नेट जीरो या कार्बन न्यूट्रल के लक्ष्य को कौन सा देश प्राप्त करेगा यह सबसे बड़ा सवाल है! नवंबर, 2021 की बात है, जब स्कॉटलैंड के ग्लासगो में COP26 शिखर सम्मेलन का आयोजन चल रहा था। उस वक्त इसमें हिस्सा लेने पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरेआम मंच से ऐसा ऐलान कर दिया कि अमेरिका, चीन और रूस जैसे देश भी हैरान रह गए। पीएम ने पहली बार इस मंच से नेट जीरो का संकल्प लिया। यह दुनिया से किया गया ऐसा वादा था कि जो उस वक्त दुनिया के प्रमुख अखबारों की सुर्खियां बना था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आज 74वां बर्थडे है। गुजरात की राजधानी गांधीनगर में आयोजित चौथे ग्लोबल रिन्यूएबल एनर्जी इन्वेस्टर्स मीट (RE-INVEST 2024) मोदी ने पेरिस समझौते के लक्ष्यों को डेडलाइन से पहले पूरा करने, 200 गीगावाट से ज्यादा गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता जैसी उपलब्धियों और 2030 तक इसे 500 गीगावाट तक ले जाने के लक्ष्य को हासिल करने के उपायों पर चर्चा की। मोदी ने कहा कि ग्रीन फ्यूचर, नेट जीरो जैसे शब्द भारत की जरूरत और प्रतिबद्धता हैं। जानते हैं कि ये नेट जीरो क्या है? क्या नेट जीरो की वजह से भारत अमेरिका और चीन जैसे देशों को पछाड़ देगा। पीएम मोदी ने 2070 तक अपने कार्बन उत्सर्जन को नेट जीरो तक कम करने का वादा किया। आमतौर पर इस सम्मेलन में नेट जीरो का लक्ष्य 2050 तक हासिल करने का है। चीन ने 2060 तक कार्बन तटस्थता की योजना की घोषणा की। वहीं, अमेरिका और यूरोपीय संघ ने 2050 तक नेट जीरो हासिल करने का ऐलान किया। उस चक्त ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस सहित कई हस्तियों ने जलवायु संकट से निपटने के लक्ष्य बताते हुए लंबे-चौड़े भाषण दिए थे। चीन, अमेरिका और यूरोपीय संघ के बाद भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जक है।
नेट जीरो या कार्बन न्यूट्रल बनने का मतलब है वायुमंडल में कार्बन डाईऑक्साइड, क्लोरो फ्लोरो कार्बन और कार्बन मोनो ऑक्साइड जैसी ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा में बढ़ोतरी न करना। नेट जीरो का मतलब है कि जो भी कार्बन उत्सर्जन होता है, उसे वायुमंडल से उतनी ही मात्रा में निकालकर संतुलित किया जाता है। यानी हम नेट जीरो पर तब पहुंचेंगे जब हम जितना कार्बन उत्सर्जन करेंगे, वह उतनी ही मात्रा में हटाया जाएगा। इसे ऐसे समझिए कि यह लक्ष्य तब हासिल हो सकेगा, जब इंसानी गतिविधियों के चलते हो रहे प्रदूषण को वायुमंडल से हटाकर उसे संतुलित किया जाए।
यह लक्ष्य दो तरीकों से हासिल होगा। पहला तो यह है कि कारखानों, वाहनों जैसे होने वाले प्रदूषण को यथासंभव जीरो तक किया जाए। दूसरा, इसके साथ ही जंगलों को बढ़ाने जैसे प्राकृतिक तरीकों का इस्तेमाल करना चाहिए जो कार्बन प्रदूषकों को वायुमंडल से सोख लेते हैं। सरल शब्दों में ऐसे समझें कि आप ऐसे पेड़ लगा सकते हैं जो CO2 को अवशोषित करते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते हैं। वहीं, वायुमंडल से CO2 को बाहर निकालने के साथ-साथ यह भी महत्वपूर्ण है कि हम वायुमंडल में डाली जा रही CO2 की मात्रा घटाएं।
नेट जीरो का मतलब है इंसानी गतिविधियों से होने वाले कार्बन उत्सर्जन को संतुलित करना या हटाना। हम नेट जीरो पर तब पहुंचते हैं जब हमारी गतिविधियों से पैदा हुईं ग्रीनहाउस गैस की मात्रा हटाए गए कार्बन की मात्रा से अधिक नहीं होती। वहीं, जीरो कार्बन का मतलब है कि किसी उत्पाद या सेवा से होने वाले उत्सर्जन से है। यानी जीरो कार्बन में कोई कार्बन उत्सर्जन ही नहीं होता। जैसे कि पवन चक्कियों या सोलर पैनलों से हासिल बिजली। आबादी के हिसाब से बात करें तो भारत की इतनी बड़ी आबादी प्रदूषण फैलाने के मामले में दुनिया के कई बड़े देशों से काफी कम है। इसका प्रति व्यक्ति उत्सर्जन दुनिया की प्रमुख विश्व अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में बहुत कम है। 2019 में प्रति व्यक्ति के लिहाज से भारत ने 1.9 टन CO2 उत्सर्जित किया, जबकि उसी साल अमेरिका ने 15.5 टन और रूस ने 12.5 टन कार्बन प्रदूषण फैलाया था।
भारत ने यह भी वादा किया है कि वह 2030 तक अपनी 50% एनर्जी अक्षय ऊर्जा जैसे सोर्स से हासिल कर लेगा और 2030 तक ही कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन में एक अरब टन की कमी लाएगा। दिल्ली यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सना रहमान के अनुसार, भारत ने कोयला आधारित 500 गीगावाट बिजली पैदा करने की क्षमता, अक्षय ऊर्जा से आधी बिजली, उत्सर्जन में एक अरब टन की कमी जैसे ऐलान करके गेंद विकसित देशों के पाले में डाल दी।
नेट जीरो हासिल करने के लिए 1.5 डिग्री सेल्सियस तक तापमान बनाए रखना होगा। जीरो कार्बन सोर्स के लिए 2050 तक 98% -100% बिजली की आपूर्ति अक्षय ऊर्जा से किए जाने की जरूरत होगी। वहीं, वाहनों से होने वाले धुएं को कम करने के लिए बैटरी और फ्यूल स्विचिंग जैसे उपाय करने होंगे। वहीं, खानपान की पूर्ति करने के लिए खाद्य उत्पादन की दक्षता में सुधार, आहार विकल्पों को बदलने, खराब भूमि को सही करने और खाने के नुकसान को कम करना होगा। साथ ही कोयले के इस्तेमाल में 2030 तक 6 गुना तेजी से गिरावट आनी चाहिए। दुनिया को 2030 तक वनों की कटाई को रोकने और वृक्ष आवरण को दो गुना तेजी से बढ़ाने की भी जरूरत है।