यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या गृहमंत्री अमित शाह पश्चिम बंगाल को किसी भी हालत में प्राप्त करना चाहते हैं या नहीं! अमित शाह की पहचान बीजेपी के ‘चाणक्य’ के रूप में होती है। शाह के लिए यह विशेषण यूं ही नहीं बन गया है। शाह ने चुनावी राजनीति में गुजरात से लेकर दिल्ली तक अपनी काबिलियत को साबित किया है। पार्टी अध्यक्ष के रूप में शाह ने बीजेपी को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई है। पीएम मोदी के साथ उनके तालमेल की तो मिसाल दी जाती है। कहा जाता है कि शाह जो लक्ष्य तय करते हैं उसे हर हाल में पूरा करके ही छोड़ते हैं। अब पार्टी के इस कुशल रणनीतिकार ने अपने लिए पश्चिम बंगाल को बड़े लक्ष्य के रूप में तय किया है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर शाह ने यह लक्ष्य क्यों रखा है। अप्रैल-मई में लोकसभा चुनाव और आरजी कर की घटना के बाद शाह हाल ही में पहली बार पश्चिम बंगाल के दौरे पर पहुंचे थे। शाह ने यहां पार्टी की सदस्यता अभियान की शुरुआत की। इसके साथ ही शाह ने घोषणा की कि बीजेपी का ‘अगला बड़ा लक्ष्य’ 2026 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में सरकार बनाना है।
बीजेपी ने लोकसभा चुनाव में बंगाल से 30 से अधिक सीट जीतने का लक्ष्य रखा था, लेकिन उसे 2019 की तुलना में छह कम यानी 12 सीट पर जीत मिली। पश्चिम बंगाल में 42 लोकसभा सीट हैं। राज्य में संदेशखाली का मुद्दा काफी गरम रहा था। इस मुद्दे को लेकर बीजेपी ने महिला सुरक्षा को लेकर सरकार को घेरने का पुरजोर प्रयास किया था। पार्टी ने संदेशखाली पीड़ित में से एक रेखा पात्रा बशीरहाट लोकसभा सीट से पार्टी का उम्मीदवार बनाकर एक संदेश देने की कोशिश भी की थी। पीएम मोदी ने रेखा पात्रा को शक्ति स्वरूपा तक कहा था। इसके बाद पीएम मोदी खुद बंगाल जाककर संदेशखाली की पीड़ित महिलाओं से मिले थे।
हालांकि, बीजेपी महिला सुरक्षा जैसे मजबूत मुद्दे को भुनाने में असफल रही थी। इससे पार्टी को बड़ा झटका लगा था। ऐसे में शाह में संदेशखाली मुद्दे को पार्टी की तरफ से नहीं भुना पाने की टीस तो जरूर रही होगी। ऐसे में शाह नहीं चाहते हैं कि वह अगली बार विधानसभा चुनाव में किसी भी तरह से पिछड़ें। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी लगातार अपनी स्थिति मजबूत किए हुए हैं। पश्चिम बंगाल में अब तक मोदी लहर से लेकर शाह की रणनीतिक बेअसर रही है। बीजेपी तमाम कोशिशों के बावजूद यहां मजबूत स्थिति में खुद को नहीं पहुंचा पाई है। ममता ने विधानसभा चुनाव के बाद लोकसभा चुनाव में भी अपनी ताकत का अहसास दिया है। बंगाल में लोकसभा चुनाव में जीत से ममता यह संदेश देने में कामयाब रही हैं कि बंगाल में उनका अभी कोई विकल्प नहीं है। राजनीतिक विश्लेषकों के साथ ही लोगों के एक वर्ग में यह राय भी बन गई है कि बीजेपी का जादू बंगाल में फेल हो जाता है। ऐसे में शाह के सामने सबसे बड़ी चुनौती बंगाल में ममता को पटखनी देकर बीजेपी का दम दिखाना है।
अमित शाह ने 2026 में होने वाले विधानसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में दो तिहाई बहुमत हासिल करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। शाह ने पार्टी सदस्यों से राज्य में अपने प्रभाव को कम नहीं आंकने का आग्रह किया है। शाह एक कुशल रणनीतिकार की तरफ से कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं। बीजेपी ने राज्य में सदस्यता अभियान के दौरान पिछली बार 88 लाख से अधिक सदस्य बनाए थे। मौजूदा समय में पार्टी में अधिक सांसद और विधायक हैं। ऐसे में पार्टी का लक्ष्य एक करोड़ सदस्यों को पार करना है। पार्टी कार्यकर्ताओं को यह विश्वास दिला रही है कि वे चुनौती को स्वीकार करते हुए पार्टी के लक्ष्य को हासिल करने में जुट जाएं।
बीजेपी का राज्य में प्रदर्शन टुकड़ो-टुकड़ों में रहता है। पार्टी एक साथ पूरे राज्य में मजबूत नजर नहीं आती है। नार्थ परगना, साउथ परगना, कोलकाता, हावड़ा और हुगली में पार्टी का संगठन तुलनात्मक रूप से कमजोर है। इस क्षेत्र में 16 लोकसभा सीटों आती हैं। 2019 के चुनाव में बीजेपी ने 16 में से महज 3 सीटे ही जीती थी। इस बार यह प्रदर्शन और भी कमजोर रहा। राज्य में दिलीप घोष, सुवेंदु अधिकारी, तापस रॉय जैसे गिने-चुने ही चेहरे नजर आते हैं। ऐसे में शाह की नजर राज्य में क्षेत्रीय स्तर पर मजबूत चेहरों को सामने करने की होगी। इस तरह शाह के लिए पश्चिम बंगाल में अगले दो साल रणनीतिक रूप से काफी अहम है। शाह के सामने ममता के मजबूत किले को ध्वस्त करने की चुनौती है।