Wednesday, November 20, 2024
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आखिर यूपी के छात्रों की कौन सुनेगा?

यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर यूपी के छात्रों की कौन सुनेगा! उनके पढ़ने का टाइम फिक्स है, चाय भी एक बार ही बनाकर थर्मस में रख लेते हैं कि दोबारा बनाने वाला समय भी बच जाए। खाना भी एक टाइम में ही काम हो जाता है। आखिर हो भी क्यों न, जब बात देश और राज्य की सबसे कठिन परीक्षा की तैयारी की हो तो इसमें कोई जोखिम नहीं लिया जा सकता है। तो फिर इतनी कठिन तपस्या करने वाले प्रयागराज की सड़कों पर क्या कर रहे हैं? रात-दिन वो प्रदर्शन कर रहे हैं। लेकिन न तो यूपीपीएससी और न ही सरकार के कान में जू रेंग रही है। हे नीति नियंता, हे सरकार जी आखिर इनकी गलती क्या है? एक मांग कर रहे हैं, कोई उसे सुन तो लेता। लेकिन सुनने की बात कौन कहे, उन्हें तो सिविल ड्रेस में पुलिसवाले वहां से हटाने में लगे हैं। जिस छात्र आंदोलन से इस देश की सरकार तक हिली है, आज उन छात्रों की मांग को कोई सुनने वाला तक नहीं है। ऐसे कैसे चलेगा सरकार? सरकार का काम है व्यवस्था बनाना, युवाओं को रोजगार देना, लेकिन यहां ना तो व्यवस्था बनाई जा रही ना ही युवाओं की सुनवाई हो रही है। देश का युवा जिसे सुनहरे भविष्य के सपने संजोने चाहिए, वो सड़क पर है, धरना दे रहा है। सरकार का सिस्टम उसे वहां से हटाने की कोशिश कर रहा है। लेकिन ऐसे कब तक चलेगा। युवाओं की जायज मांगों को क्यों नहीं सुना जा रहा? क्यों सरकार उन्हें सही आश्वासन देने को तैयार नहीं है? कब तक युवाओं के मन की बात सुनने के बजाय उन्हें दबाने की कोशिश जारी रहेगी? ये वो सवाल हैं, जिसका जवाब न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे देश के छात्रों को चाहिए।

फिलहाल प्रयागराज में यूपीपीएससी के सामने जो प्रदर्शन है वो ‘पीसीएस प्री’ और ‘आरओ एआरओ’ की परीक्षा दो दिन में संपन्न कराने के फैसले के विरोध में है। छात्रों की मांग है कि एक दिन और एक ही शिफ्ट में परीक्षा कराई जाए। लगातार तीन दिनों से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हजारों छात्र आयोग के बाहर जुटे हुए हैं। छात्रों का कहना है कि सादा कपड़ों में पुलिसकर्मी धरना स्थल पर पहुंचकर उन्हें वहां से हटाने की कोशिश कर रहे हैं। आंदोलन कर रहे छात्र प्रत्यूश सिंह ने बताया कि पिछले दो दिनों के मुकाबले आज छात्रों की संख्या कम है।

आंदोलनकारी छात्र आयोग के अध्यक्ष संजय श्रीनेत के खिलाफ नारेबाजी कर रहे हैं। वहीं अभी तक आयोग या सरकार की तरफ से कुछ भी आश्वासन नहीं दिया गया। आयोग ने बयान जारी कर कहा कि समय-समय पर प्रतियोगी छात्रों के आग्रह पर बदलते समय की जरूरतों को देखते हुए व्यवस्था/परीक्षा प्रणाली में सुधार किया जाता रहा है। अभ्यर्थियों की सुविधा के मद्देनजर पीसीएस की मुख्य परीक्षा से वैकल्पिक विषय हटाने का अभूतपूर्व निर्णय किया गया। इसी तरह से, अभ्यर्थियों के लंबे समय से ‘स्केलिंग’ हटाने की मांग पूरी की गई।

यानी आयोग इस मसले पर तो कुछ कह नहीं रहा उल्टा इधर उधर की बातें कर ये जरूर बता रहा है कि उसने अब तक क्या किया। वैकल्पिक विषय हटा दिया, स्केलिंग की बात मान ली… वगैरह, वगैरह। अभी मुख्य मसला ‘एक दिन एक परीक्षा’ का है, लेकिन यूपी लोक सेवा आयोग इस पर कुछ कहना नजर नहीं आ रहा है। आयोग के गेट के सामने धरने पर बैठे छात्रों के हाथों में अलग अलग नारे लिखी तख्तियां थीं जिसमें किसी में ‘बटेंगे नहीं, हटेंगे नहीं, न्याय मिलने तक एक रहेंगे’, तो किसी में लिखा था, ‘एक दिन, एक परीक्षा’।

लाखों युवा अपने घर परिवार से दूर रहकर एक छोटे से कमरे में गुजारा करते हैं, दिन रात पढ़ाई करते हैं, ताकि कुछ बन सकें। लेकिन अब छात्रों को किताबों को खंगालने के अलावा सड़क पर भी लड़ाई लड़नी पड़ती है। उन्हें नौकरी हासिल करने के लिए न जाने कितने इम्तिहानों को पार करना पड़ता है। वो पहले सड़क पर प्रदर्शन करते हैं ताकि वैकेंसी आए। फिर प्रदर्शन करते हैं ताकि एग्जाम हो, इसके बाद एक साथ परीक्षा कराने के धरना, फिर रिजल्ट के लिए, उसके बाद कोर्ट कचहरी के सालों चक्कर काटकर नौकरी मिलती है। ऐसा कई सालों से होता आ रहा है। सरकारें वादे करती हैं और सत्ता में आकर भूल जाती हैं। धूप, जाड़े और बारिश के मौसम में सड़क पर अपने हक की लड़ाई लड़ते रहते हैं लाखों छात्र, हिंदुस्तान का भविष्य।

 

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