यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर पीएम मोदी में इतना कॉन्फिडेंस कहां से आता है! लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर भारतीय जनता पार्टी के सबसे बड़े थिंक टैंक नरेंद्र मोदी और अमित शाह कॉन्फिडेंस में हैं। वह लगातार दावा कर रहे हैं कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन इस बार 400 के जादुई आंकड़े काे पार कर जाएगा। वैसे तो नेता चुनाव में दावे तमाम करते ही रहते हैं। लेकिन देश की राजनीति में ये पहला मौका रहा जब प्रधानमंत्री ने संसद में ही ये दावा कर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में साफ कहा था कि हमारी सरकार का तीसरा कार्यकाल भी बहुत दूर नहीं है। मैं आमतौर पर आंकड़ों के चक्कर में नहीं पड़ता। लेकिन मैं देख रहा हूं कि देश का मिजाज एनडीए को 400 पार कराकर रहेगा और बीजेपी को 370 सीटें अवश्य देगा। इसी तरह से तमाम मीडिया इंटरव्यू में अमित शाह भी एनडीए के 400 पार की बात कह चुके हैं। यही नहीं चौथे चरण के मतदान के दिन ही प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी ने एक इंटरव्यू में साफ कहा कि अबकी बार, 400 पार का नारा तीन चरणों के मतदान के बाद अब हकीकत दिखने लगा है। बता दें लोकसभा चुनाव में अब तक चार चरण का मतदान हो चुका है, जिसमें 379 सीटों पर प्रत्याशियों की किस्मत ईवीएम में बंद हो चुकी है। अब सवाल ये है कि भाजपा को ये काॅन्फिडेंस कहां से मिल रहा है? इसका जवाब हमें तलाशने के लिए भारतीय जनता पार्टी के संगठन पर गौर करना होगा। दरअसल करीब 10 साल पहले यूपी प्रभारी बनाए गए अमित शाह ने भारतीय जनता पार्टी के संगठन में बड़े सुधार किए। उन्होंने एक-एक वोटर तक पहुंचने के लिए पन्ना प्रमुख का कांसेप्ट लागू किया। आज पूरे देश में पन्ना प्रमुख ही भारतीय जनता पार्टी की रीढ़ माने जाते हैं। इसकी अहमियत इतनी है कि गुजरात चुनाव के दौरान खुद अमित शाह ने पन्ना प्रमुख की जिम्मेदारी संभाली। इस रणनीति ने कैसे भाजपा के लिए गेमचेंजर की भूमिका निभाई, आइए विस्तार से समझते हैं।
पन्ना प्रमुख का सीधा सा मतलब वोटर लिस्ट के एक पेज का इंचार्ज। मोटे तौर पर वोटरलिस्ट के एक पेज में 30 वोटर्स के नाम होते हैं। पन्ना प्रमुख यानी इस पेज के इंचार्ज की इन 30 वोटरों के संपर्क में रहने की जिम्मेदारी होती है। इनकी जिम्मेदारी मतदान के दिन इन सभी 30 वोटर को पोलिंग बूथ तक ले जाने की जिम्मेदारी होती है। वोटिंग से पहले ये सभी को मतदान की याद दिलाते हैं। उन्हें लगातार वोट डालने के लिए प्रेरित करते हैं। खासतौर पर पार्टी की विचारधारा से जुड़े वोटरों पर इनकी खास नजर रहती है। अब मान लीजिए 30 वोटर यानी 7 परिवार में से कुछ भाजपा समर्थक हैं और कुछ दूसरी पार्टी के समर्थक हैं। ऐसे में वोटिंग के दिन पन्ना प्रमुख वोट पड़ने का आंकड़ा पार्टी को देता है तो पार्टी को अंदाजा हो जाता है कि उसे कितने संभावित वोट मिल रहे हैं और दूसरे दल को कितने? इसी तरह से एक-एक वोटर का डेटा पार्टी तक सीधे पहुंच जाता है।
भाजपा से जुड़े एक नेता के अनुसार चुनाव आयोग को फाइनल वोटिंग का डेटा जारी करने में समय लगता है लेकिन पन्ना प्रमुखों की ताकत के बल पर पार्टी को आयोग से पहले ही आंकड़ा मिल जाता है। इस तेज सिस्टम का लाभ ये होता है कि चुनाव के बीच में भी हवा का रुख समझने में आसानी होती है और पार्टी अपनी रणनीति उसके हिसाब से दुरुस्त करती रहती है। भाजपा ने अपने प्रदर्शन के आधार पर हर पोलिंग को ए, बी, सी, डी श्रेणी में बांट रखा है। इसमें ऐसे बूथ जहां से भाजपा हमेशा जीत दर्ज करती है, वह ए श्रेणी में आते हैं। वहीं बेहतर प्रदर्शन करने वाले बूथ को बी श्रेणी में रखा जाता है। इसी तरह कभी हार और कभी जीत दर्ज करने वाले बूथ को सी श्रेणी और सबसे कमजोर बूथ जहां से भाजपा को ज्यादा वोट नहीं मिल पाते उन्हें डी श्रेणी में रखा जाता है। भाजपा का सबसे ज्यादा जोर सी और डी श्रेणी के बूथों पर रहता है। यहां बूथ कमेटी और पन्ना प्रमुख चुनाव सबसे ज्यादा फोकस नए वोटरों पर करते हैं। घर-घर संपर्क अभियान के माध्यम से लोगों से बात कर पार्टी के विषय में फीडबैक लेते हैं। जो भाजपा समर्थक वोटर होते हैं, उनके यहां स्टीकर आदि लगाने का काम करते हैं ताकि आसपास के वोटरों पर इसका प्रभाव पड़े।
भाजपा के निर्देश रहते हैं कि बूथ कमेटी के सदस्य और पन्ना प्रमुख मतदान के दिन सबसे पहले अपने परिवार के साथ वोट डाल लें। इसके बाद वह अपनी जिम्मेदारी में जुट जाते हैं। सभी मतदाताओं से संपर्क, उन्हें बूथ तक पहुंचाने का काम मतदान खत्म होने तक चलता रहता है। वोटिंग खत्म होने के बाद हर पन्ना प्रमुख अपने अपने पेज की डिटेल जानकारी कितने वोट पड़े, कौन नहीं दिया, किस पार्टी का कौन सा वोट जा सकता है आदि सीधे पार्टी को भेज देते हैं। गौर करने वाली बात ये है कि ये पन्ना प्रमुख सिर्फ मतदान के दिन ही नहीं, पांच साल लगातार पार्टी को मतदाता का फीडबैक देते हैं। चाहे इसमें प्रत्याशी चयन की बात हो, केंद्र या राज्य सरकार के किसी फैसले का जनता पर क्या असर पर पड़ रहा है इसका फीडबैक हो या विपक्षी दलों की मजबूती आदि सभी की जानकारी समय-समय पर पार्टी संगठन को मिलती रहती है। इसका फायदा ये होता है कि नेतृत्व को तेजी से फैसले लेने में आसानी हो जाती है।