आखिर अपने ही क्षेत्र में कैसे हारी बीजेपी?

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यह सवाल उठना लाजिमी है कि बीजेपी अपने ही क्षेत्र में कैसे हारी! 2024 का आम चुनाव चौंकाने वाला रहा। नरेंद्र मोदी की अगुआई में NDA लगातार तीसरी बार सरकार बनाने में जरूर सफल रहा, लेकिन इस चुनाव ने कई मिथ तोड़ने के साथ कुछ रिवर्स ट्रेंड भी दिखाए। सबसे अहम ट्रेंड था ऑल्टरनेटिव मीडिया और सोशल मीडिया पर विपक्षी स्पेस का मजबूत होकर उभरना। समानांतर नैरेटिव में विपक्ष इस बार बीस पड़ा। दिलचस्प बात है कि 2014 में नरेंद्र मोदी की अगुआई में BJP के उभरने के पीछे जो प्लेटफॉर्म सबसे सशक्त मीडियम रहा, 2024 में वहीं से उनके लिए सबसे ज्यादा प्रतिरोध उभरा। चुनाव में विपक्ष पूरी तरह सोशल मीडिया पर निर्भर रहा। खासकर I.N.D.I.A. के घटक दलों ने अपनी बात पहुंचाने, लोगों से जुड़ने के लिए इस मीडियम का इस्तेमाल किया। कांग्रेस ने खासतौर पर सार्वजनिक मंचों से मुख्यधारा की मीडिया के प्रति अपनी नाराजगी जाहिर की। राहुल गांधी ने एक भी इंटरव्यू नहीं दिया। विपक्ष और उनके समर्थकों ने पूरी ताकत सोशल मीडिया पर लगाई, खासकर यूट्यूब पर। इसमें social media influencers का भी साथ मिला। सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर ध्रुव राठी का BJP के खिलाफ बनाया गया विडियो पूरे देश में वायरल हुआ, करोड़ों व्यू मिले। विपक्ष ने भी इस विडियो का इस्तेमाल किया। ऐसे विडियो से इस बात को और बल मिला कि BJP 400 सीटें जीतने के बाद संविधान बदल सकती है।

आंकड़े भी बताते हैं कि पिछले एक साल के दौरान सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म पर विपक्ष लगातार मजबूत हुआ। हालांकि चुनाव से ठीक पहले BJP और खुद नरेंद्र मोदी को इसका एहसास हो गया था। इलेक्शन के पहले मोदी ने social media influencers से मुलाकात भी की थी। लेकिन, विपक्ष ने शुरू में ही जो बढ़त बना ली थी, उसे उसका फायदा मिला। संविधान बदलने का मुद्दा हो, युवाओं को रोजगार का मसला या कोई और बात, विपक्ष ने सोशल मीडिया का बेहतर इस्तेमाल किया। वोटिंग पैटर्न पर आए ट्रेंड जाहिर करते हैं कि चुनाव पर सोशल मीडिया का कितना बड़ा असर पड़ा। 18 से 30 साल के युवाओं ने 2014 और 2019 की तुलना में इस बार विपक्ष को अधिक वोट दिया। यूट्यूब और इंस्टाग्राम पर राहुल गांधी के विडियो 300% अधिक देखे गए। कांग्रेस का घोषणापत्र एक करोड़ बार डाउनलोड हुआ। यूट्यूब पर BJP के खिलाफ कंटेंट की व्यूअरशिप अधिक रही।

ऑल्टरनेटिव मीडिया और सोशल मीडिया ने मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में ठीक वैसी ही भूमिका निभाई, जैसा कि UPA-2 के दौर में हुआ था। दरअसल, इसकी शुरुआत किसान आंदोलन के समय ही हो गई थी। तब किसानों ने सोशल मीडिया का प्रभावशाली ढंग से इस्तेमाल किया और पूरे साल आंदोलन चला। आखिरकार किसान अपनी मांग मनवाने में सफल रहे। हालांकि इस बार जब विपक्ष सोशल मीडिया पर अपनी पहुंच बढ़ा रहा था, तब BJP ने इसे यह कहकर खारिज कर दिया कि वह जमीन पर अधिक ताकतवर हो चुकी है। लेकिन, उसका आकलन कहीं न कहीं गलत साबित हुआ, खासकर पहली बार वोट डालने वालों के बारे में। ऐसे मतदाताओं के बीच पिछले कुछ बरसों में ब्रैंड राहुल भी मजबूत हुआ है।

10 साल पहले, 2014 में लोगों ने पहली बार ऐसा चुनाव देखा था जिसका एक रणक्षेत्र सोशल मीडिया भी बना। नरेंद्र मोदी वहां सुपरस्टार बनकर सामने आए। पूरे चुनाव के दौरान सोशल मीडिया ने न सिर्फ खबरें ब्रेक कीं, बल्कि ओपिनियन मेकिंग में भी दखल दिया। तब लोकसभा की 163 सीटें शहरी या विकसित होते क्षेत्रों में आती थीं। जानकारों के अनुसार, इन जगहों पर सोशल मीडिया ने चुनाव प्रचार और लोगों के मत को प्रभावित करने में प्रभावी भूमिका निभाई। 2014 में सीमित इंटरनेट विस्तार के बावजूद सोशल मीडिया ने चुनाव पर गहरा असर डाला था। तब विपक्ष इस प्लैटफॉर्म से पूरी तरह अनजान-सा दिखा। लेकिन, तब जो सबक मिला तो उसने धीरे-धीरे यहां भी अपनी उपस्थिति दर्ज करानी शुरू कर दी।

एक दशक पहले सोशल मीडिया ने पहली बार भारत में कैंपेन और नैरेटिव को आगे ले जाने के सशक्त हथियार के रूप में उपयोग होने की संभावना की पुष्टि की थी। इससे पहले अन्ना हजारे का लोकपाल आंदोलन हो या दिल्ली गैंग रेप के बाद शुरू हुआ आंदोलन, इनकी रूपरेखा सोशल मीडिया पर रची गई। नरेंद्र मोदी और उनकी टीम ने तभी इसमें छिपी संभावना को तलाशा था और एक मजबूत टीम बनाकर यहां कैंपेन शुरू कर दिया था। इस प्लैटफॉर्म पर मोदी देश ही नहीं दुनिया के लोकप्रिय नेता बनकर उभरे। आज भी वह सोशल मीडिया पर सबसे मजबूत हैं। लेकिन, कहीं न कहीं विपक्ष और Social Media Influencers के सामूहिक हमले का काउंटर सत्ता पक्ष नहीं कर सका। जिस मैदान पर BJP और नरेंद्र मोदी अजेय रहते थे, इस चुनाव में उसी मैदान पर वे पूरी तरह बैकफुट पर दिखे।