आज हम आपको कारगिल की एक डरा देने वाली कहानी बताने जा रहे हैं! 25 साल पहले कारगिल की जंग की कहानियां आज भी रोंगटे खड़े कर देती हैं। इस युद्ध में सेना के बहादुर जवानों की कहानियां आज भी सुनाई जाती हैं। ऐसी ही एक कहानी है 8 सिख रेजिमेंट के सिपाही सतपाल सिंह की। दुश्मन की AK- 47 से चार गोलियां लगने के बावजूद, सतपाल सिंह ने बहादुरी से लड़ाई लड़ी। कारगिल युद्ध के दौरान कई मिनट तक चली एक भयंकर आमने-सामने की लड़ाई के बाद पाकिस्तानी सेना के कैप्टन शेर खान और तीन अन्य को सतपाल सिंह ने मार डाला। कैप्टन शेर खान को मरणोपरांत पाकिस्तान के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार निशान-ए-हैदर से सम्मानित किया गया, जो भारत के परमवीर चक्र के बराबर है। जानकर हैरानी होगी कि यह पुरस्कार भी शेर खान को सतपाल के सीनियर अधिकारी की सिफारिश पर मिला जिन्होंने खान की बहादुरी की पुष्टि की थी। कारगिल क्षेत्र की सबसे ऊंची चोटियों में से एक टाइगर हिल पर पाकिस्तानी सेना की नॉर्दर्न लाइट इन्फैंट्री का कब्जा था और इसे वापस जीतने का मिशन 8 सिख रेजिमेंट को सौंपा गया था। सिपाही सतपाल, जो अब 51 साल के हैं, याद करते हैं कि कैसे नॉर्दर्न लाइट इन्फैंट्री के शेर खान और दूसरे पाकिस्तानी सैनिक लड़ाई के दौरान गालियां देते रहे। सतपाल कहते हैं कि सिख सैनिकों में वीरता कूट-कूट कर भरी होती है और वे डरने वाले नहीं थे। हमारी 8 सिख रेजिमेंट को टाइगर हिल पर फिर से कब्जा करने का काम दिया गया था। एक टीम बनाई गई जिसमें 52 सैनिक शामिल थे, जिनमें दो अधिकारी, चार जेसीओ (जूनियर कमीशन अधिकारी) और 46 अन्य रैंक के सैनिक शामिल थे।
सतपाल कहते हैं कि 4 जुलाई 1999 की रात को हमारी घातक पलटन ने पाठ किया,अरदास की और फिर टाइगर हिल के उस पॉइंट की ओर बढ़ गए, जिस पर पाकिस्तानी सेना ने कब्जा कर रखा था। 5 जुलाई की सुबह,’बोले सो निहाल सत श्री अकाल’ के नारों के बीच, हमने टाइगर हिल के करीब इंडिया गेट पर कब्जा कर लिया। हमारे कुछ दुश्मन मारे गए जबकि अन्य भागने में सफल रहे। सतपाल याद करते हैं कि अगली सुबह 6 जुलाई हमें पाकिस्तानी सेना की ओर से जवाबी हमले का सामना करना पड़ा। संख्या में कम होने के बावजूद, सिख सैनिकों ने बहादुरी से लड़ाई लड़ी और पाकिस्तानियों को पीछे कर दिया। लेकिन यह उस लड़ाई का अंत नहीं था। सतपाल कहते हैं पाकिस्तानी कैप्टन शेर खान ने फिर जवाबी हमले के लिए तीसरी बार अपनी सेना एकत्र की। यह जानते हुए भी किया कि वह सिख सैनिकों को हरा नहीं पाएंगे।
उस दिन को याद करते हुए सतपाल कहते हैं कि शेर खान को ट्रैक सूट पहने देखा। उस समय हमें नहीं पता था कि वह कौन है। पांच मिनट से अधिक समय तक हमारे बीच गोलीबारी हुई और हम एक-दूसरे को गालियां देते रहे। मैंने उस पर गोलियां चलाईं जिससे वह घायल हो गया और फिर उस पर झपट पड़ा। लेकिन कुछ ही सेकंड में मुझे एके 47 से चार गोलियां लगीं, जो मेरे दाहिने पैर, पेट, बाएं हाथ और बाएं कंधे में लगीं। मैंने किसी तरह खुद को संभाला और शेर खान को कवर कर रहे तीन गार्डों पर गोलियां चला दीं। आमने-सामने की लड़ाई के बाद मैं शेर खान को गोली मारने में कामयाब रहा। हम दोनों ने बहादुरी से मुकाबला किया।
लगभग 50 मिनट तक चले इस लड़ाई में हमारी टीम के 18 जवान शहीद हो गए, जिनमें तीन जेसीओ और 15 अन्य रैंक के जवान शामिल थे जबकि दुश्मन पक्ष के 85 से अधिक जवान मारे गए। 7 जुलाई की सुबह, मुख्यालय से हमारी टीम हमें अस्पताल ले जाने के लिए पहुंची। सतपाल ने भले ही शेर खान से लड़ाई की हो, लेकिन वह उसकी बहादुरी को स्वीकार करते हैं। सतपाल कहते हैं कि शेर खान बहादुर और मजबूत था। हमारे कमांडर ने मृत पाकिस्तानी कप्तान की जेब में एक पर्ची भी डाल दी, जिसमें उल्लेख था कि उसने बहादुरी से लड़ाई लड़ी। बट ने कहा संख्या में कम होने के बावजूद, सिख सैनिकों ने बहादुरी से लड़ाई लड़ी और पाकिस्तानियों को पीछे कर दिया। लेकिन यह उस लड़ाई का अंत नहीं था। सतपाल कहते हैं पाकिस्तानी कैप्टन शेर खान ने फिर जवाबी हमले के लिए तीसरी बार अपनी सेना एकत्र की। सतपाल कहते हैं कि उन्हें अपने पिता स्वर्गीय अजायब सिंह से युद्ध की भावना विरासत में मिली है, जिन्होंने पंजाब के फिरोजपुर सीमा पर भारत और पाकिस्तान के बीच 1971 के युद्ध में लड़ाई लड़ी थी।