जब अपनी जान पर खेल कर जाटों ने बचाया था हरियाणा!

0
121

आज हम आपको एक ऐसे समय की कहानी बताएंगे जब जाटों ने अपनी जान पर खेल कर हरियाणा को बचाया था! उज्बेकिस्तान के चरवाहा परिवार से आने वाले एक लंगड़े और क्रूर शासक ने जब हिंदुस्तान की ओर रुख किया तो उसका मकसद यहां पर राज करना नहीं था। मंगोल तैमूर ने हिंदुस्तान की अपार दौलत और भव्यता के बारे में काफी कुछ सुन रखा था। सुन्नी मुस्लिम तैमूर ने 1398 में भारत पर भटनेर किले को लूटने के बाद अपनी 92,000 तातार आर्मी के साथ तूफानी तरीके से सिरसा, फतेहाबाद, सुनाम, कैथल और पानीपत जैसे शहरों पर हमला किया। फारसी इतिहासकार शराफ अद्दीन अली यजदी के अनुसार, तैमूर ने इन शहरों को जमकर लूटा, उन्हें जला डाला।

जब तैमूर की तातार आर्मी सरसुती (सिरसा) पहुंची तो उसके खौफनाक आक्रमण से वहां के निवासी घर छोड़कर भाग गए। भागते हुए हजारों लोगों को तातार आर्मी ने मार डाला। यही हाल फतेहाबाद में भी किया गया। वहीं, अहरुनी में अहीरों ने तैमूर के सैनिकों का मुकाबला तो किया, मगर हार गए। इनमें से कइयों को मार डाला गया और कइयों को युद्धबंदी बना लिया गया। शहर को जलाकर राख कर दिया गया। जब तैमूर की आर्मी टोहाना पहुंची तो वहां जाटों ने जमकर मोर्चा संभाला, मगर वो इतनी बड़ी जल्लाद आर्मी के सामने ज्यादा देर टिक नहीं पाए। तातार आर्मी ने 2,000 जाटों को मार डाला। उनकी संपत्ति लूट ली। वहीं, उनकी पत्नियों और बच्चों को गुलाम बना लिया गया। आज स्पेशल स्टोरी की पहली किस्त में जानेंगे कैसे हरियाणा ने बाहरी आक्रमणों के खिलाफ लड़ाई लड़ी, जो इतिहास में दर्ज है। इतिहासकार यजदी के अनुसार, तैमूर हरियाणा में जहां जाता, वो शहर जलाकर नष्ट कर देता। गांवों और खेतों को उजाड़ देता। पुरुषों के सिर काट दिए जाते और महिलाओं-बच्चों को गुलाम बना लिया जाता। इसकी वजह यह थी कि वह खुद को इस्लाम की तलवार कहा करता था। उसका मानना था कि वह अपने पूर्ववर्ती चंगेज खान की तरह पूरी दुनिया में इस्लाम का राज कायम करेगा। तैमूर की सेना ने कैथल में बड़े पैमाने पर नरसंहार और लूटपाट किया। वहां से वह असौंध आया, जो गांव और शहर छोड़कर दिल्ली भाग गए। तातार आर्मी के पानीपत पहुंचने से पहले तुगलकपुर किले और सलवान को अपने कब्जे में कर लिया। यहीं से उसने लोनी किले की ओर कूच किया।

तैमूर ने भारत पर अपने आक्रमण की वजह बताते हुए लिखा है कि हिंदुस्तान पर आक्रमण करने का मेरा मकसद काफिर हिंदुओं के खिलाफ धार्मिक युद्ध करना है, जिससे इस्लाम की सेना को भी हिंदुओं की दौलत और मूल्यवान चीजें मिल जाएं। कश्मीर में कटोर के नामी दुर्ग पर आक्रमण में पुरुषों को कत्ल कर दिया गया। उनके सिरों के मीनार खड़े कर दिए गए। फिर भटनेर के दुर्ग पर घेरा डाला गया।

तैमूर लिखता है कि ‘थोड़े ही समय में दुर्ग के तमाम लोग तलवार के घाट उतार दिए गए। घंटे भर में 10 हजार लोगों के सिर काटे गए। इस्लाम की तलवार ने काफिरों के रक्त में स्नान किया। दूसरा नगर सरसुती था जिस पर आक्रमण हुआ। सभी काफिर हिंदू कत्ल कर दिए गए। उनके स्त्री और बच्चे और संपत्ति हमारी हो गई। तैमूर ने जब जाटों के प्रदेश में प्रवेश किया तो उसने अपनी सेना को आदेश दिया कि ‘जो भी मिल जाए, उसका कत्ल कर दिया जाए। लंगड़ा होने की वजह से उसे तैमूर लंग कहा जाता था।

इतिहासकार जस्टिन मरोजी की किताब ‘टैमरलेन, सोर्ड ऑफ इस्लाम, कॉन्करर ऑफ द वर्ल्ड’ में लिखा है कि तैमूर की सेना तरह-तरह के इलाकों से गुजर रही थी, जिनके मौसम एक जैसे नहीं थे। मगर, उसकी तातार आर्मी को ऐसे मौसम की आदत हो गई थी। समरकंद से दिल्ली के बीच बर्फ से ढकी चट्टानें, गर्मी से झुलसा देने वाले रेगिस्तान और बंजर जमीन का बड़ा इलाका था, जहां सैनिकों के खाने के लिए एक दाना तक नहीं उगाया जा सकता था।

तैमूर की सेना काबुल होते हुए अक्तूबर में सतलुज नदी पर जाकर रुकी, जहां एक कमांडर सारंग खां ने उसका रास्ता रोका। मगर, तैमूर उस पर जीत हासिल कर ली। पंजाब, हरियाणा होते हुए दिल्ली पहुंचने से पहले रास्ते में तैमूर ने करीब एक लाख हिंदू लोगों को बंदी बना लिया। दिल्ली के पास पहुंचकर लोनी में तैमूर ने अपना आर्मी कैंप लगाया और यमुना नदी के पास एक टीले पर खड़े होकर हालात का जायजा लिया। उस वक्त दिल्ली की सल्तनत पर बेहद कमजोर सुल्तान नासिरुद्दीन महमूद का राज था। कहा जाता है कि तैमूर ने पूरी दुनिया में करीब 1.7 करोड़ लोगों का कत्ल करवाया था। उसने तुर्की के खलीफा को पिंजरे में डलवा दिया था, जहां उसकी मौत हो गई थी।

तैमूर ने अपनी आत्मकथा’तुजुके तिमूरी’ में लिखा है कि मेरी सबसे बड़ी चिंता थे ताकतवर भारतीय हाथी। समरकंद में उनके बारे में सुन रखा था। ये हाथी बख्तरबंद होते थे, जिनकी पीठ पर हौदों में मशाल फेंकने वाले लोग, तीरंदाज और महावत बैठे रहते थे। यह भी सुना था कि इन हाथियों के दांतों में जहर लगा होता था, जो दुश्मन के पेट में घुसा देते थे। उन्होंने इन हाथियों को मारने के लिए एक नई चाल चली। उसने ऊंटों और घोड़ों पर घास लादकर उनमें आग लगा दी। जब ये घोड़े जंग के मैदान में आते तो हाथी भड़क उठते और अपनी ही सेना पर मौत बनकर टूट पड़ते। इससे तैमूर ने कई जंग आसानी से जीत ली।

यजदी का कहना है कि तैमूर जब दिल्ली आया तब तक उसकी तातार आर्मी के 15,000 सैनिक पहुंच चुके थे। विजयनगर की यात्रा करने वाले ईरानी इतिहासकार मोहम्मद कासिम फरिश्ता ने अपनी किताब ‘हिस्ट्री ऑफ द राइज ऑफ मोहमडन पावर इन इंडिया’ में लिखा है कि हिंदुओं ने जब देखा कि उनकी महिलाओं की इज्जत सरेआम नीलाम की जा रही है तो उन्होंने दरवाजा बंद कर अपने ही घरों में आग लगा दी। अपनी पत्नियों और बच्चों की हत्या कर तैमूर के सैनिकों पर टूट पड़े। इसके बाद तो दिल्ली में वो नरसंहार हुआ कि सड़कों पर लाशों के ढेर लग गए। तैमूर की पूरी सेना दिल्ली में घुस आई। कुछ ही घंटों की लड़ाई में दिल्ली ने दम तोड़ दिया।

उज्बेकिस्तान में तैमूर की कब्र पर लिखा है कि जब मैं अपनी मौत के बाद खड़ा हो जाऊंगा तो दुनिया कांप उठेगी। इसके साथ ही कब्र पर लिखा था, जो कोई भी मेरी कब्र को खोलेगा, उसे मुझसे भी भयानक दुश्मन मिलेगा। इस वजह से कई शासक आए, लेकिन उन्होंने कब्र को नुकसान नहीं पहुंचाया था। कहते हैं कि 1941 में रूस के शासक जोसेफ स्टालिन ने भी इस कब्र को खुदवाने की कोशिश की थी। कब्र खोदने के एक दिन बाद ही 11 जून 1941 को हिटलर ने सोवियत यूनियन पर हमला कर दिया था। इसके फिर से इस कब्र को दफना दिया गया। इसके कुछ समय बाद ही जर्मनी हार गया था। यह भी कहा जाता है कि ईरानी शासक नादिरशाह ने तैमूर की कब्र पर लगे एक खास पत्थर को ले गया, मगर उसका पतन शुरू हुआ तो उसने डर की वजह से उस पत्थर को फिर से कब्र पर लगा दिया।