आज हम आपको भारत के सबसे बड़े हथियार एक्वा बम के बारे में जानकारी देने वाले हैं! बता दे कि बम और गोलाबारी से कोई भी सेना किसी जमीन को इतनी तबाह नहीं कर सकती जितनी पाकिस्तान के खेतों ओर लोगों को हरा-भरा रखने वाले पानी के सोर्स को भारत स्थायी रूप से बंद करके तबाह कर सकता है। अमेरिका की टेनेसी वैली अथॉरिटी के पूर्व प्रमुख रहे डेविड लिलिएनथल ने यह बात 60 के दशक में कही थी। इसके कुछ समय बाद ही भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के तानाशाह फील्ड मार्शल जनरल अयूब खान कराची में 19 सितंबर, 1960 को सिंधु जल समझौते की खातिर एक मेज पर आए थे। माना जाता है कि भारत ने आजादी के वक्त से 13 साल तक पाकिस्तान के साथ कुछ न कुछ विवाद में उलझा रहा था। तब नेहरू ने पानी देने के बदले स्थायी शांति की वकालत की थी। मगर, उनकी यह सोच बाद के बरसों में कितनी बड़ी भूल साबित हुई। कई विशेषज्ञों ने इसे एकतरफा समझौता करने की नेहरू की चूक करार दिया था। हाल ही में भारत ने एक बार फिर इस समझौते की समीक्षा किए जाने की मांग पाकिस्तान से की है। जानते हैं सिंधु जल संधि विवाद की जड़ें कहां हैं और क्या वाकई में नेहरू ने कोई गलती की थी। क्या है इसके पीछे की कहानी, जानते हैं।
चाइनाज वॉर क्लाउड्स’ किताब के लेखक और डिफेंस एनालिस्ट लेफ्टिनेंट कर्नल जेएस सोढ़ी के अनुसार, यह संधि एक तरह से भारत के लिए ‘एक्वा बम’ है जो वास्तव में पाकिस्तान के खिलाफ भारत का सबसे शक्तिशाली हथियार है। भारत सिंधु बेसिन में बहने वाली सात नदियों के प्रवाह को नियंत्रित कर सकता है। मगर, भारत ने बस एक बार इस ताकत को आजमाया था, जिससे पाकिस्तान घुटनों के बल आ गया था। हालांकि, वो कदम बेहद मामूली था। अमेरिका की ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी के ऐरॉन वुल्फ और जोशुआ न्यूटन अपनी एक केस स्टडी में बताते हैं कि भारत-पाकिस्तान के बीच सिंधु जल बंटवारे का विवाद 1947 में बंटवारे के पहले से ही शुरू हो गया था। उस वक्त पंजाब और सिंध प्रांतों के बीच यह झगड़ा काफी चल रहा था।
1947 में भारत और पाकिस्तान के इंजीनियर मिले और उन्होंने पाकिस्तान की तरफ जाने वाली दो प्रमुख नहरों पर एक ‘स्टैंडस्टिल समझौते’ पर हस्ताक्षर किए जिसके अनुसार पाकिस्तान को लगातार पानी मिलता रहा। ये समझौता 31 मार्च 1948 तक ही लागू हो पाया। 1 अप्रैल को इस समझौते के खात्मे के साथ भारत ने दो प्रमुख नहरों का पानी रोक दिया जिससे पाकिस्तानी पंजाब की 17 लाख एकड़ जमीन सूखने लगी। भारतीय पंजाब में इंजीनियरों ने फिरोजपुर हेडवर्क्स से देपालपुर नहर और लाहौर तक पानी की आपूर्ति बंद कर दी। मंडी जलविद्युत योजना से बिजली की आपूर्ति भी काट दी गई। पाकिस्तान के दूसरे सबसे बड़े शहर में पानी बांटा जाने लगा।
दक्षिण एशियाई यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. देवनाथ पाठक के अनुसार, उस वक्त भारत के इस कदम के पीछे कई कारण बताए गए, जिसमें एक यह था कि भारत कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान पर दबाव बनाना चाहता था। हालांकि बाद में हुए समझौते के बाद भारत पानी की आपूर्ति जारी रखने पर राजी हो गया। 1951 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के बुलावे पर टेनेसी वैली अथॉरिटी के पूर्व प्रमुख डेविड लिलिएनथल भारत आए। वो पाकिस्तान भी गए। जब लौटकर वह अमेरिका पहुंचे तो उन्होंने सिंधु नदी के बंटवारे पर एक लेख लिखा।
डेविड का वो लेख उनके दोस्त डेविड ब्लैक ने भी पढ़ा, जो उस वक्त विश्व बैंक के तत्कालीन प्रमुख थे। ब्लैक ने तब सिंधु जल बंटवारे के लिए भारत और पाकिस्तान के प्रमुखों से संपर्क किया। इसी के बाद से दोनों देशों के बीच में इसे लेकर कई दौर की बातचीत शुरू हो गई। आखिरकार 19 सितंबर 1960 को कराची में सिंधु नदी समझौते पर हस्ताक्षर हुए। संधि पर नेहरू और अयूब खान ने दस्तखत किए। 1960 में दोनों देशों के बीच हुए सिंधु जल समझौते में छह नदियों ब्यास, रावी, सतलुज, सिंधु, चिनाब और झेलम के पानी के वितरण और इस्तेमाल करने के अधिकार शामिल हैं। इस संधि के तहत ‘तीन पूर्वी नदियों’ ब्यास, रावी और सतलुज के पानी का इस्तेमाल भारत बिना किसी बाधा के कर सकता है। वहीं तीन ‘पश्चिमी नदियां’ सिंधु, चिनाब और झेलम का पानी का मालिकाना हक पाकिस्तान को दे दिया गया। हालांकि, भारत इन पश्चिमी नदियों के पानी का भी इस्तेमाल अपने घरेलू कामों, सिंचाई और पनबिजली के लिए कर सकता है। संधि पर अमल के लिए सिंधु आयोग बना, जिसमें दोनों देशों के कमिश्नर हैं। वे हर साल मिलते हैं और विवाद निपटाते हैं।
पाकिस्तान के लेखक मोइन अंसारी की किताब ‘इंडियाज एक्वा बम’ के अनुसार, 90 प्रतिशत सिंचित भूमि होने के बाद भी पाकिस्तान को महज 80 प्रतिशत पानी ही क्यों दिया गया। यह बड़ा नुकसान है। वहीं, इस मसले पर ब्रिटेन और अमेरिका ने पाकिस्तान का मूक समर्थन किया था। दरअसल, पाकिस्तान को ब्रिटेन और अमेरिका ने रूस के खिलाफ एक सुरक्षा कवच के रूप में तैयार किया था। ऐसा कोई रास्ता नहीं था जिससे वे इसे विफल होने देते। वहीं पानी पर वैश्विक झगड़ों पर किताब लिख चुके ब्रह्म चेलानी ने एक बार लिखा था, भारत वियना समझौते के लॉ ऑफ ट्रीटीज की धारा 62 के अंतर्गत इस आधार पर संधि से पीछे हट सकता है कि पाकिस्तान आतंकी गुटों का इस्तेमाल उसके खिलाफ कर रहा है। अंततराष्ट्रीय न्यायालय ने कहा है कि अगर मूलभूत स्थितियों में परिवर्तन हो तो किसी संधि को रद्द किया जा सकता है।
सिंधु नदी का इलाका करीब 11.2 लाख किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। ये इलाका पाकिस्तान 47 प्रतिशत, भारत 39 प्रतिशत, चीन 8 प्रतिशत और अफगानिस्तान 6 प्रतिशत में है। एक आंकड़े के मुताबिक करीब 30 करोड़ लोग सिंधु नदी के आसपास के इलाकों में रहते हैं। ऐसे में यह पानी इन देशों के लिए बेहद अहम है।