क्या ईरान और इजरायल युद्ध की वजह से पेट्रोल डीजल में कमी आ रही है?

0
89

यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या ईरान और इजरायल युद्ध की वजह से पेट्रोल और डीजल में कमी आ रही है या नहीं! मध्य पूर्व में जियो-पॉलिटिकल टेंशन बढ़ता है तो क्या भारत को तेल संकट का सामना करना पड़ेगा? भारत के पास 12 दिनों के खर्च के लिए पर्याप्त तेल भंडार है, रिफाइनरियों में अतिरिक्त आपूर्ति के साथ जो देश को लगभग 18 दिनों तक बनाए रख सकती है। हालांकि, इजरायल और ईरान एक-दूसरे पर हमले करके भी बहुत सतर्कता बरत रहे हैं। ऐसे में लगता नहीं है कि तेल संकट पैदा होने जैसी स्थिति पैदा हो सकती है। ये कहना है देश के पूर्व विदेश सचिव और इजरायल में राजदूत रहे रंजन मथाई का। उन्होंने कहा कि हॉर्मुज जलडमरूमध्य में 30 दिनों से अधिक समय तक किसी भी तरह की गड़बड़ी का वैश्विक अर्थव्यवस्था और भारतीय बाजारों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है। लेकिन ईरान के खिलाफ जंग में इजराइल की रणनीति बदल रही है। पहले वे दुश्मन को ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन अब वे सीधे टकराव से बचना चाहते हैं। सोमवार को सिनर्जिया फाउंडेशन के तत्वावधान में आयोजित ‘मध्य पूर्व की उलझन: क्या ईरान-इजराइल युद्ध और बढ़ेगा? (द मिडल ईस्ट क्वैगमेयर: विल द ईरान-इजराइल वॉर स्पाइरल फर्दर?)’ विषय पर एक बातचीत के दौरान मथाई ने यह बातें कहीं। उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच युद्ध का भविष्य क्या होगा, इसका अनुमान लगाना मुश्किल है, लेकिन ऐसा लगता है कि दोनों पक्ष पीछे हटने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन भविष्य में हालात बिगड़े तो? मथाई कहते हैं, ‘इस बात की चिंता है कि अगर युद्ध खाड़ी में फैलता है, तो यह वहां रहने वाले अस्सी लाख प्रवासियों को प्रभावित कर सकता है।’

26 अक्टूबर को इजराइल पर ईरान के लगभग 200 बैलिस्टिक मिसाइल हमले के जवाब में, इजराइल ने तेहरान, इलम और खुजेस्तान के पश्चिमी प्रांतों में सैन्य ठिकानों पर सीधे हमले किए थे। लेकिन, इजराइल ने ईरान के तेल और परमाणु प्रतिष्ठानों को निशाना नहीं बनाया। मथाई ने कहा, ‘हालांकि इजराइल ने यह दिखा दिया कि उसके पास तेहरान के खिलाफ घातक और सटीक हमले करने की क्षमता है, लेकिन ऐसा लगता है कि उसने जानबूझकर ईरान के तेल क्षेत्रों और परमाणु प्रतिष्ठानों को निशाना बनाने से परहेज किया क्योंकि इससे युद्ध और बढ़ सकता था और दुनिया भर में तेल की कीमतें बढ़ सकती थीं। ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई की इजराइल के लक्षित हवाई हमलों पर प्रतिक्रिया भी संयमित थी।’

खामेनेई ने प्रतिशोध के लिए सीधे आह्वान से बचते हुए इजराइल के हमलों को न तो बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने और न ही कम करके आंकने की सलाह दी थी। ईरान ने रविवार को इजराइल के हमलों का जवाब देने की कसम खाई, लेकिन कहा कि वह व्यापक युद्ध नहीं चाहता है। मथाई ने कहा, ‘ईरान को (जवाबी कार्रवाई के लिए) समय चाहिए। लंबे समय से चले आ रहे अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण उसकी अर्थव्यवस्था और आंतरिक एकता कमजोर हो रही है। इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (आईआरजीसी) के भीतर गुट हैं और ईरानी सत्ता प्रतिष्ठान में भी मतभेद हैं।

दूसरी ओर, इजराइल के पास (ईरान पर हमला करने की) सैन्य और तकनीकी क्षमता है, लेकिन उसे अमेरिका के समर्थन की आवश्यकता है। युद्ध के कारण उसकी आर्थिक भेद्यता भी दिखाई देने लगी है। इजराइल 2022 में अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का चार से पांच प्रतिशत रक्षा पर खर्च कर रहा था। तब से उसका रक्षा खर्च दोगुना हो गया है। 2024 में यह उसकी जीडीपी का लगभग नौ प्रतिशत होना चाहिए।’

इजराइल और ईरान के बीच पूर्ण युद्ध के वैश्विक प्रभाव पर मथाई ने कहा, ‘अगर हॉर्मुज स्ट्रेट में कोई गड़बड़ी होती है तो इसका पहला शिकार भारत सहित अन्य वैश्विक तेल बाजार होगा।’ ईरान के दक्षिणी तट पर स्थित 21 मील चौड़ा यह जलमार्ग दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण तेल पारगमन मार्ग है, जहां से हर दिन वैश्विक तेल व्यापार का लगभग पांचवां हिस्सा गुजरता है। मथाई ने कहा, ‘ईरान को आर्थिक चुनौतियों और कमजोर होती आंतरिक एकजुटता का सामना करना पड़ रहा है। उसका लक्ष्य प्रतिबंधों में ढील देकर सामान्य व्यापार बहाल करके और अपने तेल निर्यात को पुनर्जीवित करके कुछ राहत हासिल करना है।’ दूसरी तरफ, इजराइल की कमजोरियां भी साफ-साफ दिख रही हैं।

मथाई ने कहा, ‘हालांकि इजराइल के पास दुर्जेय सैन्य और तकनीकी क्षमताएं हैं, लेकिन उसकी कमजोरियां भी दिख रही हैं। उसे वर्तमान में अमेरिकी सहायता की आवश्यकता है और इसलिए उसे वॉशिंगटन में निर्णय लेने वाले अधिकारियों के साथ संवाद का एक ठोस माध्यम बनाए रखने पर भरोसा करना चाहिए।’ उन्होंने कहा कि इजराइल को अमेरिका के साथ अपनी बातचीत का माध्यम बनाए रखने की आवश्यकता है, जो उसका सबसे बड़ा सहयोगी और हथियार आपूर्तिकर्ता है।

बाजारों को अस्थिर होने से बचाने में अमेरिका महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, मथाई ने कहा कि एक समय रूस के पास वह क्षमता थी। उन्होंने कहा, ‘लेकिन यूक्रेन में दो साल के युद्ध ने उसकी सैन्य क्षमताओं को कम कर दिया है, जिससे पश्चिम एशिया में भी उसका प्रभाव कम हुआ है।’ भारत की भूमिका पर चर्चा करते हुए मथाई ने कहा कि देश ने अपने पारंपरिक दृष्टिकोण को बनाए रखते हुए संघर्ष को अच्छी तरह से संभाला है। उन्होंने कहा, ‘एक जो उचित शिकायत है, वह यह कि हमने फिलिस्तीनियों पर हमला किए जाने पर अपनी आवाज उठाने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं किए।’ उन्होंने कहा कि सरकार के भीतर एक मजबूत वैचारिक भावना है कि भारत को इजराइल का अधिक समर्थन करने की आवश्यकता है। इस बीच, ईरान समय हासिल करने की कोशिश कर रहा है।