Saturday, July 27, 2024
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आखिर लालू परिवार ने कैसे किया था घोटाला?

आज से करीब 15 साल पहले लालू परिवार ने बहुत बड़ा घोटाला किया था! जिस IRCTC घोटाले की जद में लालू परिवार अटका हुआ है, उसकी कहानी शुरू होती है आज से 19 साल पहले। वो साल था 2004 और महीना मई का। लालू प्रसाद यादव कांग्रेस की यूपीए पार्ट वन सरकार में रेल मंत्री बनाए गए। करीब एक साल बाद फरवरी 2005 में रेल मंत्रालय की नजर IRCTC के दो होटलों पर जाती है और इन्हें किराए पर चलाने का फैसला लिया जाता है। ये दो होटल थे झारखंड की राजधानी रांची और ओडिशा के पुरी में। जब इन होटलों को किराए यानी लीज पर दिए जाने का फैसला लिया गया तो उसके कुछ ही हफ्तों बाद पटना में एक जमीन की खरीद-बिक्री हुई। वो भूमि सुजाता होटल्स नाम वाली एक कंपनी की थी।  जो तीन एकड़ जमीन बेची गई, उसे खरीदा था एक कंपनी ने। उस कंपनी का नाम था डिलाइट मार्केटिंग। इस जमीन को सिर्फ 1.47 करोड़ रुपयों में खरीदा गया। यहीं एक छोटा सा तथ्य है जिसने केस में अहम भूमिका निभाई। ये कंपनी थी प्रेम चंद गुप्ता की। वही प्रेम चंद गुप्ता जो लालू प्रसाद यादव के खासमखास थे और आरजेडी के राज्यसभा सांसद भी। यानी सुजाता होटल्स की जमीन को तब की एक छोटी सी कंपनी डिलाइट ने खरीद लिया। एक रिपोर्ट के मुताबिक कुछ साल बाद डिलाइट मार्केटिंग कंपनी ने खुद को ही बेच दिया। डिलाइट के सारे शेयर खरीद लिए गए। उन शेयरों को खरीदा लारा प्रोजेक्ट्स नाम की कंपनी ने। आरोप है कि लालू और राबड़ी के नाम के पहले अक्षरों से बनी इस कंपनी के मालिक तेजस्वी यादव और राबड़ी देवी थे या कहिए कि हैं। उस दौरान 1.74 करोड़ रुपयों की जमीन खरीदने वाली डिलाइट ने अपने सारे शेयर सिर्फ 64 लाख रुपयों में ही बेच दिए।

इसके बाद डिलाइट को खरीदने वाली लारा कंपनी नियमों के मुताबिक 3 एकड़ वाली जमीन की मालिक बन गई। यानी सुजाता होटल्स की जमीन को तब की एक छोटी सी कंपनी डिलाइट ने खरीद लिया। एक रिपोर्ट के मुताबिक कुछ साल बाद डिलाइट मार्केटिंग कंपनी ने खुद को ही बेच दिया। डिलाइट के सारे शेयर खरीद लिए गए। उन शेयरों को खरीदा लारा प्रोजेक्ट्स नाम की कंपनी ने। आरोप है कि लालू और राबड़ी के नाम के पहले अक्षरों से बनी इस कंपनी के मालिक तेजस्वी यादव और राबड़ी देवी थे या कहिए कि हैं। उस दौरान 1.74 करोड़ रुपयों की जमीन खरीदने वाली डिलाइट ने अपने सारे शेयर सिर्फ 64 लाख रुपयों में ही बेच दिए।इसके बाद लारा ने फैसला किया कि इस जमीन पर एक मॉल बनवाया जाए। इसी मॉल के निर्माण पर फिलहाल हाईकोर्ट ने रोक लगा रखी है। इस तरह से तीन एकड़ जमीन सुजाता होते हुए डिलाइट तक पहुंची और फिर लारा के कब्जे में आ गई।

खैर, ये कहानी तो सुजाता से होते हुए डिलाइट के रास्ते लारा तक पहुंची। जब ये सबकुछ चल रहा था उसी बीच 2006 की नवंबर में रेलवे ने रांची और पुरी वाली IRCTC की होटलों को किराए पर देने के लिए ठेका निकाला।यानी सुजाता होटल्स की जमीन को तब की एक छोटी सी कंपनी डिलाइट ने खरीद लिया। एक रिपोर्ट के मुताबिक कुछ साल बाद डिलाइट मार्केटिंग कंपनी ने खुद को ही बेच दिया। डिलाइट के सारे शेयर खरीद लिए गए। उन शेयरों को खरीदा लारा प्रोजेक्ट्स नाम की कंपनी ने। आरोप है कि लालू और राबड़ी के नाम के पहले अक्षरों से बनी इस कंपनी के मालिक तेजस्वी यादव और राबड़ी देवी थे या कहिए कि हैं। उस दौरान 1.74 करोड़ रुपयों की जमीन खरीदने वाली डिलाइट ने अपने सारे शेयर सिर्फ 64 लाख रुपयों में ही बेच दिए। ठेके की कंडीशन्स यानी शर्तें कुछ इस तरह की थीं जिससे सुजाता होटल को ये काम नहीं मिलता। यहां आरोप ये है कि ठेका निकाले जाने के कुछ ही दिन के अंदर इसकी शर्तें बदल दी गईं। नई शर्तों ने सुजाता होटल्स का काम यहां तक पहुंचने में आसान कर दिया। इतनी जल्दी काम हुआ कि करीब एक महीने यानी 2006 की दिसंबर में सुजाता होटल्स को IRCTC के दोनों होटल किराए पर चलाने के लिए यानी लीज पर मिल गए।

तत्कालीन उपमुख्यमंत्री और अब बीजेपी के राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी का भी इसमें अहम रोल है। मोदी ने ही आरोप लगाया था कि सगुना मोड़ वाली जमीन की असल कीमत 94 करोड़ रुपये थी, लेकिन लालू यादव ने सुजाता होटल्स को पुरी और रांची वाले होटल लीज पर देकर बदले में ये जमीन ली। लेकिन ऐसे नहीं बल्कि सुजाता से डिलाइट और फिर लारा के जरिए। यानी कंपनी-कंपनी का खेल कर। अब इसी केस की जद में लालू परिवार फंसा हुआ है।

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