आज हम आपको नागरिकता की धारा 6A के बारे में जानकारी देने वाले हैं! सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को असम में अवैध अप्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने से संबंधित नागरिकता अधिनियम की धारा 6A की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा। इस फैसले से असम में 1985 के असम समझौते के बाद से अवैध प्रवासियों को नागरिकता देने के मुद्दे पर एक नया मोड़ आ गया है। सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की बेंच ने 4:1 से बहुमत से धारा 6A को संवैधानिक रूप से वैध ठहराया। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली इस बेंच में जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस जेबी पारदीवाला शामिल थे। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई का बयान सामने आया है। उन्होंने कहा, ‘मैं असम समझौते का समर्थन करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करता हूं। असम समझौता ऐतिहासिक समझौता था जिसने वर्षों के राजनीतिक आंदोलन के बाद राज्य में शांति स्थापित की। उस दौरान भारत के प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी राजनीतिक मतभेदों के बावजूद छात्र नेताओं से बातचीत करते थे। आज परिदृश्य अलग है। भाजपा प्रदर्शनकारियों को देशद्रोही और खालिस्तानी कहती है, या मणिपुर की तरह प्रधानमंत्री मोदी ऐसा दिखावा करते हैं जैसे राज्य का अस्तित्व ही नहीं है।
इस मामले में फैसला सुनाते हुए, सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि धारा 6A असम की एक अनोखी समस्या का राजनीतिक समाधान था। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश के निर्माण के बाद राज्य में बड़े पैमाने पर अवैध अप्रवासियों के आने से असम की संस्कृति और जनसांख्यिकी को गंभीर खतरा पैदा हो गया था। असम में छात्र आंदोलन के प्रमुख कारणों में से एक बांग्लादेश से भारी अवैध प्रवासन के कारण राज्य की मूल आबादी के मतदान अधिकारों का कमजोर होना था और धारा 6A ने इस विकट स्थिति को दूर करने का प्रयास किया था। सुप्रीम कोर्ट ने बांग्लादेशी प्रवासियों के प्रवेश के लिए 24 मार्च, 1971 की कट-ऑफ तारीख को भी बरकरार रखा। अदालत ने कहा कि भारत ने पाकिस्तान के ऑपरेशन सर्चलाइट के दौरान बांग्लादेशियों पर किए गए अत्याचारों को देखते हुए सहानुभूतिपूर्ण रुख अपनाया था। अदालत ने कहा कि मार्च 1971 के बाद, सरकार द्वारा प्रवासियों की आमद को अलग तरह से देखा गया।
एक अलग राय में, जस्टिस सूर्यकांत ने खुद के लिए और जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस मनोज मिश्रा के लिए लिखते हुए, CJI चंद्रचूड़ की राय से सहमति जताई। हालांकि, जस्टिस कांत ने धारा 6A की गहन जांच की और कहा कि सरकार कानून व्यवस्था के साथ-साथ नागरिकों के हितों की रक्षा के लिए कदम उठाने में सक्षम थी। नागरिकता अधिनियम में धारा 6ए को 1985 में असम समझौते पर हस्ताक्षर के बाद जोड़ा गया था। यह समझौता केंद्र की राजीव गांधी सरकार और ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) के बीच बांग्लादेश से असम में प्रवासियों के प्रवेश के खिलाफ छह साल तक चले आंदोलन के बाद हुआ था। छात्र नेताओं से बातचीत करते थे।वहीं 24 मार्च 1971 के बाद प्रवेश करने वालों को अवैध प्रवासी माना जाएगा।असम समझौते का एक महत्वपूर्ण पहलू यह तय करना था कि राज्य में विदेशी कौन है। असम समझौते के खंड 5 में कहा गया है कि 1 जनवरी, 1966 को ‘विदेशियों’ का पता लगाने और उन्हें हटाने के लिए आधार कट-ऑफ तिथि के रूप में काम करेगा, लेकिन इसमें उन लोगों को नियमित करने के प्रावधान भी शामिल हैं जो उस तारीख के बाद और 24 मार्च, 1971 तक राज्य में आए थे।
इसे सुविधाजनक बनाने के लिए नागरिकता अधिनियम में धारा 6ए को शामिल किया गया था। ‘भारतीय मूल’ के सभी व्यक्ति जिन्होंने 1 जनवरी 1966 से पहले राज्य में प्रवेश किया था और तब से असम में निवासी हैं, उन्हें भारत का नागरिक माना जाएगा। इसके अलावा यह प्रावधान करता है कि जो कोई भी 1 जनवरी 1966 के बाद लेकिन 24 मार्च 1971 से पहले असम में प्रवेश किया और निवास किया और जिसे विदेशी पाया गया है को केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के अनुसार खुद को रजिस्टर करने का मौका मिलेगा। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई का बयान सामने आया है। उन्होंने कहा, ‘मैं असम समझौते का समर्थन करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करता हूं। असम समझौता ऐतिहासिक समझौता था जिसने वर्षों के राजनीतिक आंदोलन के बाद राज्य में शांति स्थापित की। भारत के प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी राजनीतिक मतभेदों के बावजूद छात्र नेताओं से बातचीत करते थे।वहीं 24 मार्च 1971 के बाद प्रवेश करने वालों को अवैध प्रवासी माना जाएगा।