आखिर कौन है डाकू वीरप्पन?

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आज हम आपको डाकू वीरप्पन की कहानी सुनाने जा रहे हैं! उसकी मूंछें उसकी पहचान थी। दुबला-पतला शरीर, हाथ में हथियार और लंबी-लंबी मूंछें। उस का ये रूप अस्सी के दशक में पुलिस के लिए सबसे बड़ी सिरदर्दी बन चुका था। दक्षिण के जंगलों से उसने पूरे देश में दहशत फैला दी थी। बात हो रही है देश के सबसे खतरनाक डाकू वीरप्पन की। 2 दशक तक देश में खौफ का दूसरा नाम बन चुका था वीरप्पन। कभी किसी पुलिस ऑफिसर की हत्या, तो कभी फिल्म स्टार की किडनैपिंग। हाथियों का तो वो जैसे सबसे बड़ा दुश्मन था। 2000 से ज्यादा हाथियों को इस डाकू ने मौत के घाट उतार दिया था। वीरप्पन का जन्म 8 जनवरी 1952 में कर्नाटक के गांव गोपीनाथम में हुआ। पूरा नाम मुनिस्वामी वीरप्पन था। इसने 17 साल की उम्र से ही जंगलों में हाथियों को मारकर उनके दांतों को बेचने का काम शुरू कर दिया था। धीरे-धीरे वो इस काम में आगे बढ़ता गया। जंगलों में ही उसने अपना अड्डा बना लिया था। बेहद छोटी उम्र में उसने जंगलों में अपना गैंग तैयार कर लिया। इनका काम था जंगलों से हाथी के दांतों और चंदन की लड़की की तस्करी करना। जंगल में इसके गैंग ने 2000 से ज्यादा हाथियों को मार दिया था और उनके दांत महंगी कीमतों पर विदेशों में सप्लाई कर दिए थे। वीरप्पन लगातार हाथी के दांतों और चंदन की तस्करी कर रहा था और पुलिस उसके पीछे पड़ी हुई थी। इसका गैंग इतना मजबूत हो चुका था कि जंगल के चप्पे-चप्पे में इसके लोग मौजूद रहते थे और पुलिस के आने से पहले ही इसको इस बात की खबर मिल जाती थी।

1987 में वीरप्पन ने एक फॉरेस्ट ऑफिसर को किडनैप कर लिया। इसके बाद तमिलनाडू पुलिस ने वीरप्पन के खिलाफ सख्त रवैया शुरू कर दिया था। उस दौरान वहां के एक मशहूर पुलिस ऑफिसर गोपालकृष्ण के पास उस इलाके की जिम्मेदारी थी। गोपालकृष्ण काफी मशहूर कॉप थे और उन्हें रैंबो के नाम से जाना जाता था। वीरप्पन ने रैंबो की तस्वीर पर भद्दी गालियां लिखकर चैलेंज किया था। रैंबो अपने साथ 4 पुलिसवालों, 12 मुखबिरों और 2 वन्य अधिकारियों के साथ वीरप्पन को पकड़ने जंगल पहुंचे थे। जंगल में वीरप्पन को ये बात पता चल चुकी थी और उसने वहां पर लैंडमाइन बिछा दी थी। इस ब्लास्ट में रैंबो समेत सभी 21 लोग मारे गए थे। इस हत्यकांड के बाद तो वीरप्पन मोस्ट वांटेड बन चुका था।

वीरप्पन को पकड़ने के लिए कई ऑपरेशन शुरू किए गए। पैसा पानी की तरह बहाया गया, लेकिन वीरप्पन का कहर था कि खत्म ही नहीं हो रहा था। वीरप्पन के जंगलों से जुड़े किस्से इतने खौफनाक है कि सुनकर रोंगटे खड़े हो जाएं। कहते हैं इस खुंखार डाकू ने एक वन्य अधिकारी को आत्मसमर्पण करने के लिए अपने जाल में फंसाया और फिर उसका कत्ल कर दिया। इसके बाद इसने उस फॉरेस्ट ऑफिसर के सिर को धड़ से अलग कर दिया और उस ऑफिसर की खोपड़ी के साथ फुटबॉल खेलने लगा।

इस चंदन तस्कर का एक और भयानक किस्सा है। कहते हैं एक बार पुलिस की टीम इसको गिरफ्तार करने इसके काफी करीब तक पहुंच गई थी। उस वक्त ये अपनी दो महीने की बेटी के साथ था। बच्ची अचनाक रोने लगी, पुलिस बच्ची की रोने की आवाज के साथ आगे बढ रही थी। तभी इसने बच्ची का गला दबा दिया ताकि उसकी रोने की आवाज कहीं इसकी गिरफ्तार की वजह ने बन जाए। सोचिए कितना खतरनाक रहा होगा ये डाकू।

साल 2000 में वीरप्पन का खतरनाक चेहरा साउथ की फिल्म इंडस्ट्री ने भी देखा। साउथ के मशहूर हीरो राज कुमार को वीरप्पन ने अगवा कर लिया तो फिल्म इंडस्ट्री में हड़कंप मच गया। पूरे देश में ये खबर ने सनसनी फैला दी। 100 दिनों तक इसने राज कुमार को अपने कब्जे में रखा और कोई इसका कुछ नहीं बिगाड़ पाया। किडनैपिंग के बदले ये सरकारों से अपनी मांगे मनवा रहा था। जब इसकी मांगे पूरी की गई तब जाकर इसने एक्टर राज कुमार को आजाद किया।

वीरप्पन को पकड़ने के कई बड़े-बड़े ऑपरेशन फेल हो चुक थे। सरकार नहीं समझ पा रही थी कि इस चंदन तस्कर का किया जाए। साल 2003 में तमिलनाडू सरकार ने एक स्पेशल टास्क फोर्स बनाई। इस टॉस्क फोर्स के चीफ थे विजय कुमार। वो जानते थे कि वीरप्पन को जंगलों में पकड़ना नामुकिन है। वो जंगल के कोने-कोने को जानता था और जंगल में एंट्री मतलब मौत तय। विजय ने धीरे-धीरे इस ऑपरेशन पर काम शुरू किया। सबसे पहले उन्होंने अपने कई आदमी वीरप्पन के गैंग में शामिल करवाए। एक दिन एसटीएफ चीफ विजय कुमार को खबर मिली कि वीरप्पन अपने आंखों के इलाज के लिए जंगल से बाहर एक अस्पताल में आने वाला है।

यही सही मौका था इस डाकू को खत्म करने का। पूरी प्लानिंग के साथ काम शुरू हुआ। स्पेशल टास्क फोर्स ने अपनी एंम्बुलेंस वीरप्पन के लिए भेजी। इस एंबुलेंस में पुलिस का ही आदमी चला रहा था। जंगल से बाहर थोड़ी दूरी की बड़ी फौज तैनात थी। ड्राइवर ने मौका देखकर एंबूलेंस को वही छोड़कर फरार हो गया। इसके तुरंत बाद पुलिस ने फायरिंग शुरू कर दी। आखिरकार 2 दशक बाद इस एनकाउंटर में सबसे खुंखार डाकू और उसके कई साथी मारे गए। इसके बाद वीरप्पन गैंग के कई लोगों की गिरफ्तारियां हुई। एसीटीएफ का ये ऑपरेशन देश के लिए एक बड़ी कामयाबी थी।