महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के बीच डिप्टी CM देवेंद्र फडणवीस ने कहा है कि उद्धव ठाकरे के लिए भाजपा के दरवाजे बंद हो चुके हैं। महाराष्ट्र में पार्टी भविष्य में उनके साथ नहीं जाएगी। शिंदे को CM बनाने की जानकारी मुझे पहले से थी। मैं मुख्यमंत्री या अध्यक्ष किसी भी रेस में नहीं हूं। फडणवीस ने न्यू एजेंसी ANI से बातचीत में कहा कि NCP (SP) चीफ शरद पवार परिवार और पार्टी तोड़ने के मामले में महारथी हैं। NCP और शिवसेना अपनी अति महत्वाकांक्षाओं के कारण टूटीं। उद्धव CM बनना चाहते थे, इसलिए उन्होंने हमसे नाता तोड़ लिया। मुख्यमंत्री बनने के बाद वे आदित्य ठाकरे को आगे लाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने एकनाथ शिंदे को सफोकेट करने की कोशिश की। उन्होंने बंटेंगे तो कटेंगे नारे का महायुति और भाजपा में हो रहे विरोध पर कहा- मुझे योगी जी के नारे में कुछ भी गलत नहीं लगता। इस देश का इतिहास देख लीजिए, जब-जब इस देश को जातियों, प्रांतों और समुदायों में बांटा गया, यह देश गुलाम हुआ है। फडणवीस के इंटरव्यू की प्रमुख बातें… सवाल: महायुति के सत्ता में आने पर क्या आप मुख्यमंत्री होंगे?
जवाब: न तो मैं मुख्यमंत्री की दौड़ में हूं, न ही मैं अध्यक्ष की दौड़ में हूं। मैं ऐसी किसी दौड़ में नहीं हूं। भाजपा मेरा घर है, जीना यहां, मरना यहां, इसके सिवा जाना कहां। देवेंद्र फडणवीस ऐसा नट है जो कहीं भी फिट होता है, जहां भी पार्टी इस नट को फिट कर दे यह वहां फिट हो जाएगा। फडणवीस ने कहा, ‘हमें पूरा भरोसा है कि हम अपनी सरकार बनाएंगे। जैसे ही नतीजे आएंगे, तीनों पार्टियां एक साथ बैठेंगी और तय करेंगी कि मुख्यमंत्री किसे बनाया जाए। मैं इस प्रक्रिया में नहीं हूं। मैं अपनी पार्टी में एक क्षेत्रीय नेता हूं, यह सब राष्ट्रीय अध्यक्ष तय करेंगे।’ सवाल: शिंदे को CM बनाया गया, आप क्यों नहीं बनें?
जवाब: मुझे पहले दिन से पता था कि हम शिंदे जी को मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं। हम यह दिखाना चाहते थे कि उद्धव जी के साथ जो हुआ, वह सत्ता के लिए नहीं था। उस समय मैंने पार्टी से कहा था कि अगर मैं इस सरकार में शामिल होऊंगा तो लोग सोचेंगे कि यह आदमी पदों का इतना लालची है कि 5 साल मुख्यमंत्री रहा और वापस किसी और पद पर जा रहा है। मेरी पार्टी भी सहमत थी, लेकिन बाद में जब शपथ ग्रहण समारोह का समय आया तो मेरे नेताओं ने मुझसे कहा कि अभी यह बहुत नाजुक सरकार है और ऐसे समय में एक अनुभवी व्यक्ति का सरकार में होना बहुत जरूरी है। इसलिए मैंने इसे अपना सम्मान समझा और सरकार में चला गया। सवाल: क्या शिवसेना (UBT) नेता उद्धव ठाकरे के लिए महायुति का दरवाजा बंद हो चुका है?
जवाब: निश्चित ही बंद हो गया है और इसकी जरूरत भी नहीं पड़ने वाली है। 2019 के चुनाव ने मुझे ये सिखाया है कि राजनीति में कुछ भी हो सकता है। अब आवश्यकता नहीं पड़ेगी। लोग इस बार महायुति को निर्णायक बहुमत देंगे। सवाल : राज ठाकरे आपको मुख्यमंत्री के तौर पर देखना चाहते हैं?
जवाब : राज ठाकरे हमारे मित्र भी हैं और वैचारिक रूप से जब से उन्होंने हिंदुत्व स्वीकारा है तब से वे हमारे करीब भी आए हैं। लोकसभा के चुनाव में बिना किसी शर्त के उन्होंने PM मोदी को एक प्रकार से समर्थन दिया। जहां तक उनकी शुभकामनाओं का सवाल है निश्चित रूप से मैं उनको धन्यवाद दूंगा कि उन्होंने कोई अच्छी बात मेरे लिए कही। हालांकि वे जो कह रहे हैं वो सही नहीं है। सही ये है कि हमारे तीन नेता मिलकर ही तय करेंगे कि कौन मुख्यमंत्री होगा। सवाल: NCP और शिवसेना को तोड़ने का आरोप भाजपा पर लग रहा है?
जवाब: मुझे नहीं लगता कि इसका कोई असर होगा। अगर महाराष्ट्र में परिवार तोड़ने, जोड़ने, पार्टियों को तोड़ने, जोड़ने और फिर तोड़ने में कोई महारथी है तो वह शरद पवार हैं। अगर हम लिस्ट बनाएं कि 1978 से उन्होंने कितनी पार्टियों और परिवारों को तोड़ा है, तो उन्हें पार्टियों और परिवारों को तोड़ने का भीष्म पितामह कहना होगा। ये जो दो पार्टियां टूटीं उन्होंने नैरेटिव बनाने की कोशिश की कि भाजपा ने पार्टी तोड़ी पर लोगों को सच पता है। पार्टियां अपनी अति महत्वाकांक्षाओं के कारण टूटीं, उद्धव जी मुख्यमंत्री बनना चाहते थे, इसलिए उन्होंने हमसे नाता तोड़ लिया। मुख्यमंत्री बनने के बाद वे आदित्य ठाकरे को आगे लाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने एकनाथ शिंदे को सफोकेट करने की कोशिश की। दूसरी तरफ शरद पवार जी ने 30 साल से पार्टी का नेतृत्व कर रहे अजित पवार को विलेन बना दिया, क्योंकि वे सुप्रिया ताई को नेतृत्व देना चाहते थे। अजित पवार के पास कोई विकल्प नहीं बचा था। यह व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के कारण हुआ।” सवाल: उलेमा बोर्ड ने कांग्रेस, NCP और उद्धव ठाकरे को चिट्ठी लिखकर समर्थन देने की घोषणा की है?
जवाब: महा विकास अघाड़ी ने मुस्लिम उलेमाओं के तलवे चाटने शुरू कर दिए हैं। अभी उलेमा काउंसिल ने उन्हें अपना समर्थन देने की घोषणा की है, उन्होंने 17 मांगें रखी थीं और MVA ने औपचारिक पत्र दिया है कि हम उन 17 मांगों को स्वीकार करते हैं। मुझे उस पर कोई आपत्ति नहीं है, अगर कोई कोई मांग रखता है, अगर कोई कोई मांग मानता है। उनमें से एक मांग यह है कि 2012 से 2024 तक महाराष्ट्र में हुए दंगों के दौरान मुस्लिम समुदाय के लोगों पर जो मामले दर्ज किए गए थे, उन्हें वापस लिया जाए। यह किस तरह की राजनीति है? सवाल: क्या अडाणी ग्रुप को लेकर महायुति में मतभेद है?
जवाब: शिवसेना (UBT) की हमेशा से नीति रही है कि सत्ता से बाहर रहो तो विरोध करो और जब सत्ता में आओ तो उसका समर्थन करो। उन्होंने विरोध किया और महाराष्ट्र में बनने वाली सबसे बड़ी रिफाइनरी को रद्द करवा दिया और जब वे मुख्यमंत्री बन गए तो उन्होंने यहां रिफाइनरी बनाने के लिए पत्र लिखा। इस धारावी प्रोजेक्ट में मैंने टेंडर जारी किया, जिस समय मैंने टेंडर अलॉट किया, उस समय अडाणी जी नहीं थे, लेकिन उस टेंडर को रद्द करने के बाद नए टेंडर की सारी शर्तें उद्धव ठाकरे ने तैयार की, उनकी कैबिनेट ने उसे मंजूरी दी। उन शर्तों के आधार पर टेंडर बनाया गया और अडाणी उसमें सफल बिडर बने, इसलिए टेंडर उनके पास चला गया, हालांकि यह टेंडर अडाणी कंपनी को नहीं मिला है, यह DRP को दिया गया है जिसमें हमारी हिस्सेदारी है। DRP में महाराष्ट्र सरकार एक हिस्सेदार है और DRP ही सब कुछ कर रही है। इसलिए वे जो कह रहे हैं कि यह अडाणी को दिया गया, यह गलत है… मैं पूरे दावे से कहता हूं कि अगर उनके समय में भी अडाणी टेंडर में सफल बिडर होते तो क्या वे टेंडर नहीं देते, क्या उनकी अडाणी के साथ बैठकें नहीं होतीं?” महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से जुड़ी ये खबरें भी पढ़ें… राहुल बोले- मोदी ने संविधान नहीं पढ़ा:देश में 8% आदिवासी लेकिन संसाधनों में सिर्फ 1% हिस्सेदारी राहुल ने 14 नवंबर को महाराष्ट्र के नंदुरबार में कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने कभी संविधान पढ़ा नहीं है, इसलिए उन्हें लगता है कि संविधान की लाल किताब खाली है। उन्होंने कहा- भाजपा को किताब का लाल रंग पसंद नहीं, लेकिन हमें इसकी परवाह नहीं कि रंग लाल है या नीला। हम इसे (संविधान) बचाने के लिए अपनी जान भी देने को तैयार हैं। पूरी खबर पढ़ें… मोदी बोले- एक तरफ संभाजी महाराज को मानने वाले देशभक्त, दूसरी तरफ उनके कातिल को मसीहा मानने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 11 नवंबर को छत्रपति संभाजीनगर में कहा- महाराष्ट्र का ये चुनाव सिर्फ नई सरकार चुनने का ही चुनाव नहीं है। इस चुनाव में एक तरफ संभाजी महाराज को मानने वाले देशभक्त हैं और दूसरी ओर औरंगजेब के गुणगान करने वाले लोग हैं। कुछ लोगों को छत्रपति संभाजी के कातिलों में मसीहा नजर आता है। पूरी खबर पढ़ें…
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