आज हम आपको इजरायल और फिलिस्तीन के बीच का संघर्ष बताने जा रहे हैं! यूरोप में जब मध्यकाल की शुरुआत हो रही थी, तब धर्मयुद्धों के रूप में मुस्लिमों और ईसाइयों के बीच 8 लड़ाइयां हुईं। इसी दौरान एक वक्त में दो सम्राट हुए, जिनमें से एक अब्बासी खलीफा हारून अल रशीद को इस्लाम का महान शासक कहा जाता है। वहीं, दूसरा रोमन सम्राट शारलेमेन ईसाई दुनिया में बेहद फेमस हुआ। कहा जाता है कि पवित्र स्थल यरूशलम पर कब्जे को लेकर ये जंग शुरू हुई थीं, जो आज भी इजरायल, ईरान और फिलिस्तीन के बीच लड़ाई का बड़ा मसला है। वैसे तो धर्मयुद्ध शब्द इन दिनों महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव, 2024 के प्रचार अभियान के दौरान गूंज रहा है, मगर इसकी कहानी मध्य पूर्व में है। रोमन सम्राटों ने ईसाई धर्म की पवित्र भूमि यरूशलम में ईसा मसीह की समाधि पर अधिकार करने के लिए 8 युद्ध लड़े। जिसे क्रूसेड या धर्मयुद्ध कहा जाता है। इसे सलीबी की जंग भी कहते हैं। उस वक्त यह जंग तुर्क मुस्लिमों के नायक खलीफाओं से अपनी जमीन वापस लेने के लिए लड़ी गई थी। रोमन सम्राटों यानी ईसाइयों की उस पवित्र भूमि पर इस्लामी सेना ने कब्जा कर रखा था, जबकि इसी भूमि पर मूसा ने अपने राज्य की स्थापना की थी। इसी वजह से यहूदी भी इस पर अपना हक जताते हैं।
इन धर्मयुद्धों की कहानी काफी पहले तब शुरू होती है, जब यूरोप में रोमन सम्राट शारलेमेन, जिन्हें चार्ल्स द ग्रेट या कार्ल डेर ग्रोस ( 747-814 ईसवी) के नाम से भी जाना जाता है का राज था। शारलेमेन और बगदाद के अब्बासी खलीफा हारुन अल रशीद (763-809 ईसवी) पारंपरिक तौर पर एक-दूसरे के दुश्मन थे। मगर, गाहे-बेगाहे दोनों ही एक-दूसरे को कीमती और आकर्षक गिफ्ट देकर प्रेमियों की तरह बर्ताव करते थे। इस दुश्मनी को दोस्ती में बदलने के लिए सम्राट शारलेमेन ने पहल की और वह खलीफा के पास दोस्ती का पैगाम लेकर दूत भेजने वाले पहले व्यक्ति थे। शारलेमेन ने खलीफा को मखमली लाल कपड़े और विलासिता की वस्तुएं भेजीं। बदले में खलीफा अल रशीद ने रेशमी कपड़े, सुगंधित इत्र, सुगंधित मसाले और एक विदेशी हाथी भेजा। इस पशु को तब तक शायद पूरे यूरोप में नहीं देखा गया था। इसे देखने के लिए महीनों तक लोग आते रहे और महल के आगे डेरा डाले रहते!
इस हाथी को पहले अब्बासी खलीफा की तरह अबू अल अब्बास के नाम से जाना जाता था। शारलेमेन को इस हाथी से इतना लगाव हो गया कि कथित तौर पर वह अपने कई अभियानों में इसे अपने साथ ले गया। सम्राट का दिल तब टूट गया, जब जून, 810 में उसके प्रिय अबू अल अब्बास की मृत्यु उसी महीने हुई जिस महीने उसकी सबसे बड़ी बेटी रोट्रूड की मौत हुई थी। जिस उपहार ने शारलेमेन के दरबार में और आने वाली सदियों तक यूरोप में सबसे ज्यादा हैरानी पैदा की, वह थी एक परिष्कृत जल घड़ी। जर्मनी में कोयला घड़ी के आविष्कार से लगभग एक हजार पहले यह जल चालित घड़ी समकालीन इंजीनियरिंग की एक उत्कृष्ट कृति थी। जिसने भी इसे देखा, वो हैरान रह गया। इस घड़ी में 12 घुड़सवार भी थे जो प्रत्येक घंटे के अंत में 12 खिड़कियों से बाहर निकलते थे और अपनी हरकतों से पहले से खुली खिड़कियों को बंद कर देते थे।
अल रशीद के समय अब्बासी साम्राज्य लगभग 50 लाख वर्ग मील था, जबकि कैरोलिंगियन साम्राज्य पर राज करने वाले शारलेमेन का शासन खलीफा के महज दसवें हिस्से तक ही सीमित था। इन दोनों के राज में तकनीक तेजी से बदल रही थी। ऐसे में संबंध भी तेजी से बदल रहे थे।
अब्बासी उस समय का सबसे धनी और सबसे शक्तिशाली साम्राज्य था जो मध्ययुगीन दुनिया का एक वैज्ञानिक और सांस्कृतिक केंद्र था। जो वास्तव में बैजंटाइन और फारसियों दोनों का उत्तराधिकारी था। यह नव स्थापित शाही राजधानी बगदाद की भव्यता में दिखाई देता था, जो प्राचीन बेबीलोन के स्थल के करीब था। अब्बासी खलीफा अल रशीद ने अपने दरबार को अस्थायी रूप से सीरिया के रक्का में ट्रांसफर कर दिया था। बगदाद खिलाफत की सांस्कृतिक, बौद्धिक और आर्थिक राजधानी बना रहा, जो उनकी मृत्यु के बाद एक बार फिर राजधानी बन गया। बगदाद 10 से लेकर 20 लाख की अनुमानित आबादी के साथ उस वक्त दुनिया का सबसे बड़ा महानगर हुआ करता था। बगदाद की प्रसिद्ध ग्रैंड लाइब्रेरी बैत अल-हिक्मा यानी बुद्धि का घर दुनिया भर के दार्शनिकों, वैज्ञानिकों और कवियों का जमावड़ा हुआ करता था।
उस वक्त शारलेमेन की राजधानी आचेन बेल्जियम और नीदरलैंड की सीमा के पास आज के जर्मनी में हुआ करती थी। आचेन एक बहुत ही मामूली शहर था, जिसे यूरोप के सबसे बड़े शहरों में भी नहीं गिना जाता था। शारलेमेन ने इसे रणनीतिक, राजनीतिक और सैन्य कारणों से चुना था। इन 8 धर्मयुद्धों का नतीजा यह निकला कि सीरिया से ईसाइयों को निकाल दिया गया। वहां भी मुस्लिमों का राज हो गया। तुर्की जैसे देश बन गए। अरबों की हुकूमत पूरी दुनिया में फैल गई। भारत में भी उस वक्त मुस्लिम शासन शुरू हो गया।