Thursday, January 30, 2025
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क्या वोट बैंक के लिए हिंदू आस्था पर वार करना सही है?

यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या वोट बैंक के लिए हिंदू आस्था पर वार करना सही है या नहीं! आंध्र प्रदेश के तिरुपति स्थित भगवान वेंकटेश्वर मंदिर के प्रमुख प्रसाद में मिलावटी घी का उपयोग किए जाने की खबर से हंगामा मच गया। गुजरात की लैब से आई रिपोर्ट में पुष्टि हो गई कि जिस घी से तिरुपति लड्डू बनाया जा रहा था, उसमें जानवरों की चर्बी मिली हुई है। एक तो पवित्र प्रसाद, वो भी तिरुपति जैसे प्रसिद्ध मंदिर का जहां देश-दुनिया से आस्थावान हिंदू भगवान वेंकटेश्वर का दर्शन करने आते हैं। सोचिए, उन हिंदुओं को प्रसाद के जरिए गाय की चर्बी खिलाई जा रही थी। कारतूस में गाय की चर्बी का इस्तेमाल होने की खबर ने अंग्रेजी साम्राज्य के खिलाफ 1857 की पहली क्रांति करवा दी थी। गाय को माता मानने वाले हिंदुओं को अगर प्रसाद में चर्बी मिलाकर खिला दी जाए तो इससे बड़ा धार्मिक आक्रमण और क्या ही हो सकता है? लेकिन तिरुपति में ऐसा हुआ। टीडीपी की चंद्रबाबू नायडू सरकार का कहना है कि वाईएसआर कांग्रेस की पिछली जगनमोहन रेड्डी सरकार में तिरुपति लड्डू के लिए अशुद्ध और मिलावटी घी का उपयोग शुरू हुआ था। तिरुपति के तत्कालीन पुजारी रमना दीक्षितुलु ने दावा किया है कि उन्होंने घी की अशुद्धता का मुद्दा उठाया था, लेकिन तत्कालीन मंदिर प्रबंधन ने कोई सुनवाई नहीं की। जगनमोहन रेड्डी और उनका परिवार इसाई है। सोचिए अगर हिंदू मुख्यमंत्री की सरकार में अगर किसी गैर-हिंदुओं के साथ ऐसा होता, वो भी उनके धर्मस्थल के जरिए तो आज देश-दुनिया में क्या नैरेटिव गढ़ जा रहे होते! लेकिन बहुसंख्यक हिंदुओं के इस देश में हिदुओं की आस्था पर इतना बड़ा आक्रमण हुआ, लेकिन बात आई-गई हो गई। आखिर ऐसा कैसे हुआ? इसकी जड़ में हिंदुओं की आस्था पर लगातार चोट करने की प्रवृत्ति है। लगता है छोटे-बड़े अपमानों से गुजर रहे हिंदुओं ने धीरे-धीरे मान लिया है कि भारत में हमारी यही गति होनी है। तभी तो देश की सरकार और इसके मुखिया पर हिंदूवादी होने का आरोप है, तब भी हिंदुओं ने प्रसाद की आड़ में गाय की चर्बी खाकर भी चुप्पी ठान रखी है?

दरअसल, प्रसाद बनाने में गाय की चर्बी वाले घी के उपयोग का दुस्साहस इसलिए हो पाया क्योंकि हिंदुओं ने अपनी आस्था पर हो रहे हमलों का प्रतिकार करना छोड़ दिया। नीचे दी गई बातें याद कीजिए और अपने दिल पर हाथ रखकर पूछिए कि क्या ऐसी बात कभी गैर-हिंदुओं के लिए कही जा सकती है? क्या वही लोग गैर-हिंदुओं के लिए ऐसी हिम्मत कर सकते हैं जिन्होंने हिंदुओं के लिए ऐसी बातें कही हैं? समाजवादी पार्टी के मुखिया और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर हमला करते हुए कहा कि मठाधीश और माफिया में ज्यादा अंतर नहीं है। उसके बाद उन्होंने एक्स पोस्ट में लिखा, ‘भाषा से पहचानिए असली सन्त महन्त, साधु वेष में घूमते जग में धूर्त अनन्त।’

कांग्रेस के तत्कालीन उपाध्यक्ष और लोकसभा में विपक्ष के मौजूदा नेता राहुल गांधी ने कहा कि जो लोग मंदिर जाते हैं वही लड़कियों को छेड़ते हैं। वो अपने पिता और देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की 70वीं जयंती पर महिला कांग्रेस की ओर से आयोजित संकल्प सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। देश के प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में पम्फ्लेट छपवाकर मां दुर्गा को वेश्या बताया गया जिन्होंने महिषासुर का धोखे से वध किया। फिर दिल्लू यूनिवर्सिटी के दयाल सिंह कॉलेज में एक असिस्टेंट प्रफेसर केदार कुमार मंडल ने फेसबुक पोस्ट में मां दुर्गा के लिए लिखा, ‘दुर्गा भारतीय पौराणिक कथाओं में बहुत ही सेक्सी वेश्या है।’

तमिलनाडु के सत्ताधारी दल डीएमके के नेता और प्रदेश के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन ने हिंदू धर्म की तुलना भयंकर बीमारियों से की। तमिलनाडु सरकार के मंत्री उदयनिधि ने ‘सनातन धर्म को मिटाने’ को लेकर आयोजित सम्मेलन में न केवल भाग लिया बल्कि यहां तक कहा कि ‘सनातन धर्म मलेरिया डेंगू की तरह है जिसे मिटाना जरूरी है।’ उन्होंने कहा, ‘ऐसी कुछ चीजें होती हैं जिनका विरोध करना काफी नहीं होता, हमें उन्हें समूल मिटाना होगा। मच्छर, डेंगू बुखार, मलेरिया, कोरोना ये ऐसी चीजें हैं जिनका हम केवल विरोध नहीं कर सकते, हमें इन्हें मिटाना होगा। सनातन भी ऐसा ही है।’

सोशल मीडिया पर अनेक हैंडल हैं जो आए दिन हिंदुओं की आस्था पर चोट पहुंचाते रहते हैं। वो बेहिचक हिंदू देवी-देवताओं पर अपमानजनक टिप्पणियां करते हैं। इन सोशल हैंडल्स की प्रोफाइलों में अक्सर यही रहता है कि वो आंबेडकरवादी हैं, जातिवाद के खिलाफ हैं और भीम-मीम के नारे के साथ हैं। इनकी टिप्पणियां देखकर कोई भी समझ सकता है कि उन्हें कानून की जरा भी पर परवाह नहीं है। ऐसा लगता है कि खास जाति में पैदा होने और खास विचारधारा में विश्वास करने की वजह से उन्हें हिंदुओं की आस्था पर बेधड़क चोट करने का उनका अधिकार है।

हिंदुओं पर ऐसे हमले होते हैं तो कहा जाता है कि सनातन धर्म इतना कमजोर नहीं कि इन बातों का कुछ नकारात्मक असर हो जाए। फिर हिंदू आज इतने बड़े विश्वासघात के बाद जोरदार प्रतिक्रिया तक क्यों नहीं दे पाया? क्या यह नेताओं और धर्मविरोधियों के ऐसे ही लगातार हमलों का असर नहीं है कि हिंदू अपनी आस्था पर बड़े से बड़े चोट को भी सामान्य मान चुका है? आक्रमण के खिलाफ एकजुट होना तो दूर, चूं तक करने की भी ताकत खो चुके हिंदू समाज से आखिर सनातन की रक्षा की उम्मीद लगाई जाए तो कैसे? फिर जो लोग हिंदू आस्था के अपमान पर प्रतिक्रिया देने वालों को ही सनातन की सहिष्णुता का पाठ पढ़ाने लगते हैं, उनसे यह पूछने का वक्त नहीं आ गया कि क्या सनातन कमजोर हुआ या नहीं? क्या उनसे यह नहीं पूछा जाना चाहिए कि मुलायम रस्सी के बार-बार घर्षण से बेहद कठोर पत्थर भी घिस सकता है तो लगातार हमलों से सनातन कमजोर नहीं होगा, यह ज्ञान उन्हें कहां से मिला क्योंकि इतिहास से लेकर आजतक प्रमाण तो बिल्कुल उलट हैं।

 

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