आज हम आपको बताएंगे कि वह कौन से मुस्लिम देश है जो इजरायल के साथ खड़े हुए हैं! चार साल पहले 15 सितम्बर 2020 को जब बहरीन और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के विदेश मंत्री इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ अब्राहम समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए खड़े थे, तो इसे मध्य पूर्व में एक नए युग की शुरुआत के तौर पर देखा गया था। ट्रंप ने कहा था, ‘हम आज दोपहर यहां इतिहास की दिशा बदलने के लिए यहां आए हैं। दशकों के विभाजन और संघर्ष के बाद हम एक नए मध्य पूर्व की सुबह का प्रतीक हैं।’ इजरायली प्रधानमंत्री ने इस समझौते से अरब-इजरायल के संघर्ष के खात्मे की उम्मीद जताई तो ऐसा ही प्रतिध्वनि बहरीन और यूएई के बयानों में सुनाई दी। आगे चलकर इस समझौते में एक और मुस्लिम देश मोरक्को भी शामिल हुआ। आज जब इस समझौते के चार साल पूरे हो चुके हैं, इजरायल गाजा में हमास के साथ युद्ध लड़ रहा है। ईरान और उसके प्रॉक्सी लगातार इजरायल के खिलाफ हमलावर हैं। लेकिन इसके साथ ही मध्य पूर्व में एक नया समीकरण भी नजर आ रहा है। गाजा में 11 महीने से जारी युद्ध ने अरब देशों के साथ इजरायल के साथ समझौते पर काफी दबाव डाला है,इसमें कोई संदेह नहीं है कि रणनीतिक फैसलों की राह में बहुत सारी बाधाएं आती हैं और हम एक बड़ी बाधा (गाजा युद्ध) का सामना कर रहे हैं और हम जरूर इससे निपटेंगे।’ इसके बावजूद ये रिश्ते अभी तक बने हुए हैं। मध्य पूर्व के जानकार लोग इस बात को स्वीकार करते हैं कि हमास के खिलाफ युद्ध ने इजरायल के साथ संबंधों को लेकर यूएई, बहरीन और मोरक्को पर तनाव डाला है, लेकिन साथ ही एक उम्मीद भी नजर आती है। टाइम्स ऑफ इजरायल ने एक अधिकारी के हवाले से बताया कि स्वाभाविक रूप से यु्द्ध के दौरान संबंधों की असल परीक्षा होती है और यह संबंधों में तनाव भी पैदा करता है।
युद्ध शुरू होने के बाद से वरिष्ठ इजरायली अधिकारियों में केवल राष्ट्रपति इसाक हेर्जोग और वित्त मंत्री नील बरकत ने ही अरब देशों की यात्रा की है। दोनों यूएई में एक अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम में हिस्सा लेने गए थे और यह द्विपक्षीय यात्रा नहीं थी। इजरायल में अधिकारी इस बात पर जोर देते हैं कि युद्ध के चलते तनाव भरे दौर में एक तथ्य में इनकार नहीं किया जा सकता है कि समझौता बना रहेगा। अब्राहम समझौते में शामिल एक अधिकारी ने टाइम्स ऑफ इजरायल को बताया कि तनाव के बावजूद सभी पक्षों का मानना है कि शांति और सहयोग ही सही विकल्प है।
इस साल जनवरी में जब गाजा में इजरायली अभियान चरम पर था, यूएई के राष्ट्रपति के सलाहकार अनवर गरगश ने इजरायल के साथ रिश्तों पर बयान दिया था। अनवर ने कहा था कि ‘यूएई ने एक रणनीतिक फैसला लिया है और रणनीतिक फैसले लंबे समय के लिए होते हैं।’ उन्होंने आगे कहा कि ‘इसमें कोई संदेह नहीं है कि रणनीतिक फैसलों की राह में बहुत सारी बाधाएं आती हैं और हम एक बड़ी बाधा (गाजा युद्ध) का सामना कर रहे हैं और हम जरूर इससे निपटेंगे।’
गाजा और टेम्पल माउंट में इजरायली नीतियों की निंदा के बावजूद केवल जॉर्डन ही इकलौता अरब सहयोगी था जिसने आधिकारिक तौर पर अपने राजदूत को युद्ध के दौरान इजरायल से वापस बुला लिया। मोरक्को, बहरीन और यूएई के राजदूतों ने सार्वजनिक समारोहों और मीडिया से दूरी बनाई लेकिन वे लगातार देशों के बीच आते-जाते रहे और पर्दे के पीछे काम करते रहे। बता दें कि अब तक जितने भी मुस्लिम देशों की प्रतिक्रिया सामने आई है, किसी ने भी इजरायल पर हमले के लिए हमास को निशाने पर नहीं लिया है लेकिन संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और बहरीन ने हमास की निंदा कर सबको चौंका दिया है. UAE, बहरीन समेत सभी मुस्लिम देश कभी इजरायल को मध्य-पूर्व में ‘अछूत’ की तरह देखते थे और उससे किसी तरह का रिश्ता नहीं रखा था. लेकिन अमेरिका की कोशिशों के परिणामस्वरूप सितंबर 2020 में यूएई और बहरीन ने इजरायल के साथ अब्राहम समझौता किया और उससे राजनयिक संबंध स्थापित कर लिए. यूएई और बहरीन इजरायल के साथ संबंध स्थापित करने वाले पहले अरब देशों में शामिल हैं . ध्यान देने वाली बात है कि तनाव के बावजूद तीनों देशों के साथ इजरायल का द्विपक्षीय व्यापार काफी बढ़ गया है। मोरक्को और यूएई से इजरायल के लिए सीधी उड़ानें जारी हैं।