आज हम आपको ADR के बारे में जानकारी देने वाले हैं जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाए थे! देश में अभी चुनावी माहौल चरम पर है। ऐसा इसलिए क्योंकि 2024 लोकसभा चुनाव में दो फेज की वोटिंग हो चुकी है। अभी पांच चरणों का चुनाव बाकी है। हालांकि, इसी चुनावी घमासान के बीच ईवीएम और वीवीपैट को लेकर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। जिसमें सर्वोच्च अदालत ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) में विश्वास जताया। कोर्ट ने शुक्रवार को VVPAT से हर वोट के वेरिफिकेशन की मांग को लेकर दायर अर्जियों को खारिज कर दिया। इसके साथ ही अदालत ने याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) पर गंभीर सवाल उठाए। कोर्ट ने कहा कि ‘निहित स्वार्थी समूह’ ने ईवीएम को बदनाम करने और चुनावी प्रक्रिया पर नकारात्मक प्रभाव डालने का प्रयास किया है। जस्टिस दीपांकर दत्ता ने ईवीएम-वीवीपैट पर फैसले के दौरान कहा कि हाल के वर्षों में कुछ निहित स्वार्थी समूह की ओर से एक प्रवृत्ति तेजी से विकसित हो रही, जो राष्ट्र की उपलब्धियों को कम करने की कोशिश कर रही। ऐसा लगता है कि हर संभव मोर्चे पर इस महान राष्ट्र की प्रगति को बदनाम करने, कम करने और कमजोर करने का एक ठोस प्रयास किया जा रहा है। इस तरह के किसी भी प्रयास को शुरुआत में ही खत्म कर दिया जाना चाहिए। कोई भी संवैधानिक अदालत तो बिल्कुल भी इस तरह के प्रयास को तब तक सफल नहीं होने देगी, जब तक कि मामले में उसकी बात मानी जाती है। कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद एडीआर चर्चा में आ गया। आइये जानते हैं क्या है एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स।
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) भारत में एक गैर-लाभकारी संगठन है। ये ऐसा समूह है जो चुनाव सुधारों पर ध्यान केंद्रित करता है। भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) अहमदाबाद के प्रोफेसरों के एक ग्रुप ने 1999 में इसकी स्थापना की थी। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स, भारत की राजनीतिक और चुनावी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही की वकालत करने में अहम रोल निभाता रहा है। पिछले दो दशकों के दौरान कोर्ट में एडीआर के हस्तक्षेप से कई महत्वपूर्ण चुनावी सुधार हुए हैं। अकसर कोर्ट और कुछ अवसरों पर चुनाव आयोग ने भी इन सुधारों की वकालत की है, तब भी जब सरकार ने बदलावों का विरोध किया।
साल 2000-2001 में ADR ने दिल्ली हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) दायर की। इसमें चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की ओर से आपराधिक, वित्तीय और शैक्षिक बैकग्राउंड की जानकारी का खुलासा करने की मांग की गई। साल 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने ADR की जनहित याचिका के जवाब में ऐतिहासिक निर्णय दिया। इसमें कोर्ट ने कहा कि चुनाव लड़ने वाले सभी उम्मीदवारों को चुनाव आयोग के साथ एक हलफनामा दायर करके अपनी आपराधिक, वित्तीय और शैक्षिक पृष्ठभूमि का खुलासा करना होगा।
चुनावी प्रक्रिया में खुलासे और पारदर्शिता के दायरे को बढ़ाने के लिए ADR ने विभिन्न कानूनी लड़ाइयों में हिस्सा लेना जारी रखा। कई चुनाव सुधारों में इनका योगदान रहा। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स अलग-अलग चुनावों में उम्मीदवारों की ओर से दायर हलफनामों पर विस्तृत विश्लेषण रिपोर्ट प्रकाशित करता है। इसमें आपराधिक केस, संपत्ति और शैक्षिक योग्यता जैसे पहलुओं का जिक्र रहता है। ADR ने चुनावी उम्मीदवारों के बैकग्राउंड को मतदाताओं तक आसानी से पहुंचाने के लिए MyNeta ऐप विकसित किया।
एडीआर ने चुनावी बॉन्ड में पारदर्शिता की वकालत की। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स, राजनीतिक फंडिंग के लिए चुनावी बॉन्ड योजना का मुखर आलोचक रहा। वो दानदाताओं के संबंध में अधिक पारदर्शिता की वकालत करता रहा है। एडीआर को अलग-अलग राजनीतिक दलों और नेताओं से आलोचना और प्रतिक्रियाओं का भी सामना करना पड़ा है। पारदर्शिता और जवाबदेही की वकालत करने में अहम रोल निभाता रहा है। पिछले दो दशकों के दौरान कोर्ट में एडीआर के हस्तक्षेप से कई महत्वपूर्ण चुनावी सुधार हुए हैं। अकसर कोर्ट और कुछ अवसरों पर चुनाव आयोग ने भी इन सुधारों की वकालत की है, तब भी जब सरकार ने बदलावों का विरोध किया।इसके अलावा एडीआर को कई अलग-अलग तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। हालांकि, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के काम ने भारत में चुनावी परिदृश्य को गहराई से प्रभावित किया है। इससे चुनावी प्रक्रिया अधिक पारदर्शी हो गई है। राजनीति में पैसों और अपराध के प्रभाव को कम करने में मदद मिली है। चुनाव सुधारों को बढ़ावा देने में आगे बढ़कर काम करने के लिए इस संगठन को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मान्यता मिली है।