आखिर भारत के प्रति क्या विचार रखता है अमेरिका?

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President of the U.S. Joe Biden speaks with Prime Minister of India Narendra Modi at the G20 Summit opening session in Nusa Dua, Bali, Indonesia, Tuesday, Nov. 15, 2022. PRASETYO UTOMO/G20 Media Center/Handout via REUTERS

आज हम आपको बताएंगे कि भारत के प्रति अमेरिका क्या विचार रखता है! यह जैसे एक रवायत हो गई है। अमेरिकी सरकार का एक आयोग हर वर्ष दुनिया के विभिन्न देशों में धार्मिक आजादी पर एक रिपोर्ट जारी करता है और उसमें भारत की स्थिति पर गंभीर चिंता व्यक्त करता है। जवाब में भारत उसकी जमकर लताड़ लगाता है और उसकी खामियां गिनवाता है। अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता संबंधी अमेरिकी आयोग (USCIRF) की इस वर्ष की रिपोर्ट भी आ गई। इसमें भारत को उन 17 देशों की लिस्ट में रखा गया है, जिन्हें धार्मिक आजादी के कथित उल्लंघन की वजह से खास चिंता वाला देश चिह्नित किया गया। स्वाभाविक है कि भारत के संदर्भ में यह रिपोर्ट तैयार करने की प्रक्रिया में हुईं गलतियां गिनाई जाएं। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यही किया। उन्होंने बेलाग-लपेट कहा कि अमेरिकी आयोग राजनीतिक अजेंडे के तहत पक्षपात करने के लिए कुख्यात है। जयसवाल ने कहा कि यह राजनीति अजेंडे वाली एक पक्षपाती संस्था के तौर पर जाना जाता है। इस कारण उन्हें इस मामले में अमेरिकी कमीशन से कोई खास उम्मीदें नहीं हैं कि वह भारत की विविधता और लोकतांत्रिक मूल्यों को समझने की कोशिश करेगा। जयसवाल ने भारत में आम चुनावों के वक्त ऐसी रिपोर्ट जारी करने के पीछे की विशेष मंशा पर भी सवाल उठाया। उन्होंने साफ कहा कि इस रिपोर्ट के जरिए दुनिया की सबसे बड़ी चुनावी प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने की कोशिश कभी सफल नहीं होगी। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने दोटूक कहा कि अमेरिकी आयोग में बैठे लोग इस रिपोर्ट के बहाने भारत के खिलाफ अपना दुष्प्रचार करते रहते हैं। अमेरिकी आयोग की रिपोर्ट में बीजेपी पर ‘भेदभावपूर्ण राष्ट्रवादी नीतियों को आगे बढ़ाने’ का आरोप लगाया गया है। इसने कहा कि बीजेपी पूरी तरह से पक्षपाती है और यह देश की विविधता, बहुलतावादी और लोकतांत्रिक लोकाचार को समझने की उम्मीद भी नहीं करती है। जवाब में विदेश मंत्रालय के प्रवक्त ने ने कहा, ‘हमें वास्तव में कोई उम्मीद नहीं है कि यूएससीआईआरएफ भारत के विविध, बहुलवादी और लोकतांत्रिक चरित्र को समझने की कोशिश भी करेगा।’

अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (यूएससीआईआरएफ) ने बुधवार को जारी अपनी रिपोर्ट में आरोप लगाया था कि पिछले वर्ष भारत सरकार सांप्रदायिक हिंसा से निपटने में विफल रही। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘2023 में भारत में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति और खराब हुई। बीजेपी नेतृत्व वाली सरकार ने भेदभावपूर्ण राष्ट्रवादी नीतियों को मजबूत किया, घृणास्पद बयानबाजी को बढ़ावा दिया और सांप्रदायिक हिंसा को संबोधित करने में विफल रही, जिससे मुस्लिम, ईसाई, सिख, दलित, यहूदी और आदिवासी (स्वदेशी लोग) असमान रूप से प्रभावित हुए। गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए), विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम (एफसीआरए), नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) और धर्मांतरण और गोहत्या विरोधी कानूनों के लगातार लागू होने के कारण धार्मिक अल्पसंख्यकों और उनकी ओर से वकालत करने वालों को मनमाने ढंग से हिरासत में लिया गया, निगरानी की गई और निशाना बनाया गया।’

रिपोर्ट में आगे कहा गया है, ‘धार्मिक अल्पसंख्यकों पर रिपोर्टिंग करने वाले मीडिया संस्थानों और गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) को एफसीआरए नियमों के तहत सख्त निगरानी के अधीन किया गया था। फरवरी 2023 में भारत के गृह मंत्रालय ने एनजीओ सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के एफसीआरए लाइसेंस को निलंबित कर दिया था। इसी तरह, अधिकारियों ने 2002 के गुजरात दंगों के दौरान मुस्लिम विरोधी हिंसा पर रिपोर्टिंग करने के लिए तीस्ता सीतलवाड सहित न्यूजक्लिक के पत्रकारों के कार्यालयों और घरों पर छापे मारे।’

प्रवासी भारतीयों के एक थिंक टैंक फाउंडेशन फॉर इंडिया एंड इंडियन डायस्पोरा स्टडीज (FIIDS) ने इन आरोपों का जवाब दिया। संस्था ने कहा, ‘2023 में भारत में कोई बड़ा हिंदू-मुस्लिम दंगा नहीं हुआ। इसे दंगों से मुक्त वर्ष मानने के बजाय रिपोर्ट में छिटपुट घटनाओं को ऐसे पेश किया गया मानो पूरे देश ऐसी घटनाएं आम हैं। रिपोर्ट तैयार करते वक्त यह भी नहीं सोचा गया कि भारत में इतनी बड़ी मुस्लिम आबादी है।’ एफआईआईडीएस के नीति एवं रणनीति प्रमुख खंडेराव कांड ने कहा कि अमेरिकी आयोग की रिपोर्ट ‘तथ्यों को छिपाने, आंशिक आंकड़ों का उपयोग करने, पूरे संदर्भ को छिपाने, अलग-अलग घटनाओं को सामान्य बनाने तथा देश के कानून के क्रियान्वयन पर सवाल उठाने’ पर आधारित है। उन्होंने कहा, ‘इस रिपोर्ट में आंशिक और पृथक घटनाओं का उपयोग करके 1.4 अरब की आबादी वाले विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र को गलत तरीके से ब्रांड किया गया है। जटिल और हिंसक अतीत की पृष्ठभूमि के विरुद्ध सकारात्मक हालिया रुझानों को इंगित करने का अवसर खो दिया गया है।’ उन्होंने कहा, ‘इसके अलावा, एफएटीएफ के तहत भारत का मूल्यांकन करने की सिफारिश अत्यधिक संदिग्ध है, खासकर तब जब भारत स्वयं आतंकवाद का निशाना रहा है।’

उन्होंने कहा कि यूएससीआईआरएफ की रिपोर्ट में भारत की धार्मिक स्वतंत्रता की संवैधानिक गारंटी का उल्लेख नहीं किया गया है, जिसमें बलपूर्वक, धोखाधड़ी से और जबरन धर्म परिवर्तन पर प्रतिबंध है। उन्होंने कहा, ‘इसके बजाय इसने भोले-भाले, वंचित लोगों को बचाने के लिए कानूनों के प्रवर्तन के बारे में शिकायत की।’ संगठन ने बयान जारी कर कहा, ‘एफआईआईडीएस तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और अमेरिका के एक मजबूत सहयोगी के खिलाफ किसी भी प्रभाव या एजेंडे के बारे में संदेह और सवाल उठाता है। 2021 में अमेरिका-भारत संबंधों की परिणामी प्रकृति को ध्यान में रखते हुए, एफआईआईडीएस अनुशंसा करता है कि अमेरिकी विदेश विभाग को यूएससीआईआरएफ की सिफारिशों का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करना चाहिए और उन्हें खारिज करना चाहिए।’