आज हम आपको विदेश मंत्री की वह रणनीति बताने जा रहे हैं जो उन्होंने पाकिस्तान जाकर अपनाई थी! इस्लामाबाद में हो रही एससीओ समिट के दूसरे दिन भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर की पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से बातचीत हुई। समिट खत्म होने के बाद इस्लामाबाद के जिन्ना कन्वेंशन सेंटर के लाउंज में बुधवार को पाक पीएम शहबाज शरीफ, पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार, एस जयशंकर और दूसरे नेता एक-दूसरे के साथ अनौपचारिक रूप से बातचीत करते दिखे। इस दौरान शरीफ और जयशंकर में भी गुफ्तगू हुई। इसके बाद जयशंकर भारत के लिए रवाना हो गए। वापसी से पहले जयशंकर ने पाकिस्तान सरकार को मेहमाननवाजी के लिए शुक्रिया कहा। जिन्ना कन्वेंशन सेंटर में एससीओ समिट के बाद विदेश मंत्री जयशंकर ने बुधवार को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शरीफ के अलावा एससीओ के दूसरे नेताओं के साथ भी नेता भी अनौपचारिक बातचीत की। इससे पहले मंगलवार शाम को जयशंकर जब शहबाज शरीफ के रात्रिभोज के न्योते पर पहुंते थे, तो दोनों नेताओं ने हाथ मिलाया था और मुस्कुरा कर एक-दूसरे का अभिवादन किया था।
भारत के विदेश मंत्री जयशंकर ने करीब 24 घंटे पाकिस्तान में गुजारे। मंगलवार शाम को वह इस्लामाबाद पहुंचे थे और बुधवार शाम को उन्होंने वापसी की उड़ान भरी। जयशंकर बीते 9 साल से भी ज्यादा समय में पाकिस्तान का दौरा करने वाले पहले भारतीय विदेश मंत्री बने हैं। उनसे पहले सुषमा स्वराज ने विदेश मंत्री के तौर पर पाकिस्तान की यात्रा की थी। एस जयशंकर ने पाकिस्तान में शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन की बैठक में अपने भाषण में चीन-पाकिस्तान को भी सुनाया। उन्होंने कहा कि सभी देशों को एक दूसरे की सीमाओं का सम्मान करने की जरूरत है। अगर एससीओ के मेंबर देशों के बीच दोस्ती में कमी आई है तो इस पर विचार किया जाना चाहिए। हमारे बीच भरोसे में कमी है तो हमें अपने अंदर झांकना होगा।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पाकिस्तान और चीन को अपने संबोधन में हिदायत भी दी। चीन की ओर इशारा कर उन्होंने बॉर्डर का सम्मान करने की बात कही तो पाकिस्तान की ओर इशारा कर आतंक पर लगाम कसने पर जोर दिया। हालांकि उन्होंने किसी देश का नाम नहीं लिया। इससे पहले जयशंकर ने इस्लामाबाद स्थित भारतीय दूतावास में पौधा भी लगाया। भारत के विदेश मंत्री मंगलवार को एससीओ समिट में शामिल होने के लिए इस्लामाबाद पहुंचे थे। बैठक में हिस्सा लेने और पाकिस्तान में करीब 24 घंटे गुजारने के बाद वह बुधवार को वापस लौट आए। इस दौरान जयशंकर की पाक नेताओं से द्विपक्षीय वार्ता नहीं हुई लेकिन पाकिस्तान के पीएम शहबाज शरीफ और दूसरे नेताओं से उनकी अनौपचारिक बातचीत जरूर हुई। जयशंकर ने इस्लामाबाद से दिल्ली लौटते हुए मेहमाननवाजी के लिए शहबाज शरीफ और पाक सरकार का शुक्रिया भी अदा किया। ऐसे में ये सवाल पूछा जा रहा है कि क्या दोनों देशों में जमी बर्फ पिघली है।
एससीओ की बैठक और जयशंकर का दौरा ऐसे समय हुआ है, जब पाकिस्तान की राजनीति उठापटक के दौर में है। जेल में बंद पूर्व पीएम इमरान खान की पार्टी के कार्यकर्ता लगातार सरकार के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं। इसके लिए कई पाकिस्तानी राजनेताओं ने भारत पर भी दोष मढ़ा है। एससीओ बैठक से पहले इस बयानबाजी ने भारत और पाकिस्तान के बीच संभावित द्विपक्षीय जुड़ाव की उम्मीद को कमजोर ही किया।एससीओ का हाल के वर्षों में विस्तार हुआ है। इसमें भारत, ईरान, कजाकिस्तान, चीन, किर्गिस्तान, रूस, पाकिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान पूर्ण सदस्य हैं। तीन देश- अफगानिस्तान, बेलारूस और मंगोलिया को एससीओ के पर्यवेक्षक और चौदह देश- अजरबैजान, आर्मेनिया, बहरीन, कंबोडिया, मिस्र, कुवैत, मालदीव, म्यांमार, नेपाल, कतर, सऊदी अरब, श्रीलंका, तुर्की और यूएई संवाद भागीदार हैं।
एससीओ के सदस्य वैश्विक आबादी के 40 फीसदी और दुनिया के सकल घरेलू उत्पाद के 32 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसके बावजूद इसके दो प्रभावशाली सदस्यों (भारत-पाकिस्तान) की तनातनी इसकी प्रभावशीलता को कमजोर करती है। जयशंकर की यात्रा से एक्सपर्ट उम्मीद कर रहे हैं कि ये दौरा सहयोग को तो बढ़ावा नहीं देगा लेकिन मतभेदों को पीछे रखने में मददगार हो सकता है। एक्सपर्ट का कहना है कि जयशंकर की हाई प्रोफाइल यात्रा के बावजूद ये साफ है कि भारत-पाकिस्तान संबंधों में प्रगति की उम्मीदें कम हैं। इसके बावजद कूटनीति एक लंबा खेल है और पर्दे के पीछे भी बहुत कुछ होता है। ऐसे में एक्सपर्ट मान रहे हैं कि हो सकता है, इस यात्रा का कुछ सकारात्मक असर आने वाले समय में दिखे।