Friday, October 18, 2024
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क्या अपने अतीत को दोहरा रहा है इजराइल?

यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या इसराइल अब अपने अतीत को दोहरा रहा है या नहीं! इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने यह ऐलान किया कि लेबनान में आतंकी गुट हिजबुल्लाह के लीडर हसन नसरल्लाह की हत्या आने वाले वर्षों के लिए क्षेत्र में शक्ति संतुलन को बदलने की दिशा में बड़ा कदम साबित होगा। इजरायल ने लेबनान में ईरान समर्थित आतंकवादी समूह पर एक के बाद एक कई बड़े हमले किए। पहले पेजर और वॉकी टॉकी विस्फोट, फिर दक्षिणी बेरूत पर एक बड़ा हवाई हमला किया, जिसमें वरिष्ठ कमांडर इब्राहिम अकील मारा गया। इसके तीन दिन बाद ही एक जबरदस्त बमबारी में हिजबुल्लाह का चीफ हसन नसरल्लाह भी मारा गया। इन हमलों में कई इमारतें जमींदोज हो गईं और हिजबुल्लाह की तकरीबन पूरी लीडरशिप खत्म हो गई। इजरायल भले ही इसे अपनी जीत मान रहा हो या इसके पीछे उसका 3H प्लान हो, मगर यह उस पर भारी भी पड़ सकता है। इजरायल को यह नहीं भूलना चाहिए कि कभी उसके इसी तरह के कदमों की वजह से ही हिजबुल्लाह का जन्म हुआ था। जून 1982 की बात है, जब फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन यानी PLO को कुचलने के मकसद से इजरायल ने लेबनान पर आक्रमण किया। तब इजरायल ने यह सोचा था कि वह लेबनान में ईसाई वर्चस्व वाली एक ऐसी सरकार बनवाएगा, जो उसके समर्थन में होगी। इसके अलावा, वहां से सीरियाई फोर्सेज को बाहर भी निकाला जा सकेगा। इन तीनों ही मकसद में इजरायल नाकाम रहा था।

लेबनान में फिलिस्तीनी हथियार बंद समूहों को अमेरिकी मध्यस्थता वाले समझौते के तहत देश छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था। उस वक्त PLO को ट्यूनीशिया, यमन और अन्य जगहों पर निर्वासन में भेज दिया था। हालांकि, पांच साल बाद ही पहला फिलिस्तीनी इंतिफादा या विद्रोह गाजा में भड़क गया और पश्चिमी तट तक फैल गया। आज फिलिस्तीनी अपने मकसद के लिए अडिग हैं। वो इजरायली कब्जे को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं कर सकते थे। नीचे दिए ग्राफिक से समझते हैं कि इजरायल के हालिया हमलों के बाद अब उसकी लीडरशिप में कौन बचा है। 1982 के लेबनान युद्ध को लेबनान पर दूसरा इजरायली आक्रमण भी कहा जाता है। यह 6 जून, 1982 को उस वक्त शुरू हुआ, जब इजरायल ने दक्षिणी लेबनान पर आक्रमण किया। आक्रमण दक्षिणी लेबनान में एक्टिव फिलिस्तीन मुक्ति संगठन (PLO) और इजरायली सेना के बीच जबरदस्त लड़ाई हुई, जिसमें सीमा के दोनों ओर नागरिक मारे गए थे। इजरायली सैन्य अभियान का कोड नाम ऑपरेशन पीस फॉर गैलिली था।

अबू निदाल जैसे आतंकी सगंठन (फतह) के आतंकियों ने ब्रिटेन में इजरायल के राजदूत श्लोमो अर्गोव की हत्या का प्रयास किया था, जिसके बाद तत्कालीन इजरायली प्रधानमंत्री मेनाकेम बेगिन ने पीएलओ को दोषी ठहराया। उन्होंने लेबनान में इजरायली आक्रमण के पीछे यही वजह बताई। इजरायल की सरकार ने जब पीएलओ को निकाल बाहर किया तो उसने राष्ट्रपति बशीर गेमायेल के नेतृत्व में एक इजरायल समर्थक ईसाई सरकार बनवाई। इजरायल सरकार ने एक संधि पर हस्ताक्षर करने की उम्मीद जताई थी, जो इजरायल को ’40 साल की शांति’ देगी। मगर, इसी बीच सितंबर, 1982 में गेमेल की हत्या हो गई और शांति संधि की बात धरी की धरी रह गई।

इस युद्ध की वजह से बड़ी संख्या में इजरायली जनता मारी गई। इजरायली जनता का मोहभंग हो गया दिया। इजरायली डिफेंस फोर्सेज ने 29 सितंबर, 1982 को लेबनान में अपना अभियान समाप्त कर दिया। फरवरी से अप्रैल 1985 तक इजरायली सेना ने दक्षिण लेबनान सुरक्षा क्षेत्र में कब्जा कर रखा था, जिससे ईरान समर्थित लड़ाका समूह हिजबुल्लाह का जन्म हुआ। इसने 2000 में लेबनान से आईडीएफ की अंतिम वापसी तक इजरायली कब्जे के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध छेड़ दिया।

माना जाता है कि 1982 के इजरायली आक्रमण का सबसे अहम नतीजा यह हुआ कि हिजबुल्लाह के रूप में ऐसा नासूर पैदा हुआ, जिसने इजरायल के खिलाफ लगातार गुरिल्ला युद्ध छेड़ दिया। इसने इजरायल को दक्षिण लेबनान से एकतरफा हटने के लिए मजबूर कर दिया। ऐसा पहली बार था जब जब किसी अरब सैन्य बलों ने इजरायल को पीछे हटने के लिए मजबूर किया। अरब की धरती से ईरान की मदद से यह नया समूह उन फिलिस्तीनी उग्रवादियों से ज्यादा अधिक घातक और प्रभावी साबित हुआ। 2005 तक इस लड़ाई में ईरान ने हिजबुल्लाह की जमकर मदद की।

नसरल्लाह की मौत ईरान के लिए भी बड़ा झटका है। उसने अपने सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह अली खामनेई को इजरायली हमले के डर से कहीं छिपा दिया है। जुलाई में तेहरान के एक गेस्ट हाउस में हमास के राजनीतिक नेता इस्माइल हनिया की अपमानजनक हत्या का बदला भी अभी तक ईरान नहीं ले पाया है। अब नसरल्लाह की हत्या के बाद ईरान अब नई रणनीति पर विचार कर रहा होगा।ईरान के पास मध्य पूर्व में उसके मित्र देशों के भारी हथियारों से लैस लड़ाकों का एक पूरा संगठन है, जिसे कथित तौर पर ‘प्रतिरोध की धुरी’ (एक्सिस ऑफ रेजिस्टेंस) कहा जाता है। हिजबुल्लाह के अलावा यमन में हूती और सीरिया और इराक में भी कई शिया संगठन हैं, जिन्हें ईरान इजरायली और अमेरिकी ठिकानों पर हमले करने के लिए कह सकता है। हालांकि, वह इसके लिए सौ बार सोचेगा, क्योंकि इसकी प्रतिक्रिया बेहद जबरदस्त होगी।

17 सितंबर, 1978 को कैंप डेविड समझौते पर मिस्र के तत्कालीन राष्ट्रपति अनवर सादात और इजरायल के प्रधानमंत्री मेनाकेम बेगिन ने दस्तखत किए थे। मैरीलैंड के कैंप डेविड में 12 दिनों की सीक्रेट बातचीत के बाद इन दो समझौतों पर अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर की मौजूदगी में व्हाइट हाउस में हस्ताक्षर किए गए। इन समझौतों से मिस्र और इजरायल के बीच 1979 की मिस्र-इजरायल शांति संधि की राह खुली। इन्हीं समझौतों की वजह से सादात और बेगिन को संयुक्त रूप से 1978 का नोबेल शांति पुरस्कार मिला था। हालांकि, अमेरिका के हालिया रुख से अभी समझौते की गुंजाइश नहीं दिखती है।

 

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