Friday, October 18, 2024
HomeIndian Newsआखिर इस बार किसकी बनेगी सरकार?

आखिर इस बार किसकी बनेगी सरकार?

यह सवाल लाजमी है कि इस बार सरकार किसकी बनेगी! लोकसभा चुनाव, 2024 का महाआयोजन अब खत्म होने के दौर में है। हर किसी को इंतजार है 4 जून का, जब चुनाव आयोग मतगणना के बाद नतीजों का ऐलान करेगा। सबके मन में ऊहापोह चल रही है कि आखिर किसकी सरकार बनेगी? क्या भाजपा लगातार तीसरी बार सरकार बना पाएगी या इंडिया गठबंधन इस बार बाजी मारेगा। मगर, उससे पहले हर किसी को एग्जिट पोल्स का भी इंतजार रहता ही है, क्योंकि ये एग्जिट पोल्स आम आदमी के अनुमान और बहस को एक नई दिशा देते हैं।  इस बार 18वी लोकसभा के लिए आम चुनाव कराए गए। ये चुनाव 1 जून को शाम 6 बजे खत्म हो जाएंगे। मतदान कर चुके वोटरों से उनके पसंदीदा प्रत्याशियों या पार्टियों के बारे में जानकारी जुटाना ही एग्जिट पोल्स कहा जाता है। इससे चुनाव के बाद देश के सियासी मिजाज को समझने में मदद मिलती है। चुनाव नतीजों से पहले एग्जिट पोल्स के अनुमान का बाजार पर असर पड़ता है। वोटरों से पूछने के पीछे यह माना जाता है कि वोटर ही सटीक रूप से यह बता सकते हैं कि देश में किसकी सरकार बन रही है। सरकार कभी कोई एग्जिट पोल्स नहीं कराती है। इसे केवल प्राइवेट एजेंसियां ही करती हैं। वहीं ओपिनियन पोल्स मतदान से पहले कराए जाते हैं और लोगों की राय जानी जाती है। यह वोटर्स के चुनावी रुझान को जानने की कोशिश भर होती है।

भारत में पहली बार 1957 में एग्जिट पोल्स तब आए थे, जब इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक ओपिनियन ने देश में दूसरी लोकसभा चुनावों को लेकर सर्वे किया था। उस वक्त जवाहरलाल नेहरू की सरकार थी। पहला बड़ा मीडिया सर्वे 1980 के दशक में हुआ था, जिसे इलेक्शन स्टडीज में माहिर प्रणव राय ने डेविड बटलर के साथ मिलकर किया था। बाद में दोनों की किताब आई-द कंपेंडियम ऑफ इंडियन इलेक्शंस। 1996 में सरकारी टीवी चैनल दूरदर्शन ने सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटीज (CSDS) को भारत में एग्जिट पोल्स कराने को कहा था। तभी से रेगुलर ऐसे ओपिनियन सर्वे किए जाते हैं, जिसमें कई संगठन और निजी टीवी चैनल्स भी शामिल रहते हैं।

लोकसभा चुनाव के आखिरी बूथ पर वोटिंग जब खत्म हो जाती है तो उसके 30 मिनट बाद से ही एग्जिट पोल्स जारी किए जाते हैं। ये ओपिनियन सर्वे कई संगठन, निजी चैनल्स मिलकर करते हैं। इसमें वोटर्स से ही यह पूछा जाता है कि उन्होंने किस पार्टी या उम्मीदवार को वोट दिया है। एग्जिट पोल्स का मकसद चुनावों के रुझानों के बारे में जानकारी देना है। दरअसल, एग्जिट पोल्स आम आदमी के सेंटिमेंट्स को दर्शाते हैं। जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 126A के अनुसार, चुनाव के दौरान कोई व्यक्ति किसी तरह का एग्जिट पोल न तो करा सकता है और न ही उसे प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया या दूसरे माध्यमों के जरिये प्रकाशित कर सकता है। इस अवधि के दौरान किसी एग्जिट पोल के बारे में चुनाव आयोग संज्ञान लेगा। वोटिंग खत्म होने के 30 मिनट के बाद ही एग्जिट पोल्स आ सकते हैं। यानी 1 जून को शाम 6 बजे तक वोटिंग होनी है, उसके बाद 6:30 बजे ही एग्जिट पोल्स के अनुमान आने शुरू हो जाएंगे।

जन प्रतिनिधित्व कानून, 1951 के सेक्शन 126A का अगर कोई व्यक्ति उल्लंघन करता है तो उसे 2 साल तक की जेल की सजा या जुर्माना या दोनों दंड हो सकते हैं। 44 दिन तक चले इस बार लोकसभा चुनाव के नतीजों की गणना 4 जून को होनी है। CSDS के संजय कुमार के अनुसार, 1957 से ही एग्जिट पोल्स में लगातार सुधार किए जा रहे हैं। सैंपल के आकार भी काफी बढ़ा दिए गए हैं। नेशनल लेवल पर करीब 30 हजार तक सैंपल जुटाए जाते हैं। यानी वोटरों से पूछा जाता है कि उन्होंने किसे वोट दिया है। हर पोलिंग ग्रुप्स के लिए कोई एक पोलिंग स्ट्रैटेजी नहीं अपनाई जा सकती है। हर पोलिंग स्टेशन के नमूने या तरीके अलग-अलग हो सकते हैं। भारत में एग्जिट पोल्स पर पाबंदी नहीं है। मगर, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के अनुसार, इसके प्रकाशन या प्रसारण को लेकर चुनाव आयोग ने कुछ नियम जरूर बनाए हैं। आयोग के अनुसार, एग्जिट पोल्स को वोटिंग के दौरान या उससे पहले प्रकाशित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि इससे वोटर्स प्रभावित हो सकते हैं। नीचे दिए ग्राफिक से समझते हैं कि एग्जिट पोल्स कैसे कराए जाते हैं।

2014 के लोकसभा चुनाव में चुनावी पंडितों ने एनडीए को 257 से लेकर 340 सीटों के जीतने का अनुमान लगाया था। मगर, एनडीए ने सबको चौंकाते हुए 336 सीटें जीती थीं। कुछ एग्जिट पोल्स में कांग्रेस की सरकार बनती दिख रही थी। मगर, उस बार देश की सबसे पुरानी पार्टी महज 44 सीटों पर ही सिमट गई। लोकसभा चुनाव, 2019 में भी चुनावी पंडित सटीक आकलन करने में नाकाम रहे। ज्यादातर एग्जिट पोल्स ने एनडीए को करीब 285 सीटें मिलने का अनुमान लगाया था। मगर, जब नतीजे आए तो ये अनुमान से कहीं आगे निकलकर आया। एनडीए को 353 सीटों पर जीत हासिल हुई। भाजपा ने अकेले 303 सीटें जीत ली थीं। वहीं कांग्रेस को 52 सीटें ही मिलीं।

1999 से लेकर 2019 तक पांच लोकसभा चुनावों में एग्जिट पोल्स सटीक तो नहीं रहे हैं। एक्सपर्ट्स ये तर्क देते हैं कि वोट डालने के बाद भी मतदाता अपना वोट जल्दी किसी को बताना नहीं चाहते हैं और वो गोलमोल जवाब देते हैं। कुछ वोटर्स तो जान-बूझकर गलत जवाब देते हैं। इसके अलावा, मतदाताओं पर स्थानीय नेताओं का दबाव भी रहता है, जिससे वो सही जानकारी देने से बचते हैं।

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments