Thursday, September 19, 2024
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आखिर कौन है विलेज डिफेंस गार्ड्स?

आज हम आपको विलेज डिफेंस गार्ड्स के बारे में जानकारी देने वाले हैं! जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों के खिलाफ जंग में भारतीय सेना अब गांव वालों को भी ट्रेनिंग दे रही है। गांव वाले मतलब गांव के वे लोग जो विलेज डिफेंस गार्ड्स के सदस्य हैं। पहले इसे विलेज डिफेंस कमिटी कहा जाता था। इसमें गांव के लोग ही सदस्य होते हैं। जम्मू-कश्मीर पुलिस के साथ मिलकर सेना ने ट्रेनिंग देना शुरू किया है और इस वक्त करीब 600 लोगों की ट्रेनिंग चल रही है। सेना यूनिट लेवल पर विलेज डिफेंस गार्ड्स को ट्रेनिंग दे रही है। इसमें सेना के कोर बैटल स्कूल सरोल के इंस्ट्रक्टर्स भी मदद कर रहे हैं। विलेज डिफेंस गार्ड्स को वह जरूरी स्किल सिखाई जा रही हैं ताकि वह आतंकी खतरों से अपने गांव की रक्षा कर सकें। इससे रीजन का पूरा सिक्योरिटी नेटवर्क मजबूत होगा। उन्हें ऑटोमेटिक राइफल चलाना, स्क्वैड पोस्ट ड्रिल और कुछ टेक्टिस सिखाई जा रही है। ह्यूमन इंटेलिजेंस के तौर पर हो या फिर मददगार के तौर पर। सफल जुगलबंदी हिल काका में दिखी। पुंछ जिले के सूरनकोट के पास पीर पंजाल की पहाड़ियों में हिल काका का इलाका साल 2000 के आसपास आतंकियों का गढ़ बन गया था। हिल काका में गुर्जर-बकरवाल रहते हैं।राजौरी एरिया में 500 विलेज डिफेंस गार्ड्स को ट्रेंड किया जा चुका है। डोडा और किश्वाड़ में भी करीब 90-90 लोगों को ट्रेंड किया गया है। ट्रेनिंग के साथ ही उन्हें सेल्फ लोडिंग राइफल भी इश्यू की जा रही है।

गृह मंत्रालय ने जम्मू-कश्मीर में 30 सितंबर 1995 को विलेज डिफेंस कमेटी का गठन किया था, इसका मकसद जम्मू-कश्मीर में बॉर्डर के पास वाले इलाकों में लोगों को हथियार चलाने की ट्रेनिंग देकर उन्हें आतंकियों से गांव की रक्षा करने के लिए सशक्त बनाना था। यह वह दौर था जब आतंक अपने चरम पर था। तब डोडा , उधमपुर , रियासी , राजौरी , पुंछ, कठुआ और सांबा जिलों में विलेज डिफेंस कमिटी बनाई गई। साल 2022 में इसका नाम बदलकर विलेज डिफेंस गार्ड्स कर दिया गया। इसमें गांव के कुछ लोग मेंबर होते हैं और ये जिले के एसपी या एसएसपी के निर्देश पर काम करते हैं। इसके मेंबर को एक गन और 100 राउंड दिए जाते हैं।

नई स्कीम के तहत जो सदस्य विलेज डिफेंस गार्ड्स को लीड कर रहा है उसे हर महीने सरकार की तरफ से 4500 रुपये और हर सदस्य को 4000 रुपये महीने दिए जाते हैं। एक ग्रुप में करीब 15 लोग होते हैं। इनके पास हथियारों का लाइसेंस होता है। पिछले कुछ वक्त में जम्मू रीजन में आतंकी वारदातों में बढ़ोतरी हुई, जिसके बाद विलेज डिफेंस गार्ड्स पर फिर से ज्यादा फोकस किया जाने लगा है। जम्मू-कश्मीर में चुनाव भी हैं तो बीजेपी ने भी वादा किया है कि विलेज डिफेंस गार्ड्स को ऑटोमेटिक राइफल्स दे कर और मजबूत किया जाएगा।

आतंकवादियों के खिलाफ सफल ऑपरेशन के लिए सेना को आवाम का साथ जरूरी है। चाहे ह्यूमन इंटेलिजेंस के तौर पर हो या फिर मददगार के तौर पर। सफल जुगलबंदी हिल काका में दिखी। पुंछ जिले के सूरनकोट के पास पीर पंजाल की पहाड़ियों में हिल काका का इलाका साल 2000 के आसपास आतंकियों का गढ़ बन गया था। हिल काका में गुर्जर-बकरवाल रहते हैं।

वहां पर 600-700 आतंकियों का ट्रेनिंग कैंप बन गया था। फिर सेना ने आतंकवादियों के खात्मे के लिए प्लान बनाया। 17 गुर्जर लड़कों को भी सेना ने ट्रेंड किया, इसका फायदा ये था कि ये लड़के इलाके के चप्पे चप्पे से वाकिफ थे। फिर 17 अप्रैल 2003 को ऑपरेशन लॉन्च किया गया, ऑपरेशन सर्प विनाश। हिल काका में 70 किलोमीटर के जंगल एरिया में आतंकियों ने अपना कब्जा जमाया था। बता दें कि रीजन का पूरा सिक्योरिटी नेटवर्क मजबूत होगा। उन्हें ऑटोमेटिक राइफल चलाना, स्क्वैड पोस्ट ड्रिल और कुछ टेक्टिस सिखाई जा रही है। राजौरी एरिया में 500 विलेज डिफेंस गार्ड्स को ट्रेंड किया जा चुका है। डोडा और किश्वाड़ में भी करीब 90-90 लोगों को ट्रेंड किया गया है। वहां करीब 700 आतंकवादी थे।गृह मंत्रालय ने जम्मू-कश्मीर में 30 सितंबर 1995 को विलेज डिफेंस कमेटी का गठन किया था, इसका मकसद जम्मू-कश्मीर में बॉर्डर के पास वाले इलाकों में लोगों को हथियार चलाने की ट्रेनिंग देकर उन्हें आतंकियों से गांव की रक्षा करने के लिए सशक्त बनाना था। गुर्जर लड़कों ने और आर्मी ने मिलकर 83 आतंकी मारे और बाकी आतंकवादी पाकिस्तान भाग गए। आवाम और आर्मी की जुगलबंदी सफल हुई। वहां एक मेमोरियल भी बनाया गया है। जिसका नाम है जवान और आवाम मेमोरियल।

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