वर्तमान में सभी की टंकी गर्म होने के बाद गर्म पानी छोड़ रही है! इसके बाद लोग उसे ठंडा करना चाहते हैं! बता दें कि भीषण गर्मी के इस मौसम में नहाना भला किसे पसंद नहीं होगा। खास तौर से अगर ठंडा पानी मिल जाए तो बात ही क्या। हालांकि, अगर आप भी टंकी का पानी इस्तेमाल करते हैं तो शायद ही आप नहाने की हिम्मत जुटा पाएं। ऐसा इसलिए क्योंकि चिलचिलाती धूप में टंकी का पानी बुरी तरह से गरम रहता है। अगर आप नहाने के लिए शॉवर चालू करते हैं तो उबलते पानी की धार जैसे ही आपसे टकराएगी झल्लाहट में चिल्ला उठेंगे। आप ऐसा लगेगा मानो किसी ने गीजर ऑन कर दिया हो। इस समय ज्यादातर दिल्लीवासियों को ऐसे ही अनुभव हुए होंगे जब नलों से निकलने वाला ठंडा पानी लगभग उबलता हुआ गर्म हो जाता है। तेज धूप की वजह से ऐसा होता है। दिल्ली-एनसीआर में जून के इस महीने में पारा 45 डिग्री के आस-पास या उससे भी ज्यादा है। ऐसे में छतों पर रखे गए प्लास्टिक के पानी टैंक दिन भर 45 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा तापमान के संपर्क में रहते हैं। इसी के चलते टंकी का पानी खौलने लगता है। ऐसे में अगर आप डायरेक्ट टंकी का पानी इस्तेमाल करने जाएं तो शायद ही इसे छूने की हिम्मत जुटा पाएं। ऐसे में लोग अलग-अलग तरीके अपनाते हैं जिससे ठंडा पानी मिल सके। कुछ लोग ड्रम और बाल्टी में पानी जमा रखते हैं। कुछ लोग पानी ठंडा करने के लिए इसे एसी वाले कमरे में रखते हैं।
पारंपरिक रूप से, घरों और इमारतों की छतों पर कंक्रीट के टैंक होते थे। हालांकि उसकी जगह अब ज्यादातर सिंटेक्स टैंकों ने ले ली है। पहले वाले टैंक दूसरे टैंकों की तुलना में ज्यादा गर्मी बनाए रखते हैं। यही वजह है कि जब पारा नियमित रूप से 45 डिग्री सेल्सियस के निशान को पार कर जाता है, तो सुबह-सुबह भी नल का पानी बहुत गर्म होता है। गर्मियों में पानी टैंकों के अत्यधिक गर्म होने की समस्या से कैसे निपटा जाए इसे लेकर लोग प्लानिंग करते रहते हैं। वो टैंक को ढंक कर भी रखते हैं। हालांकि, इससे खास फायदा नहीं होता।
पानी के टैंक को गर्म होने से बचाने को लेकर आईआईटी दिल्ली में सिविल इंजीनियरिंग की प्रोफेसर दीप्ति रंजन साहू ने इंस्यूलेशन के सुझाव दिए हैं। यह फोम और फाइबरग्लास जैसी अल्ट्रा वायलेट-प्रतिरोधी सामग्री से बना टैंक का जैकेट हो सकता है। हालांकि, इसकी लागत काफी ज्यादा हो सकती है। इससे ज्यादा अच्छा है टैंक को छाया में या फिर कहीं सुरक्षित जगह रखना किफायती विकल्प है। दीप्ति रंजन साहू ने कहा कि अगर टैंक को दूसरी जगह शिफ्ट करना संभव नहीं है, तो इसके ऊपर एक छायादार निर्माण करके इसके प्रभाव को कम कर सकते हैं। इससे न केवल पानी ठंडा रहेगा बल्कि टैंक की उम्र भी बढ़ाएगा क्योंकि फाइबरग्लास और प्लास्टिक जैसी सामग्री लंबे समय तक सूरज के संपर्क में रहने से खराब हो जाती है।
आईआईटी-दिल्ली के मैटेरियल साइंसेज इंजीनियरिंग के प्रोफेसर एलआर सुब्रमण्यम के अनुसार, एक और विकल्प है धान और गेहूं के भूसे जैसे स्थानीय संसाधनों का इस्तेमाल करना। टैंक के चारों ओर मोटे जूट के बोरे रखने से सीधी धूप रुक सकती है। टैंक को रिफ्लेक्टिव पेंट से पेंट करने से भी रेडिएटिव हीट को कम करने में मदद मिलती है। सुब्रमण्यम ने बताया कि मिट्टी के बर्तन जिस सामग्री से बने होते हैं उसमें गैप के कारण पानी को ठंडा रखते हैं। ऐसे बर्तनों में रखा पानी बाहरी सतह पर फैलता है और नमी देता है, जहां से ये वाष्पित हो जाता है, इस प्रक्रिया में वो गर्मी को अवशोषित करता है और अंदर के पानी को ठंडा करता है।
दिल्ली प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के पर्यावरण इंजीनियरिंग के प्रमुख अनिल हरिताश ने सुझाव दिया कि 100 लीटर के इनडोर टैंकों में पानी संग्रहीत करना एक आसान समाधान हो सकता है। उन्होंने कहा कि ओवरहेड टैंकों से पानी को 2-3 घंटे के लिए छोटे, मीडियम टैंकों में डाला जा सकता है जब तक कि यह ठंडा न हो जाए। इन टैंकों को कमरों, रसोई और टॉयलेट के पास रखा जा सकता है। हालांकि, नल में प्रवाह कम गुरुत्वाकर्षण के कारण उतना शक्तिशाली नहीं होगा। विशेषज्ञों ने महसूस किया कि एक अच्छा, व्यावहारिक और पर्यावरण के लिए उपयोगी विकल्प टैंकों के ऊपर सौर पैनल लगाना होगा। जैसा कि हरिताश ने बताया कि सौर पैनलों में निवेश आपके टैंक के लिए छाया प्रदान करने और स्वच्छ ऊर्जा उत्पन्न करने का दोहरा फायदा प्रदान करता है। फैंसी इन्सुलेशन का तरीका पर्यावरण के अनुकूल नहीं हो सकता और कार्बन उत्सर्जन में भी योगदान कर सकता है।