Wednesday, December 4, 2024
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आखिर इसराइल और ईरान कैसे बन गए कट्टर दुश्मन?

यह सवाल उठना लाजिमी है कि इसराइल और ईरान जैसे दो दोस्त देश कट्टर दुश्मन कैसे बन गए!ईरान ने आखिरकार इजरायल पर मिसाइलों से हमला बोल दिया। उसने दावा किया है कि इन हमलों में इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद के हेडक्वॉर्टर्स तबाह हो गया। ईरान ने यह भी कहा है कि उसने इस्माइल हानिया और हिजबुल्लाह चीफ हसन नसरल्लाह की मौत का बदला ले लिया है। वहीं, इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा है कि ईरान ने ये हमले करके बहुत बड़ी गलती कर दी है। अब उसे इसकी कीमत चुकानी होगी। नेतन्याहू का इस मामले में अमेरिका भी साथ दे रहा है। इजरायल-ईरान के बीच दुश्मनी आज चरम पर पहुंच चुकी है, मगर कभी दोनों दोस्त हुआ करते थे। जानते हैं कि दोनों की दोस्ती और दुश्मनी की पूरी कहानी। ईरान की दुश्मनी की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं कि वह यह मानने लगा है कि इजरायल के वजूद में रहने का हक नहीं है। ईरान इजरायल को छोटा शैतान तो अमेरिका को बड़ा शैतान मानता है। मध्य-पूर्व में ईरान चाहता है कि अमेरिका और इजरायल इस क्षेत्र से गायब हो जाएं।

इजरायल यह मानता है कि हिजबुल्लाह, हमास और हूती विद्रोहियों को पैसे देता है और ईरान के सुप्रीम कमांडर अयातुल्लाह खामनेई यहूदी विरोधी संगठनों को इजरायल के खिलाफ भड़काते हैं। इन दोनों की दुश्मनी में अब तक हजारों लोग मारे जा चुके हैं। ईरान ने इजरायल के खिलाफ एक्सिस ऑफ रजिस्टेंस तैयार किया है। ईरान में 1979 की इस्लामी क्रांति से पहले तक इजरायल के साथ उसके संबंध काफी दोस्ताना थे। इस्लामी क्रांति से पहले तक ईरान में पहलवी राजवंश का शासन था। उस वक्त ईरान मध्य-पूर्व में अमेरिका के बड़े सहयोगियों में से एक हुआ करता था। 1948 में जब इजरायल बना तो उस वक्त तुर्की के बाद ईरान ही इजरायल को मान्यता देने वाला दूसरा मुस्लिम देश था।

इजरायल के फाउंडर और उसकी पहली सरकार के प्रमुख डेविड बेन गुरियन ने अपने अरब पड़ोसियों को साधने के लिए ईरान से दोस्ती कर ली थी, ताकि नए यहूदी देश को लेकर कोई कुछ बोल न सके। मगर, 1979 में कट्टर अयातुल्लाह खुमैनी की क्रांति ने शाह को उखाड़ फेंका और एक इस्लामी गणतंत्र लागू किया। खुमैनी ने खुद को ईरान का रक्षक करार दिया था। उन्होंने ईरान में अमेरिका और इजरायल के प्रति नफरत के बीज बोए, जिसका चरम रूप आज देखने को मिल रहा है। अयातुल्लाह की सरकार ने इजरायल के साथ संबंध तोड़ लिए। उसने उसके नागरिकों के पासपोर्ट की वैधता को मान्यता देना बंद कर दिया और तेहरान में इजरायली दूतावास को ज़ब्त कर फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइज़ेशन (PLO) को सौंप दिया। उस समय अलग फिलिस्तीन के लिए इजरायल के खिलाफ लड़ाई का नेतृत्व PLO कर रहा था। वजह यह थी कि अयातुल्लाह की सरकार के कई कमांडरों ने PLO के साथ लेबनान में लड़ाई लड़ी थी।

इजरायल और ईरान के बीच यह दोस्ती इतनी गहरी थी कि खुमैनी के आने के बाद भी इज़रायल ने 1980 से 1988 तक ईरान-इराक युद्ध के दौरान ईरान को काफी मदद दी थी। हुआ यह था कि 22 सितंबर 1980 को सद्दाम हुसैन की सेना ने अचानक ईरान पर हमला कर दिया था। युद्ध के दौरान ईरान को सैन्य साजोसामान मुहैया कराने वालों में सबसे आगे इजरायल ही था। इज़राइल ने ईरान के युद्ध को प्रत्यक्ष समर्थन दिया था। उस वक्त इजरायल ने ऑपरेशन बेबीलोन के तहत इराक के ओसिरक परमाणु रिएक्टर पर बमबारी करके उसे नष्ट कर दिया। परमाणु रिएक्टर को इराक के परमाणु हथियार कार्यक्रम का एक हिस्सा माना जाता था। उस वक्त इराक पर तानाशाह सद्दाम हुसैन का राज था।

1982 की बात है, जब इजरायल ने लेबनान पर आक्रमण कर फिलिस्तीन मुक्ति संगठन को बाहर कर दिया था। दक्षिण लेबनान में सुरक्षा क्षेत्र के आगामी निर्माण से लेबनान में इजरायली सहयोगियों और नागरिक इजरायली आबादी को अस्थायी रूप से लाभ हुआ। नतीजा यह हुआ कि दक्षिण लेबनान के भीतर फिलीस्तीनी के बजाय घरेलू लेबनानी प्रतिरोध आंदोलन का उदय हुआ, जहां हिजबुल्लाह मजबूती के साथ उठ खड़ा हुआ। दोनों देशों में संबंध तब और बिगड़ गए जब ये खुलासा हुआ कि ईरान परमाणु हथियार हासिल करने का काम शुरू कर चुका है। इजरायल किसी भी कीमत पर ये नहीं चाहता है कि मध्य पूर्व में किसी देश के पास परमाणु हथियार हो। तब से दोनों देशों के रिश्तों में और खटास आती गई, जो अब कट्टर दुश्मनी में बदल गई।

इजरायल और ईरान के बीच की लड़ाई को ‘शैडो वॉर’ कहा जाता है, क्योंकि दोनों ही देश हमलों को सीधे तौर पर स्वीकार नहीं करते हैं। कभी ईरान से जुड़े इस्लामिक जिहादी समूह ने अर्जेंटीना में इजरायली दूतावास उड़ा दिया था। उसके कुछ समय पहले ही हिज़बुल्लाह नेता अब्बास अल मुसावी की हत्या कर दी गई थी। इसके लिए मोसाद पर आरोप लगे थे। हाल ही में ईरान समर्थक हमास लीडर इस्माइल हानिया की तेहरान में हत्या और हिजबुल्लाह के चीफ कमांडर नसरल्लाह की हत्या के पीछे भी इजरायल को ही जिम्मेदार माना जाता है।

कैंप डेविड समझौता 17 सितंबर, 1978 में इजरायल और मिस्र के बीच हुआ था, जिसमें अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने मध्यस्थता की थी। कैंप डेविड समझौते पर मिस्र के तत्कालीन राष्ट्रपति अनवर सादात और इजरायल के प्रधानमंत्री मेनाकेम बेगिन ने दस्तखत किए थे। इस समझौते से दोनों देशों के बीच शांति स्थापित हुई थी। इन्हीं समझौतों की वजह से सादात और बेगिन को संयुक्त रूप से 1978 का नोबेल शांति पुरस्कार मिला था। हालांकि, इजरायल और ईरान के बीच अभी ऐसा समझौता संभव होना मुश्किल लगता है, क्योंकि दोनों देशों के बीच के मुद्दे जटिल हैं और ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर विश्व समुदाय में चिंता है।

 

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