एक ऐसा समय भी था जब इंदिरा गांधी की हार के बाद तख्तापलट का डर उठा था! इमरजेंसी के बाद हुए आम चुनाव में जनता ने कांग्रेस को खारिज कर दिया। इंदिरा गांधी तक चुनाव हार गईं। जनता पार्टी और सहयोगी दलों ने जबरदस्त जीत हासिल की। इंदिरा को डर था कि सरकार उनके परिवार और खासतौर पर संजय गांधी के खिलाफ एक्शन ले सकती है। लेकिन, ऐसी ही आशंका नई सरकार को भी थी। जनता पार्टी को एकबारगी यहां तक लगने लगा कि सत्ता के गलियारे में मौजूद इंदिरा के वफादार तख्तापलट कर सकते हैं। इंदिरा गांधी की हार के कुछ ही घंटों बाद दिल्ली में इंटेलिजेंस ब्यूरो के जॉइंट डायरेक्टर वीवी नागरकर को सूचना मिली कि 1, सफदरजंग रोड स्थित आवास से दो बक्सों में डॉक्युमेंट्स छतरपुर स्थित फार्म हाउस भेजे गए हैं, जमीन में गाड़ने के लिए। नागरकर की सूचना पर जॉर्ज फर्नांडिस ने अपने राजनीतिक सचिव रवि नायर को टोह लेने भेजा। नायर और आईबी के एक डीसीपी फार्म हाउस पहुंचे। उन लोगों को वहां कुछ नहीं मिला। एक महीने बाद दोबारा जांच की गई। तब एक माली ने रवि को बताया कि संदूकों को खोदकर निकाल लिया गया है।
जनता पार्टी की सरकार बनने के कुछ ही बाद की बात है, गृह मंत्री चरण सिंह के कहने पर कैबिनेट ने फैसला किया कि नौ राज्यों में कांग्रेस की सरकारों को बर्खास्त कर दिया जाए। सरकार का मानना था कि इंदिरा की हार के साथ इन राज्यों की कांग्रेस सरकारों ने भी जनादेश खो दिया है। इस बारे में कार्यवाहक राष्ट्रपति बीडी जत्ती के पास प्रस्ताव भेजा गया। लेकिन, जत्ती ने एक नहीं, बल्कि दो बार प्रस्ताव रोक दिया। 29 अप्रैल 1977 को उन्होंने सरकार को बताया कि उन्हें मामले पर सोच-विचार के लिए और समय चाहिए। इसने केंद्र को सकते में डाल दिया। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर करने से इनकार करने का परिणाम संवैधानिक संकट हो सकता था। चिंतित प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने 30 अप्रैल 1977 को कैबिनेट की बैठक बुलाई। मंत्रियों की घबराहट स्पष्ट थी। वे चिंतित थे कि कार्यवाहक राष्ट्रपति क्या कर सकता है। वे जानते थे कि जत्ती वफादार हैं इंदिरा गांधी के प्रति। हालांकि किसी भी मंत्री ने स्पष्ट रूप से नहीं कहा और यह सवाल वहां अनकहा रह गया कि क्या सशस्त्र सेना के सर्वोच्च कमांडर के रूप में जत्ती सेना को बुलाकर नई सरकार को सत्ता से हटा सकते हैं?
उस कैबिनेट मीटिंग में रक्षा मंत्री जगजीवन राम ने अपने सहयोगी मंत्रियों का डर दूर करने का प्रयास किया। उन्होंने बताया कि इमरजेंसी के दौरान तत्कालीन रक्षा मंत्री बंसीलाल ने तब के सेना प्रमुख से मुलाकात कर आपातकाल को समर्थन देने के लिए कहा था। लेकिन, सेना प्रमुख ने इनकार कर दिया। जगजीवन राम ने कैबिनेट से कहा कि सेना पर संदेह नहीं करना चाहिए। उसी रात को जॉर्ज फर्नांडिस के पास फिर से आईबी ऑफिसर नागरकर का फोन आया और उन्होंने चेताया, ‘कुछ होने वाला है।’ तख्तापलट का संदेह फिर पनपने लगा। संदेह को तब और हवा मिली, जब तुरंत ही जॉर्ज के पास मधु लिमये का फोन आया। उन्हें भी अलर्ट किया गया। जॉर्ज फर्नांडिस ने फौरन अपने राजनीतिक सचिव रवि नायर को नई दिल्ली के हाई सिक्यॉरिटी एरिया का चक्कर लगाने के लिए भेजा। बता दें कि ऐसी ही आशंका नई सरकार को भी थी। जनता पार्टी को एकबारगी यहां तक लगने लगा कि सत्ता के गलियारे में मौजूद इंदिरा के वफादार तख्तापलट कर सकते हैं। इंदिरा गांधी की हार के कुछ ही घंटों बाद दिल्ली में इंटेलिजेंस ब्यूरो के जॉइंट डायरेक्टर वीवी नागरकर को सूचना मिली कि 1, सफदरजंग रोड स्थित आवास से दो बक्सों में डॉक्युमेंट्स छतरपुर स्थित फार्म हाउस भेजे गए हैं, यही नहीं सरकार का मानना था कि इंदिरा की हार के साथ इन राज्यों की कांग्रेस सरकारों ने भी जनादेश खो दिया है। इस बारे में कार्यवाहक राष्ट्रपति बीडी जत्ती के पास प्रस्ताव भेजा गया। लेकिन, जत्ती ने एक नहीं, बल्कि दो बार प्रस्ताव रोक दिया। 29 अप्रैल 1977 को उन्होंने सरकार को बताया कि उन्हें मामले पर सोच-विचार के लिए और समय चाहिए। इसने केंद्र को सकते में डाल दिया। जमीन में गाड़ने के लिए। नायर ने उधार का एक दोपहिया वाहन लिया और लुटियंस का जायजा लेने निकल पड़े। उन्हें सेना मुख्यालय, ऑल इंडिया रेडियो या संसद भवन के पास, कहीं भी कुछ असामान्य नहीं मिला। वापस आकर उन्होंने जॉर्ज फर्नांडिस को रिपोर्ट दी कि सब सही है।