Monday, December 23, 2024
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आखिर क्या है लेटरल एंट्री? जिस पर हो रहा है विवाद?

आज हम आपको लेटरल एंट्री के बारे में जानकारी देंगे जिस पर वर्तमान में विवाद हो रहा है! 2005 की बात है, जब अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के इंडिया शाइनिंग को पछाड़कर कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार के सत्ता पर काबिज हुए कुछ ही महीने हुए थे। उस वक्त पहली बार लेटरल एंट्री से नौकरशाही में शीर्ष पदों पर निजी क्षेत्रों के लोगों को बिठाने की योजना लाई गई थी। यह स्कीम उस वक्त वरिष्ठ कांग्रेस नेता वीरप्पा मोइली लाए थे। तब इस प्रस्ताव का दूसरे दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने जोरदार समर्थन किया था। दरअसल, लेटरल एंट्री चर्चा में इसलिए है, क्योंकि हाल ही में संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) ने लेटरल एंट्री के माध्यम से 45 संयुक्त सचिवों, निदेशकों और उप सचिवों की भर्ती के लिए एक अधिसूचना जारी की। इसे लेकर नरेंद्र मोदी सरकार विपक्ष के निशाने पर है। विपक्ष का कहना है कि लेटरल एंट्री ने ओबीसी, एससी और एसटी के आरक्षण अधिकारों को कमजोर कर दिया है। देश में पहले प्रशासनिक सुधार आयोग का गठन 1966 में हुआ था। तब मोरारजी देसाई को इसका अध्यक्ष बनाया गया था। मोरारजी देसाई मार्च 1977 और जुलाई 1979 के बीच प्रधानमंत्री रहे थे। तब मोरारजी देसाई ने सिविल सेवाओं के भीतर विशेष कौशल की आवश्यकता पर जोर दिया था। हालांकि, तब लेटरल एंट्री जैसी बात नहीं की गई थी। शुरुआत में मुख्य आर्थिक सलाहकार का पद लेटरल एंट्री भरा जाने लगा।

लेटरल एंट्री योजना औपचारिक रूप से नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में शुरू हुई। 2018 में सरकार ने संयुक्त सचिवों और निदेशकों जैसे वरिष्ठ पदों के लिए विशेषज्ञों के आवेदन मांगे थे। यह पहली बार था कि निजी और सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों के पेशेवरों को इसमें मौका दिया गया। बाद में इसके तहत 37 लोगों की भर्ती की गई थी। 2019 में 7 और 2021 में 30 लोगों की भर्ती की गई थी। लेटरल एंट्री से आने वाले अधिकारियों को 3 साल के एक अनुबंध पर हस्ताक्षर करना पड़ता है, जिसे उनके प्रदर्शन के आधार पर 2 साल और बढ़ाया जा सकता है।

लेटरल एंट्री का मतलब निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों की सीधी भर्ती से है। इसके जरिये केंद्र सरकार के मंत्रालयों में संयुक्त सचिवों, निदेशकों और उप सचिवों के पदों की भर्ती की जाती है। केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, स्वायत्त एजेंसियों, शैक्षणिक निकायों और विश्वविद्यालयों में काम करने वालों को छोड़कर निजी क्षेत्र के व्यवसायों में समकक्ष स्तर पर कार्यरत न्यूनतम 15 वर्ष के अनुभव वाले व्यक्ति अफसरशाही में शामिल हो सकते हैं। ऐसे लोगों की न्यूनतम आयु 45 वर्ष होनी चाहिए और किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय या संस्थान से स्नातक की न्यूनतम योग्यता होनी चाहिए।

दक्षिण एशियाई यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. देवनाथ पाठक के अनुसार, लेटरल एंट्री का छठे वेतन आयोग और दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग (एआरसी), सुरिंदर नाथ समिति (2003) और होता समिति (2004) ने भी समर्थन किया था। दरअसल, इस बारे में चिंता इस बात की है कि ऐसा वर्क कल्चर विकसित करना, जिसमें सरकारी नौकरशाहों का काम करना कठिन हो सकता है। वहीं, सुरक्षित करियर होने के नाते कुछ नौकरशाह लापरवाह हो सकते हैं। ऐसे में बाहर से आई प्रतिभाओं से उनका मुकाबला होगा तो उनकी काम करने की क्षमता में सुधार होगा और सुस्ती दूर होगी। इसके अलावा, प्रशासन में एक्सपर्ट के होने की जरूरत भी बताई जाती है। बाहर से आने वाले लोग संबंधित विषय में जरूरी विशेषज्ञता वाले हो सकते हैं।

ऐसा नहीं है कि लेटरल एंट्री की व्यवस्था सिर्फ भारत में ही है। ब्रिटेन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, नीदरलैंड और बेल्जियम जैसे पश्चिमी देशों में पहले से ही सभी क्षेत्रों के योग्य कर्मियों के लिए विशिष्ट सरकारी पदों को खोल दिया है। यह नौकरी के लिए बेहतरीन प्रतिभाओं को आकर्षित करने का एक बेहतर तरीका पाया गया है। देश में हर साल IAS, IPS की नियुक्ति के लिए संघ लोक सेवा द्वारा सिविल सेवा परीक्षा आयोजित की जाती है। इसके बाद भी देश में करीब 2500 आईएएस और आईपीएस अधिकारियों की कमी है। बीते साल 3 अगस्त को राज्यसभा में बोलते हुए केंद्रीय कार्मिक राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने बताया था कि IAS के 1,365 पद खाली पड़े हैं। वहीं, IPS के कुल 703 पद खाली हैं। जबकि, 1042 पद इंडियन फॉरेस्ट सर्विस (IFS) में हैं। इंडियन रेवेन्यू सर्विस (IRS) में कुल 301 पद खाली हैं। उन्होंने बताया है कि सरकार ने UPSC के तहत होने वाली भर्ती के लिए IAS के पदों पर इनटेक बढ़ा दिया है। IAS के पद अब 180 कर दिए गए हैं। IPS के पद भी साल 2020 से बढ़ाकर 200 कर दिए गए हैं। 2022 में IFS के पदों को बढ़ाकर 150 किया गया था।

ऐसी आशंका जताई जाती रही है कि लेटरल एंट्री केंद्रीय सिविल सेवा प्राधिकरण सेटअप में सेंध है। इससे आशंका यह है कि राजनीतिक रूप से जुड़े व्यक्तियों की भर्ती के लिए ‘लूट-प्रणाली’ यानी पिछले दरवाजे से प्रवेश का बहाना बन सकता है। इस संबंध में प्रशासनिक सुधार समिति ने केंद्रीय सिविल सेवा प्राधिकरण के गठन की जरूरत बताई थी। जो एक स्वायत्त निकाय है और प्रस्तावित भर्ती प्रक्रिया की निगरानी के लिए स्वतंत्र प्राधिकरण के रूप में काम करता है।

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