आज हम आपको एस्ट्राजेनेका कंपनी का सच बताने जा रहे हैं! एस्ट्राजेनेका की कोरोना वैक्सीन इन दिनों एक बार फिर बार चर्चा में है। एक सवाल तेजी से पूछा जाने लगा है कि क्या एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन लेने वाले सुरक्षित हैं? कंपनी ने वैश्विक स्तर पर वैक्सीन को वापस लेने का बड़ा फैसला किया है, जिसके बाद दुनिया भर में इसे लेकर टेंशन है। कंपनी ने बताया है कि उसने यूरोपीय यूनियन से अपनी वैक्सीन वैक्सजेवरिया को वापस लेना शुरू कर दिया है। ये कदम कंपनी की उस स्वीकारोक्ति के बाद उठाया गया है, जिसमें उसने कहा था कि उसकी कोरोना वैक्सीन एक दुर्लभ बीमारी की वजह बन सकती है। इसके बाद ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर बनाई गई इस वैक्सीन को लेकर तमाम सवाल उठ रहे हैं। आइए जानते हैं कि इस मामले में अब तक क्या हुआ है। रिपोर्ट में बताया कि एस्ट्राजेनेका ने अपनी कोरोना वैक्सीन को वापस लेने के लिए 5 मार्च को आवेदन किया था, जो 7 मई से प्रभावी हो गया है। कंपनी ने कहा है कि वह व्यावसायिक कारणों से टीके को हटा रही है, क्योंकि वर्तमान में कोरोना वायरस के कई अपडेटेड टीके उपलब्ध हैं। कंपनी ने ये भी कहा है कि अब वैक्सीन का निर्माण या आपूर्ति नहीं की जा रही है। इसकी जगह नए अपडेटेड टीकों ने ले ली है।
एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन को 18 साल से अधिक उम्र के लोगों को दिए जाने की मंजूरी मिली है। इसे दो डोज के जोड़े में लगाया जाना है और दोनों के बीच 3 महीने का अंतर रखना है। रिपोर्ट के अनुसार, वैक्सीन को कम से कम 70 देशों में वितरित किया गया है। एस्ट्राजेनेका ने बयान में कहा है कि, स्वतंत्र अनुमान के अनुसार पहले साल वैक्सीन के इस्तेमाल से अकेले 65 लाख लोगों की जान बचाई गई, जबकि दुनिया भर में वैक्सीन की 3 अरब से ज्यादा डोज की आपूर्ति की गई। ब्रिटेन में भी इस वैक्सीन का इस्तेमाल किया गया था। हालांकि, सितम्बर 2021 के बाद बड़ी मात्रा में इसके टीकों को दिया जाना रोक दिया गया था। तब तक ब्रिटेन में 5 करोड़ टीके दिए गए थे। साल 2021 के आखिर में ब्रिटिश सरकार ने फाइजर और मॉडर्ना की डोज देनी शुरू की।
वैक्सीन को लेकर पहली बार सवाल 2021 में ही उठे थे, जब इसे लेने वाले कुछ लोगों ने रक्त के थक्के जमने की शिकायत की। विकसित देशों ने वैक्सीन का इस्तेमाल सीमित हो गया। ऐसा माना गया कि फाइजर और मॉडर्ना के एमआरएनए तकनीक से बने टीके एस्ट्राजेनेका की तुलना में अधिक प्रभावी थे। मार्च 2021 में कनाडा ने एक मेडिकल सलाहकार पैनल की अनुशंसा के बाद 55 साल से अधिक उम्र के लोगों के लिए वैक्सीन पर रोक लगा दी। इसी साल अप्रैल में डेनमार्क पहला यूरोपीय देश बना जिसने वैक्सीन पर रोक लगा दी। नॉर्वे भी आगे इसी नक्शेकदम पर चला।
भारत में एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन कोविशील्ड के नाम से लगाई गई थी। भारत में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के पास इसके निर्माण का अधिकार है। महामारी के दौरान कोविशील्ड की 175 करोड़ डोज लोगों को दी गई। दिसम्बर 2021 में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने वैक्सीन का उत्पादन बंद कर दिया था। पिछले साल देश में कोरोना केस बढ़ने पर कंपनी ने वैक्सीन का फिर से उत्पादन शुरू किया। एस्ट्राजेनेका ने इसी साल फरवरी में ब्रिटेन की कोर्ट में स्वीकार किया था कि उसकी वैक्सीन से दुर्लभ साइड इफेक्ट हो सकते हैं, जिसमें खून में थक्का जमना और प्लेटलेट्स का कम होना शामिल है। इस साइड इफेक्ट की पहचान थ्रोम्बोसीटोपेनिया सिंड्रोम के रूप में की गई जिससे थ्रोम्बोसिस नामक बीमारी का खतरा होता है। ब्रिटेन में वैक्सीन लगने के बाद कथित तौर पर टीटीएस से 81 लोगों की मौत और सैकड़ों लोगों को गंभीर चोट लगी है। 51 मामले में पीड़ितों और उनके परिजनों ने 100 मिलियन पाउंड 1000 करोड़ रुपये के मुआवजे के लिए कोर्ट में केस दायर किया है।
बहुत कम मात्रा में लोग कोविशील्ड के चलते खतरे का सामना कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि वैक्सीन लेने वाले 10 लाख लोगों में केवल 7 से 8 लोग ऐसे होंगे जो असुरक्षित हो सकते हैं।इसके बाद ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर बनाई गई इस वैक्सीन को लेकर तमाम सवाल उठ रहे हैं। आइए जानते हैं कि इस मामले में अब तक क्या हुआ है। रिपोर्ट में बताया कि एस्ट्राजेनेका ने अपनी कोरोना वैक्सीन को वापस लेने के लिए 5 मार्च को आवेदन किया था, जो 7 मई से प्रभावी हो गया है। गंगाखेड़का ने कहा, ‘पहली डोज लेने के बाद खतरा सबसे ज्यादा होता है। दूसरी डोज के बाद यह कम होता है और तीसरी पर यह सबसे निचले स्तर पर पहुंच जाता है।’