आज हम आपको बताएंगे कि मोदी सरकार में कौन-कौन सी रेलवे घटना हुई है! पश्चिम बंगाल के न्यू जलपाईगुड़ी में हुए भीषण रेल हादसे के बाद कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दल मोदी सरकार पर हमलावर हैं। विपक्ष इस मुद्दे पर पीएम मोदी और रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव पर लगातार हमले कर रहे हैं। कांग्रेस का कहना है कि मोदी सरकार ने रेलवे को पूरी तरह बर्बाद कर दिया है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव के इस्तीफे की मांग की है। कांग्रेस अध्यक्ष ने पूछा, ‘नरेंद्र मोदी जी, हमें बताएं कि किसे जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए, रेल मंत्री को या आपको?’ कुल मिलाकर कांग्रेस के लिए यह मुद्दा सियासी हो गया है और कांग्रेस इस पर खुलकर बैटिंग कर रही है। सियासी आरोपों के बीच आंकड़े क्या कहते हैं। 2004 से 2014 तक यूपीए सरकार में हर साल 171 रेल हादसे होते थे वहीं 2014-2024 तक मोदी सरकार के दौरान हर साल 68 ट्रेन एक्सीडेंट हुए। भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रेलवे सिस्टम है, अमेरिका, रूस और चीन के बाद. पिछले कुछ सालों में, भारतीय रेलवे ने रेलवे के बुनियादी ढांचे को विकसित करने, सिस्टम को आधुनिक बनाने और परिचालन क्षमता और सुरक्षा को बेहतर बनाने के लिए कई कदम उठाए हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, साल 2000-01 में गंभीर रेल दुर्घटनाओं की संख्या 473 थी, जो साल दर साल कम होती गई। 2023-24 में यह संख्या 40 हो गई है। इसका मतलब है कि रेलवे दुर्घटनाओं की संख्या में काफी कमी आई है।
सुरक्षा से जुड़े कार्यों पर होने वाला खर्च ढाई गुना से ज्यादा बढ़ गया है। 2004-14 में ये 70,273 करोड़ रुपये था, जो 2014-24 में बढ़कर 1.78 लाख करोड़ रुपये हो गया है। रेलवे की पटरियों के रख-रखाव पर होने वाला खर्च भी 2.33 गुना बढ़ गया है। 2004-14 में ये 47,018 करोड़ रुपये था, जो 2014-24 में 1,09,659 करोड़ रुपये हो गया है।
रेलवे की पटरियों में वेल्डिंग में खराबी 87% कम हो गई हैं। यह प्रणाली लोको पायलट की मदद करती है। अगर वो ब्रेक लगाना भूल जाते हैं, तो यह सिस्टम खुद-ब-खुद ब्रेक लगा सकता है। इससे खराब मौसम में भी ट्रेनों का सुरक्षित संचालन सुनिश्चित होता है। अब तक 1,465 किलोमीटर रेलवे ट्रैक और 121 लोकोमोटिव पर कवच प्रणाली लागू की जा चुकी है।2013-14 में ये 3,699 थीं, जो 2023-24 में घटकर 481 रह गई हैं।
रेल टूटने की घटनाएं भी 85% कम हुई हैं। 2013-14 में ये 2,548 थीं, जो 2023-24 में घटकर 383 रह गई हैं। सड़क ओवरब्रिज निर्माण की संख्या 2.9 गुना बढ़ गई है। 2004-14 के दौरान इनकी संख्या 4,148 थी, जो 2014-24 में बढ़कर 11,945 हो गई है। पुलों के रख-रखाव पर होने वाला खर्च दोगुना बढ़ गया है। 2004-14 के दौरान ये 3,919 करोड़ रुपये था, जो 2014-24 में बढ़कर 8,008 करोड़ रुपये हो गया है।इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग प्रणाली वाले स्टेशनों की संख्या 3.5 गुना बढ़ गई है। 2004-14 के दौरान इनकी संख्या 837 थी, जो 2014-24 में बढ़कर 2,964 हो गई है। एलएचबी डिब्बों का निर्माण 15.8 गुना बढ़ गया है। 2004-14 के दौरान इनकी संख्या 2,337 थी, जो 2014-24 में बढ़कर 36,933 हो गई है।
राष्ट्रीय रेल सुरक्षा कोष आरआरएसके की शुरुआत 2017-18 में 1 लाख करोड़ रुपये के बजट के साथ की गई थी। इस फंड का इस्तेमाल रेलवे की सुरक्षा के लिए ज़रूरी चीज़ों को दुरुस्त करने, नया करने और बेहतर बनाने में किया जाता है। यह फंड पांच साल के लिए था। 2017-18 से 2021-22 तक, आरआरएसके के कामों पर कुल 1.08 लाख करोड़ रुपये खर्च किए गए। 2022-23 में, सरकार ने आरआरएसके को और पांच साल के लिए बढ़ा दिया है। इस बढ़े हुए कार्यकाल में सरकारी बजट से ₹45,000 करोड़ रुपये मिलेंगे। ट्रेनों की सुरक्षा के लिए कवच प्रणाली को राष्ट्रीय स्वचालित ट्रेन संरक्षण प्रणाली के रूप में अपनाया गया है। यह प्रणाली लोको पायलट की मदद करती है। अगर वो ब्रेक लगाना भूल जाते हैं, तो यह सिस्टम खुद-ब-खुद ब्रेक लगा सकता है। इससे खराब मौसम में भी ट्रेनों का सुरक्षित संचालन सुनिश्चित होता है। अब तक 1,465 किलोमीटर रेलवे ट्रैक और 121 लोकोमोटिव पर कवच प्रणाली लागू की जा चुकी है।
31 मई 2024 तक, 6,586 स्टेशनों पर इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग ईआई प्रणाली लगाई जा चुकी है। हाई-डेंसिटी रूट्स पर 31 अक्टूबर 2023 तक, 4,111 रेलवे किलोमीटर ट्रैक पर ऑटोमैटिक ब्लॉक सिग्नलिंग एबीएस लागू कर दिया गया है। 31 अक्टूबर 2023 तक, 11,137 समपार फाटकों को सिग्नलों से जोड़कर उनकी सुरक्षा बढ़ा दी गई है। जनवरी 2019 तक, सभी ब्रॉड गेज रूटों पर बिना फाटक वाले समपार फाटक हटा दिए गए हैं। लोको पायलटों की चौकसी बनाए रखने के लिए अब सभी लोकोमोटिव पर सतर्कता नियंत्रण उपकरण लगाए गए हैं। साथ ही, कोहरे वाले इलाकों में ड्राइवरों को जीपीएस आधारित कोहरे सुरक्षा उपकरण भी दिए गए हैं।