूबर के मध्य में हस्ताक्षर होने की उम्मीद है। लागत, यहां एक MRO (रखरखाव, मरम्मत, ओवरहाल) सुविधा की स्थापना, प्रदर्शन-आधारित लॉजिस्टिक सहायता और ऐसे अन्य मुद्दों को कठिन बातचीत के बाद अंतिम रूप दे दिया गया है।’ हालांकि इस सौदे में कोई सीधा टेक्नोलॉजी ट्रांसफर (ToT) नहीं होगा, लेकिन 31 दूर से संचालित विमानों को यहां इकट्ठा किया जाएगा। ड्रोन-निर्माता जनरल एटॉमिक्स भारत में निवेश करेगा और 30 प्रतिशत से ज्यादा घटकों की सोर्सिंग भारतीय कंपनियों से करेगा। ड्रोन-निर्माता जनरल एटॉमिक्स स्वदेशी रूप से ऐसे उच्च-ऊंचाई वाले, डेवलेप ड्रोन विकसित करने के लिए DRDO और अन्य को गाइड भी करेगा।

पिछले महीने खबर आई थी कि भारत इस सौदे के लिए तकनीकी-व्यावसायिक बातचीत में तेजी ला रहा है। इस सौदे के तहत 15 सी गार्जियन ड्रोन नौसेना के लिए और 8-8 स्काई गार्जियन सेना और भारतीय वायुसेना के लिए रखे गए हैं। यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब चीन और पाकिस्तान दोनों ही अपने सशस्त्र UAV के बेड़े को लगातार बढ़ा रहे हैं।

लगभग 40 घंटे तक 40,000 फीट से अधिक की ऊंचाई पर उड़ान भरने के लिए डिज़ाइन किए गए, 31 MQ-9B ड्रोन 170 हेलफायर मिसाइलों, 310 GBU-39B सटीक-निर्देशित ग्लाइड बम, नेविगेशन सिस्टम, सेंसर सूट और मोबाइल ग्राउंड कंट्रोल सिस्टम के साथ आएंगे। भारत भविष्य में ड्रोन को स्वदेशी हथियारों से भी लैस करेगा, जिसमें DRDO द्वारा विकसित की जा रही नौसैनिक शॉर्ट-रेंज एंटी-शिप मिसाइल (NASM-SR) भी शामिल हैं। लंबी दूरी के रणनीतिक ISR (खुफिया, निगरानी, टोही) मिशन और क्षितिज के ऊपर लक्ष्यीकरण के अलावा, ड्रोन युद्ध-विरोधी और पनडुब्बी-रोधी युद्ध संचालन कर सकते हैं।

यह हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में चीनी नौसेना की बढ़ती मौजूदगी में जरूरी हो जाता है, इसकी पनडुब्बियां जमीनी सीमाओं के बाद समुद्री क्षेत्र में भारत के लिए एक बड़ी रणनीतिक चुनौती पेश करने में सक्षम हैं। एक अधिकारी ने कहा, ‘चीन IOR में अपने सर्वे और रिसर्च जहाजों को व्यवस्थित रूप से तैनात कर रहा है ताकि पानी के नीचे डोमेन जागरूकता और पनडुब्बी संचालन के लिए उपयोगी महासागरीय और अन्य डेटा का नक्शा बनाया जा सके। चीनी परमाणु-संचालित पनडुब्बियां, जो अब तक कभी-कभार IOR में आती हैं, निकट भविष्य में इस क्षेत्र में नियमित तैनाती पर होंगी।’

भारत को उम्मीद है कि उसे दो से तीन वर्षों में लड़ाकू आकार के ड्रोन की शुरुआती डिलीवरी मिल जाएगी, और वह IOR के लिए अराकोणम और पोरबंदर और भूमि सीमाओं के लिए सरसावा और गोरखपुर में ISR कमांड और नियंत्रण केंद्रों पर उन्हें तैनात करने की योजना बना रहा है।