Friday, November 22, 2024
HomeIndian Newsआखिर कैसे पता करें इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन की सच्चाई?

आखिर कैसे पता करें इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन की सच्चाई?

आज हम आपको बताएंगे कि इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन की सच्चाई कैसे पता की जा सकती है! दुनिया की प्रतिष्ठित टेक कंपनी टेस्ला के संस्थापक एलन मस्क ने दावा किया कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) को हैक की जा सकती हैं। इस पर पूर्व केंद्रीय सूचना-प्रौद्योगिकी (आईटी) राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा कि मस्क का दावा अमेरिका सहित दूसरे देशों की ईवीएम के लिए तो सही हो सकता है, लेकिन भारत के लिए नहीं। वहीं, भारतीय चुनाव आयोग ने भी कहा कि ईवीएम इंटरनेट, ब्लूटुथ या किसी और कम्यूनिकेशन सोर्स से जुड़ा हुआ नहीं होता है, इसलिए उसे हैक नहीं किया जा सकता है। चुनाव आयोग ने कई मौकों पर ईवीएम पर उंगली उठाने वाले राजनीतिक दलों को चुनौती भी दी कि वो अपने आरोपों को साबित करें। लेकिन राजनीतिक दलों ने कभी चुनाव आयोग की चुनौती स्वीकार नहीं की। तो सवाल है कि आखिर विकसित देशों की ईवीएम हैक हो सकती हैं तो भारत की क्यों नहीं? दरअसल, भारत में इस्तेमाल होने वाली ईवीएम बनाने वाले इंजीनियर और एक्सपर्ट बताते हैं कि ये मशीनें बहुत ही जटिल होती हैं और इन्हें इस तरह से डिजाइन किया गया है कि इनके साथ कोई छेड़छाड़ न हो सके। हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में 60 करोड़ से ज्यादा लोगों ने एम3 मॉडल की ईवीएम पर वोट डाला था। इस मॉडल में सुरक्षा के लिहाज से कई नए फीचर जोड़े गए हैं, जो इसे और भी ज्यादा सुरक्षित बनाते हैं।

आईआईटी, गांधीनगर के डायरेक्टर और ईवीएम डिजाइन करने वाली टेक्निकल पैनल के सदस्य रजत मुना कहते हैं कि ईवीएम एक साधारण कैलकुलेटर जैसी ही होती है। उनके मुताबिक, ‘किसी भी ईवीएम को हैक नहीं किया जा सकता है और न ही इनके साथ कोई छेड़छाड़ की जा सकती है।’ रजत मुना मानते हैं कि ईवीएम को लेकर बहस ज्यादातर राजनीतिक होती है, तकनीकी रूप से ‘भारतीय ईवीएम को हैक नहीं किया जा सकता है।’

पिछले मॉडल की तुलना में एम3 मॉडल ज्यादा स्मार्ट है और इसमें कई काम अपने आप होते हैं। उदाहरण के लिए, कंप्यूटर जब शुरू होता है, तो खुद-ब-खुद कुछ जांच करता है, ठीक उसी तरह एम3एम ईवीएम में भी शुरुआती जांच अपने आप होती है। एक्सपर्ट बताते हैं कि ‘अगर कोई ईवीएम के साथ छेड़छाड़ करने की कोशिश करता है तो उसके अंदर एक ऐसी तकनीक है जो उसे वापस फैक्ट्री सेटिंग पर ले आती है और मशीन काम करना बंद कर देती है।’ ये मशीनें न तो इंटरनेट से जुड़ी होती हैं और न ही इनमें ब्लूटूथ के जरिए कनेक्ट करने के लिए आरएफ (रेडियो फ्रीक्वेंसी) होती है। यहां तक कि ये मशीनें बिजली के सॉकेट से भी नहीं जुड़ी होती हैं। एम3 मशीनें 2019 में पहली बार इस्तेमाल की गई थीं। आने वाले समय में कई राज्यों के चुनावों में भी इन्हीं मशीनों का इस्तेमाल होगा। इनकी लाइफ 15 साल की होती है, जिसके बाद इन्हें हटाकर नए वर्जन की मशीनें लगाई जाएंगी। एक्सपर्ट पैनल के एक सदस्य ने बताया, ‘हम एम4 मशीनों में नई तकनीक का इस्तेमाल करने के बारे में सोच रहे हैं।’

हाल ही में एलन मस्क ने ईवीएम को लेकर कहा था कि इन्हें हटा देना चाहिए क्योंकि ‘इंसानों या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से हैकिंग का खतरा भले ही कम हो, फिर भी इतना है जिसे ज्यादा ही मना जाएगा।’ एलन मस्क ने यह बात सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखी थी, जिसके जवाब में भारत के पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा था कि यह ‘बहुत बड़ा और गलत सामान्यीकरण’ है। एलन मस्क ने यह बात प्यूर्टो रिको में ईवीएम को लेकर किए गए एक पोस्ट के जवाब में कही थी। बॉम्बे स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी (आईआईटी बॉम्बे) के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग में एमेरिटस प्रोफेसर और माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक और सॉलिड स्टेट इलेक्ट्रॉनिक्स के विशेषज्ञ दिनेश शर्मा कहते हैं, ‘हमें पता था कि सिर्फ यही एक तरीका है जिससे हम पूरी तरह से स्वतंत्र रह सकते हैं।’ हर चुनाव के बाद भारतीय ईवीएम और उन्हें कैसे हैक किया जा सकता है, इसको लेकर तरह-तरह की अफवाहें उड़ाई जाती हैं।

इन अफवाहों को दूर करने और लोगों के मन से शंकाएं मिटाने के लिए दिनेश शर्मा ने दो घंटे का एक वीडियो तैयार किया है, जिसे आम लोग देख सकते हैं। इस वीडियो में उन्होंने बताया है कि दुनिया के बाकी हिस्सों में इस्तेमाल होने वाली वोटिंग मशीनों और भारत में इस्तेमाल होने वाली वोटिंग मशीनों में क्या अंतर है। वह जल्द ही एक और वीडियो जारी करने वाले हैं जिसमें नई मशीनों और उनमें मौजूद सुरक्षा सुविधाओं के बारे में बताया जाएगा ताकि आम लोगों के मन से होता दूर हो सके। जब भी मशीनों को सील किया जाता है या खोला जाता है तो यह चुनाव उम्मीदवारों या उनके प्रतिनिधियों की उपस्थिति में किया जाता है। इसके अलावा, जब ईवीएम को मतदान के दिन से पहले ले जाया जाता है और भंडारण किया जाता है तो भंडारण कक्ष को कड़े मानदंडों को पूरा करना होता है, जैसे कि उसमें सिर्फ एक ही दरवाजा हो। दिनेश शर्मा बताते हैं, ‘उम्मीदवारों या उनके प्रतिनिधियों को मतदान के दिन तक 24 घंटे बाहर डेरा डालने की अनुमति देने का भी प्रावधान है।’

Disclaimer:

Mojo Patrakar may publish content sourced from external third-party providers. While we make every reasonable effort to verify the accuracy, reliability, and completeness of this information, Mojo Patrakar does not guarantee or endorse the views, opinions, conclusions, or authenticity of content provided by these third-party entities. Such content is presented solely for informational purposes, and it is not intended to substitute professional advice or to serve as a comprehensive basis for decision-making.

Mojo Patrakar expressly disclaims any liability for errors, omissions, or inaccuracies that may arise from third-party content, as well as any reliance readers may place upon it. Users are strongly encouraged to conduct independent verification and consult with qualified professionals as necessary before making any decisions based on information obtained through Mojo Patrakar.

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments