आखिर कौन है स्पेस में जाने वाले इंडियन एस्ट्रोनॉट?

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आज हम आपको स्पेस में जाने वाले इंडियन एस्ट्रोनॉट के बारे में जानकारी देने वाले हैं! भारतीय वायु सेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला इतिहास रचने के लिए तैयार हैं। वह 2025 में Axiom-4 (Ax-4) मिशन के पायलट होंगे। इस मिशन के तहत अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर पहली बार कोई भारतीय एस्ट्रोनॉट पहुंचेगा। यह ऐतिहासिक मिशन अमेरिका के फ्लोरिडा के कैनेडी स्पेस सेंटर से लॉन्च होगा। यह चार दशकों से भी ज्यादा समय में भारत की दूसरी सरकार द्वारा प्रायोजित मानव अंतरिक्ष उड़ान होगी। इससे पहले 1984 में विंग कमांडर राकेश शर्मा ने सोवियत मिशन के हिस्से के रूप में अंतरिक्ष की यात्रा की थी। Axiom-4 मिशन भारत और अमेरिका के बीच एक द्विपक्षीय पहल के तहत हो रहा है।Ax-4 अंतरिक्ष यात्री मिशन की तैयारी के लिए नासा, एलोन मस्क द्वारा स्थापित स्पेस-एक्स, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी , जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी और अन्य साझेदार सुविधाओं में कड़ी ट्रेनिंग करेंगे। इस ट्रेनिंग में सुरक्षा प्रोटोकॉल, स्वास्थ्य प्रबंधन और आईएसएस सिस्टम संचालन शामिल हैं। पिछले साल पीएम नरेंद्र मोदी ने अमेरिका के आधिकारिक दौरे के दौरान घोषणा की थी कि एक भारतीय अंतरिक्ष यात्री आईएसएस की यात्रा करेगा। इसके बाद इसरो ने एक अमेरिकी मानव अंतरिक्ष उड़ान सर्विस प्रोवाइडर और बुनियादी ढांचा डेवलपर, Axiom Space के साथ एक अंतरिक्ष उड़ान समझौते पर हस्ताक्षर किए।

शुभांशु शुक्ला और उनके बैकअप साथी ग्रुप कैप्टन प्रशांत नायर दोनों भारतीय वायुसेना के टेस्ट पायलट हैं। वे इस मिशन के लिए एक अंतरराष्ट्रीय दल में शामिल हुए हैं। इसके कमांडर पैगी व्हिटसन ने ईमेल पर टीओआई के साथ शुक्ला की भूमिका, मिशन और अन्य जरूरी बातों को शेयर किया। उन्होंने बताया, ‘Ax-4 पायलट के रूप में, शुक्ला नेविगेशन और डॉकिंग प्रक्रियाओं जैसे जरूरी अंतरिक्ष यान संचालन में मेरी मदद करेंगे। उन्हें दी गई ट्रेनिंग आपात स्थिति को संभालने और महत्वपूर्ण सिस्टम जांच करने के लिए तैयार करेगा। इसके अलावा शुक्ला माइक्रोग्रैविटी प्रयोगों और मैनेजमेंट करके साइंस्टिफिक रिसर्च का काम भी देखेंगे। इस भूमिका में अंतरिक्ष यान के तकनीकी और परिचालन दोनों पहलुओं में व्यापक ट्रेनिंग शामिल है, यह सुनिश्चित करते हुए कि वह मिशन के लक्ष्यों और समग्र सफलता में योगदान करने के लिए अच्छी तरह से तैयार हैं।’

हाल ही में एक इंस्टाग्राम लाइव पर इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने कहा कि भारतीय अंतरिक्ष यात्री मिशन के हिस्से के रूप में आईएसएस पर पांच प्रयोग करेंगे। यह मिशन भारत को अपने गगनयान कार्यक्रम के लिए अंतरिक्ष उड़ान संचालन और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में भी मदद करेगा। व्हिटसन ने कहा कि Axiom Space ने अंतरिक्ष यात्रियों के लिए तकनीकी कौशल और आपातकालीन तैयारी दोनों पर जोर देते हुए गहन ट्रेनिंग की है। इसरो प्रमुख ने बताया, ‘हम आईएसएस मिशन के लिए NASA और अन्य अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसियों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। इसके अलावा Axiom मिशन के दौरान अंतरिक्ष यात्री की हेल्थ की निगरानी और रखरखाव के लिए अत्याधुनिक मेडिकल रिसर्च और टेक्नलॉजी में निवेश करता है। इन रणनीतियों का लाभ उठाकर, Axiom Space का लक्ष्य जोखिमों को कम करना और हमारे मिशनों की सफलता सुनिश्चित करना है।’

तैयारियों के बारे में विस्तार से बताते हुए, उन्होंने कहा कि Ax-4 अंतरिक्ष यात्री मिशन की तैयारी के लिए नासा, एलोन मस्क द्वारा स्थापित स्पेस-एक्स, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी , जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी और अन्य साझेदार सुविधाओं में कड़ी ट्रेनिंग करेंगे। इस ट्रेनिंग में सुरक्षा प्रोटोकॉल, स्वास्थ्य प्रबंधन और आईएसएस सिस्टम संचालन शामिल हैं।व्हिटसन अंतरिक्ष में 675 दिनों के प्रभावशाली इतिहास के साथ अमेरिका की सबसे अनुभवी अंतरिक्ष यात्री हैं। वो दो बार की आईएसएस कमांडर रह चुके हैं। Axiom Space के लिए मानव अंतरिक्ष उड़ान के निदेशक के रूप में उनकी वर्तमान स्थिति कॉरपोर्ट स्पेस को आगे बढ़ाने में मिशन के महत्व पर जोर देता है। शुभांशु शुक्ला और उनके बैकअप साथी ग्रुप कैप्टन प्रशांत नायर दोनों भारतीय वायुसेना के टेस्ट पायलट हैं। वे इस मिशन के लिए एक अंतरराष्ट्रीय दल में शामिल हुए हैं। इसके कमांडर पैगी व्हिटसन ने ईमेल पर टीओआई के साथ शुक्ला की भूमिका, मिशन और अन्य जरूरी बातों को शेयर किया।बता दें कि पहले 1984 में विंग कमांडर राकेश शर्मा ने सोवियत मिशन के हिस्से के रूप में अंतरिक्ष की यात्रा की थी। Axiom-4 मिशन भारत और अमेरिका के बीच एक द्विपक्षीय पहल के तहत हो रहा है। पिछले साल पीएम नरेंद्र मोदी ने अमेरिका के आधिकारिक दौरे के दौरान घोषणा की थी कि एक भारतीय अंतरिक्ष यात्री आईएसएस की यात्रा करेगा। आईएसएस के लिए Ax-4 मिशन का हिस्सा पोलैंड के स्लावोस्ज़ उज़्नानस्की और हंगरी के टिबोर कापू भी हैं।