Friday, November 22, 2024
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आखिर कैसा रहा टाटा ग्रुप के मालिक रतन टाटा का सुनहरा जीवन?

आज हम आपको बताएंगे कि टाटा ग्रुप के मालिक रतन टाटा का सुनहरा जीवन आखिर कैसा रहा! भारत के मशहूर उद्योगपति रतन टाटा अब हमारे बीच नहीं रहे। बुधवार देर रात उन्होंने मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में अंतिम सांस ली। 86 वर्षीय रतन टाटा ने अपने जीवनकाल में सफलता के शिखर को छुआ। देश का हर बड़ा करोबारी उनके जैसे सफल इंसान बनने की कल्पना करता है। रतन टाटा एक ऐसे व्यक्तित्व थे जिनका कोई दुश्मन शायद ही कभी रहा। यही वजह है कि उनके निधन पर पूरा देश गमगीन है। उद्योग के क्षेत्र में रतन टाटा का नाम बड़े ही सम्मान से लिया जाता है। आज उनके न रहने पर हम उनकी सफलता की कहानी आपके सामने दोहराएंगे। जानते हैं कि आखिर कैसे रतन टाटा ने सफलता का स्वाद कैसे चखा। रतन टाटा ने जन्म के 25 साल बाद टाटा ग्रुप जॉइन किया। यहां से उन्होंने कंपनी के अलग-अलग स्तरों पर काम करके अनुभव प्राप्त किया। बता दें कि टाटा मोटर्स में रतन टाटा के पसंदीदा प्रोजेक्ट्स में इंडिका, “भारत में डिजाइन और निर्मित पहला कार मॉडल” और नैनो, “दुनिया की सबसे सस्ती कार के रूप में प्रचारित” शामिल थे। उन्होंने दोनों मॉडलों के लिए शुरुआती रेखाचित्र तैयार किए। जहां इंडिका एक व्यावसायिक सफलता थी, नैनो को प्रारंभिक सुरक्षा मुद्दों और मार्केटिंग की गलतियों के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ा। उनका करियर उधोग के विभिन्न विभागों में कठिनाइयों से शुरू हुआ, लेकिन उनकी दूरदर्शिता और नेतृत्व ने उन्हें नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। 1991 में, जेआरडी टाटा के बाद उन्होंने ग्रुप की बागडोर संभाली और टाटा समूह को ग्लोबल लेवल पर कॉम्पिटीटर बनाया।

उनके नेतृत्व में, टाटा समूह ने कई बड़े अधिग्रहण किए, जिनमें साल 2000 में टेटली का अधिग्रहण, जिससे टाटा ग्लोबल बेवरेजेज का निर्माण हुआ। 2007 में कोरस ग्रुप का अधिग्रहण, जिससे जिससे टाटा स्टील दुनिया की सबसे बड़ी स्टील उत्पादक कंपनियों में शामिल हुई। वहीं सबसे खास 2008 में जगुआर लैंड रोवर का अधिग्रहण किया, जिससे टाटा मोटर्स को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली।

1996 में, टाटा ने समूह की दूरसंचार शाखा, टाटा टेलीसर्विसेज की स्थापना की, और 2004 में, उन्होंने समूह की आईटी कंपनी, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज का प्रारंभिक सार्वजनिक निर्याचन का नेतृत्व किया। 2012 में अध्यक्ष पद से हटने के बाद, टाटा ने टाटा संस, टाटा इंडस्ट्रीज, टाटा मोटर्स, टाटा स्टील और टाटा केमिकल्स सहित कई टाटा कंपनियों के लिए मानद अध्यक्ष का पद बरकरार रखा। टाटा समूह के विकास और वैश्वीकरण अभियान ने उनके नेतृत्व में गति पकड़ी और नई सहस्राब्दी में उच्च-प्रोफाइल टाटा अधिग्रहणों का एक सिलसिला देखने को मिला। उनमें से टेटली 431.3 मिलियन डॉलर में, कोरस 11.3 बिलियन डॉलर में, जैगुआर लैंड रोवर 2.3 बिलियन डॉलर में, ब्रूनर मोंड, जनरल केमिकल इंडस्ट्रियल प्रोडक्ट्स और दैवू 102 मिलियन डॉलर में थे।

रतन टाटा के नेतृत्व में, समूह ने भारतीय सीमाओं से आगे अपना दायरा बढ़ाया, 2000 में ब्रिटिश चाय फर्म टेटली को 432 मिलियन डॉलर में और 2007 में एंग्लो-डच स्टीलमेकर कोरस को 13 बिलियन डॉलर में अधिग्रहित किया, जो उस समय एक भारतीय कंपनी द्वारा विदेशी फर्म का सबसे बड़ा अधिग्रहण था। टाटा मोटर्स ने 2008 में फोर्ड मोटर कंपनी से ब्रिटिश लक्ज़री ऑटो ब्रांड्स जैगुआर और लैंड रोवर भी 2.3 बिलियन डॉलर में अधिग्रहित कर लिए।

टाटा मोटर्स में रतन टाटा के पसंदीदा प्रोजेक्ट्स में इंडिका, “भारत में डिजाइन और निर्मित पहला कार मॉडल” और नैनो, “दुनिया की सबसे सस्ती कार के रूप में प्रचारित” शामिल थे। उन्होंने दोनों मॉडलों के लिए शुरुआती रेखाचित्र तैयार किए। जहां इंडिका एक व्यावसायिक सफलता थी, नैनो को प्रारंभिक सुरक्षा मुद्दों और मार्केटिंग की गलतियों के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ा। टाटा ने भारत में कमर्शियल एविएशन का बीड़ा उठाया। उन्होंने 1932 में एक एयरलाइन लॉन्च की थी जिसे बाद में एयर इंडिया का नाम दिया गया। सरकार ने बाद में इसे अपने अधीन कर लिया था।

भारत में सड़क पार करते समय शायद ही कोई टाटा ट्रक, बस या एसयूवी ना देखा हो। रतन टाटा ने भारतीय बाजार की नब्ज़ को समझने के लिए लोगों की जरूरतों और दैनिक जीवन को समझा। बता दें कि नैनो को प्रारंभिक सुरक्षा मुद्दों और मार्केटिंग की गलतियों के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ा। उनका करियर उधोग के विभिन्न विभागों में कठिनाइयों से शुरू हुआ, लेकिन उनकी दूरदर्शिता और नेतृत्व ने उन्हें नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। उन्होंने टाटा नैनो जैसी पहल का नेतृत्व किया, जो कि किफ़ायत और सामूहिक गतिशीलता के लिए डिजाइन की गई दुनिया की सबसे सस्ती कार साबित हुई और टाटा इंडिका को न भूलें, जो एक वास्तविक भारतीय कार बनाने का एक अग्रणी प्रयास था।

 

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